भाजपा ने संजय सरावगी को सौंपी बिहार की कमान, दिलीप जायसवाल की जगह बने प्रदेश अध्यक्ष
भाजपा ने दरभंगा से छह बार विधायक रहे संजय सरावगी को बिहार का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। वे दिलीप कुमार जायसवाल की जगह लेंगे।
पटना। भारतीय जनता पार्टी ने सोमवार को बड़ा संगठनात्मक फैसला लेते हुए दरभंगा से छह बार विधायक रहे संजय सरावगी को बिहार भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। वह अब दिलीप कुमार जायसवाल की जगह पार्टी की कमान संभालेंगे। इस नियुक्ति के साथ ही बिहार में संगठनात्मक जिम्मेदारी पूरी तरह संजय सरावगी के हाथों में आ गई है।
संजय सरावगी दरभंगा विधानसभा सीट से लगातार छह बार विधायक चुने जा चुके हैं। उन्होंने पहली बार साल 2005 में विधानसभा चुनाव जीता था और उसी साल नवंबर में हुए दोबारा चुनाव में भी जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2010, 2015, 2020 और 2025 में भी वे दरभंगा सदर सीट से विधायक बने थे। पिछले साल नीतीश कुमार सरकार के कैबिनेट विस्तार में उन्हें पहली बार मंत्री बनाया गया था। हालांकि, हालिया मंत्रिमंडल में उन्हें जगह नहीं मिल सकी थी। उसी दौरान यह चर्चा तेज हो गई थी कि उन्हें पार्टी संगठन में कोई बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
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साल 1969 में जन्मे 55 वर्षीय संजय सरावगी वैश्य समुदाय से आते हैं और उन्हें भाजपा के पुराने और भरोसेमंद नेताओं में गिना जाता है। कारोबारी वर्ग में भी उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। मिथिलांचल की राजनीति में दरभंगा का खास प्रभाव है और संजय सरावगी को इस क्षेत्र का एक प्रभावशाली चेहरा माना जाता है जिसे देखते हुए पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है।
संजय सरावगी का राजनीतिक सफर छात्र जीवन से ही शुरू हो गया था। दरभंगा के गांधी चौक क्षेत्र के निवासी सरावगी का जन्म 28 अगस्त 1969 को हुआ था। उन्होंने एमकॉम और एमबीए की पढ़ाई की है। छात्र राजनीति के दौरान उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से सक्रिय राजनीति में कदम रखा था। साल 1995 में उन्होंने औपचारिक रूप से भाजपा की सदस्यता ली थी।
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विधानसभा राजनीति से पहले संजय सरावगी दरभंगा नगर निगम में वार्ड पार्षद भी रह चुके हैं। उनकी पहचान साफ-सुथरी छवि वाले नेता के रूप में रही है और वे दरभंगा शहर की जनता के बीच लंबे समय से चर्चित चेहरा हैं। साल 2018 में उन्हें बिहार विधानसभा की प्राकलन समिति का अध्यक्ष भी बनाया गया था जिससे संगठन और सदन दोनों में उनकी भूमिका मजबूत होती गई।
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