दफ्तर दरबारी: मंच से मछलियों को सजा, मगरमच्‍छों की बल्‍ले बल्‍ले

CM Shivraj Singh Chouhan मंच से कर्मचारियों को सस्‍पेंड कर रहे हैं। इससे यह संदेश जा रहा है कि सरकार भ्रष्‍टाचार के प्रति सख्‍त है। मगर भ्रष्‍टाचार के मगरमच्‍छों की तो बल्‍ले-बल्‍ले है क्‍योंकि जिसने उन पर सख्‍ती की वही डीजी लोकायुक्‍त कैलाश मकवाना बदल दिया गया। टाइगर स्‍टेट एमपी में फांसी पर लटका मिला बाघ तो वन विभाग की भर्राशाही पर कैसे उठे सवाल, जानिए।

Updated: Dec 10, 2022, 07:45 AM IST

मंदसौर की सभा में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
मंदसौर की सभा में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

पिछले दिनों में आया था और मुझे शिकायत मिली थी। इसलिए मैं छिंदवाड़ा सीएमएचओ को तत्‍काल प्रभाव से सस्‍पेंड कर रहा हूं। जब मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह घोषणा की तो जनता ने तालियां बजाई। मुख्‍यमंत्री चौहान यही नहीं रूके। उन्‍होंने बिछुआ के सीएमओ को भी सस्‍पेंड कर दिया। जनता की सेवा नहीं करने वालों को सरकारी नौकरी में रहने का हक नहीं है। 

मंच से हो रही ऐसी घोषणाओं से प्रदेश में यह संदेश जा रहा है कि सरकार भ्रष्‍टाचार के प्रति बेहद सख्‍त है। मगर जरा गहराई से पड़ताल करें तो असर में छोटी म‍छलियां ही फंस रही हैं और उन्‍हीं पर कार्रवाई भी हो रही है। जो भ्रष्‍टाचार के मगरमच्‍छ हैं उनकी तो बल्‍ले-बल्‍ले है क्‍योंकि ज्‍यों ही लोकायुक्‍त डीजी आईपीएस मकवाना ने भ्रष्‍टाचारियों पर सख्‍ती शुरू की दोषियों का तो कुछ न बिगड़ा उल्‍टे डीजी को ही हटा दिया गया। 

यह फैसला सबके लिए अचरज भरा था क्‍योंकि भ्रष्टाचार पर प्रहार की बात करने वाली सरकार ने खासतौर से ईमानदार छवि के आईपीएस कैलाश मकवाना को इस पद पर बैठाया था। मगर छह महीने में ही उनकी विदाई हो गई। इतिहास बताता है कि डीजी मकवाना ने आते ही लोकायुक्‍त की कार्यप्रणाली में बदलाव कर दिए थे। उनके तेवर से बड़े अफसरों में दहशत थी। मध्‍य प्रदेश की प्रतिष्‍ठा से जुड़े उज्‍जैन के महाकाल लोक में भ्रष्टाचार की शिकायत पर तीन आईएएस की भूमिका पर जांच से मामला बिगड़़ता गया। उन्‍होंने लंबे समय से पड़ी शिकायतों की पुरानी फाइलों को खंगालना शुरू कर दिया था। 

आईएएस अधिकारियों पर किसी भी तरह की जांच के लिए सरकार से अनुमति आवश्‍यक है। आयुष्मान योजना में निजी अस्पतालों में करोड़ों रुपये के भुगतान, पोषण आहार जैसे मामलों की जांच के साथ डीजी मकवाना जिस तरह अफसरों के मामले खोल कर उनमें जांच की अनुमतियां मांग रहे थे उससे सरकार पर दबाव बन रहा था कि वह दोषी अधिकारियों पर जांच की अनुमति दे। अगर सरकार अनुमति नहीं देती है तो उसकी मंशा पर ही सवाल उठते हैं। 

अपनी मंशा पर संदेह खड़ा करवाने की जगह सरकार ने आईपीएस अधिकारी कैलाश मकवाना को ही बदल दिया। अब न भ्रष्‍टाचार के मामलों में बड़े अफसरों पर सख्‍ती होगी न सरकार पर उन्हें बचाने का आरोप लगेगा। जिस तरह सालों से दर्जनों आईएएस, आईपीएस, आईएफएस पर जांच की अनुमति लंबित है, उसी तरह ताजा मामलों में भी अनुमति लंबित ही रहेगी। 

सरकार ने छह माह में लोकायुक्‍त डीजी कैलाश मकवाना को हटाया तो प्रशासनिक स्‍तर पर किरकरी नहीं हुई। आईपीएस कैलाश मकवाना बेटी ने सोशल मीडिया पर ‘मुझे पापा पर गर्व है’ लिख ईमानदारी से काम करने पर मिली सजा की पीड़ा को व्‍यक्‍त किया। आईपीएस कैलाश मकवाना की बेटी श्रुति मकवाना ने ट्वीट किया, ‘उसूलों पे जहां आंच आए टकराना जरूरी है, जो जिंदा हो तो फिर जिंदा नजर आना ज़रूरी है।‘ मुझे पापा पर गर्व है। 

