क्या पंजाब और पूर्वोत्तर के राज्यों को भी बांटा जाएगा, जम्मू कश्मीर के विभाजन पर SC ने उठाए सवाल

मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय किशन कौल ने पूछा कि अगर आप लद्दाख को अलग किए बिना पूरा ही केंद्र शासित प्रदेश बनाते तो क्या असर होता?

Updated: Aug 30, 2023, 02:54 PM IST

नई दिल्ली। अनुच्छेद 370 से जुड़े मामले में सुनवाई के दौरान जम्मू कश्मीर को विभाजित करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं। सर्वोच्च अदालत ने पूछा कि आख़िर अगस्त 2019 में सीमावर्ती राज्य जम्मू कश्मीर के विभाजन की क्या ज़रूरत थी। अदालत ने कहा कि जम्मू और कश्मीर अपने आप में अनोखा नहीं है और पंजाब व पूर्वोत्तर को भी जम्मू कश्मीर की तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ा है।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट इस ओर इशारा कर रहा था कि जम्मू कश्मीर की तरह ही पंजाब और पूर्वोत्तर के राज्यों से भी अंतरराष्ट्रीय सीमाएँ लगती हैं और ये राज्य भी आतंकवाद से ग्रसित रहे थे। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर गुजरात या मध्य प्रदेश को विभाजित किया गया तो पैरामीटर अलग होंगे। बेंच में शामिल न्यायमूर्ति एसके कौल ने बताया कि देश में कई राज्यों की सीमाएँ हैं।

मेहता ने जवाब दिया कि सभी पड़ोसी देश मित्रवत नहीं हैं और जम्मू-कश्मीर के इतिहास और वर्तमान स्थिति - पथराव, हड़ताल, मौतें और आतंकवादी हमले को देखते हुए जम्मू-कश्मीर को मुख्यधारा में लाने की ज़रूरत है। अनुच्छेद 370 को खत्म करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के 12वें दिन केंद्र ने तर्क दिया कि जम्मू और कश्मीर एक अलग तरह का मामला है। 

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति कौल ने कहा, 'यह एक अलग तरह की स्थिति नहीं है। हमने पंजाब को देखा है - बहुत कठिन समय। इसी तरह, उत्तर-पूर्व के कुछ राज्य... कल अगर ऐसी स्थिति बनती है कि इनमें से प्रत्येक राज्य को इस समस्या का सामना करना पड़ता है तो?' मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि किसी राज्य को विभाजित करने की शक्ति केंद्र सरकार को दिए जाने के बाद इसका दुरुपयोग नहीं किया जाएगा। एक समय इस बात पर भी चर्चा हुई कि विभाजन का मुद्दा संसद द्वारा क्यों नहीं सुलझाया गया।

सीजेआई ने सवाल किया, 'क्या संसद के पास मौजूदा भारतीय राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने की शक्ति है?' अदालत ने यह भी कहा कि भले ही संविधान सभा की भूमिका अनुच्छेद 370 के संबंध में केवल एक सिफारिश करने की थी जिसने जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिया था। इसने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि इसे भारत के राष्ट्रपति द्वारा खत्म किया जा सकता है।