इतना ही नहीं आईपीएस मकवाना ने अपने एक सीनियर से मिली प्रशंसा का स्‍क्रीन शॉट भी ट्विट किया। इन सीनियर आईपीएस ने लिखा है कि मकवाना छह माह में वह काम कर दिखाया जो कई अधिकारी लोकायुक्‍त कार्यालय में बरसों पदस्‍थ रह कर भी नहीं कर सके। मकवाना का नाम भ्रष्‍ट अफसरों के लिए आतंक का पर्याय बन चुका है। इस तरह भ्रष्‍टाचार पर कार्रवाई कर रहे आईपीएस को सजा दे कर सरकार ने मगरमगच्‍छों को बचा लिया और छोटी मछलियों को मंच से संस्‍पेंड कर प्रशंसा बटोरने का कार्य भी जारी है। 

इस महिला अफसर को किसका आयुष्‍मान 

बीते दिनों मुख्‍य सचिव इकबाल सिंह बैंस की सेवावृद्धि के साथ ही कुछ अफसरों के तबादले चर्चा में रहे। खासकर स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के अफसरों के तबादले। लोकायुक्‍त डीजी कैलाश मकवाना के छह माह में ही तबादले के कारणों की पड़ताल में एक कारण आयुष्‍मान योजना में हुए घोटाले की जांच को भी माना गया है। 

लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के आंकड़ें गवाह है कि मध्य प्रदेश में आयुष्मान भारत योजना से संबद्ध 120 निजी अस्पतालों ने दो सौ करोड़ रुपयों का घोटाला किया है। इनमें इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर सहित प्रदेश के ख्यातिप्राप्त निजी अस्पताल भी शामिल हैं। भोपाल और जबलपुर के कुछ अस्पतालों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई गई है।

भ्रष्‍टाचार की शिकायत के बाद सरकार ने संचालक स्वास्थ्य सेवाएं अनुराग चौधरी को हटा दिया। इसका कारण योजना से अस्पताल को संबद्ध करने और बिलों के भुगतान को लेकर वायरल हुए ऑडियो और वीडियो भी है। एक वीडियो तो बीते सप्‍ताह वायरल हुआ जिसमें कार में बैठा एक युवक आयुष्‍मान योजना में शामिल करने के लिए अस्‍पताल संचालक से लेनेदेन करता दिखाई दे रहा है। आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि लेनदेन कर रहा शख्‍स विमल लोवंशी है। वह स्वास्थ्य विभाग की एडिशनल डायरेक्टर रही सपना लोवंशी का देवर है। वह अपनी भाभी से काम करवाने के लिए पैसे ले रहा था।

आरोपों में कितनी सच्‍चाई है यह तो वायरल वीडियो की जांच के बाद ही पता चलेगी लेकिन सपना लोवंशी का तबादला कर चुकी सरकार फिलहाल किरकिरी से बच गई। हालांकि, सवाल यह है कि जहां छोटी-छोटी शिकायतों पर अधिकारी-कर्मचारी सस्‍पेंड किए जा रहे हैं, शिकायतों के बाद भी एक अफसर इंदौर जैसे शहर में अपर कलेक्‍टर नियुक्‍त कर दी गई। आयुष्‍मान योजना में घोटाले की परतों के उघड़ने के बीच यह तथ्‍य भी चर्चा में है कि आखिर वह कौन है जिसका आशीर्वाद ऐसे अधिकारियों है पर है जो हर हाल में महत्‍वपूर्ण पदों पर बने रहते हैं। 

बाघ मरते रहें, नहीं सुधरेगा वन विभाग का सिस्‍टम 

कुछ विभाग ऐसे हैं जहां उनका अपना कानून होता है और अपना निरंकुश विधान। जेल और वन विभाग ऐसे ही कुख्‍यात विभाग है। वन विभाग के कारण सरकार के माथे पर एक और कलंक लगा है। देश में यह पहला मामला होगा जब कोई बाघ फांसी पर लटका पाया गया है। मध्य प्रदेश के पन्ना में एक व्यस्क बाघ की पेड़ के फंदे में फांसी लगने से मौत ने सरकार की नींद उड़ा दी। हद तो यह हो गई जब यह पता चला कि बाघ का शव चार दिन तक पेड़ पर लटका रहा। इस दौरान वन विभाग का अमला न गश्‍त पर पहुंचा न बाघ के मूवमेंट पर नजर रखने का तंत्र की कारगर साबित हुआ। 

मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ताबड़तोड़ बैठक बुलाई, जांच के आदेश दिए मगर अंदेशा यही है कि सिस्‍टम को न सुधरना है न वह सुधरेगा। वनों में अवैध कटाई, उत्‍खनन, शिकार की शिकायतें आम है मगर वन विभाग के अफसरों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। अपने बड़बोले बयानों के कारण हमेशा चर्चा में रहने वाले वन मंत्री कुंअर विजय शाह ने इस मामले में चुप्‍पी साध रखी है। अलबत्‍ता कुछ माह पहले वे यह कहते हुए जरूर पाए गए थे कि मध्‍य प्रदेश में जितनी संख्‍या में बाघ है उस तुलना में बाघ की मौत कम हो रही है। 

पन्‍ना बीजेपी प्रदेश अध्‍यक्ष वीडी शर्मा का संसदीय क्षेत्र है। वहां जारी गतिविधियों से उनका नाम जोड़ा जाता है। ऐसे में वन विभाग की इस कुकीर्ति ने ‘टाइगर जिंदा है’ का नारा बुलंद करने वाले राजनीतिज्ञों को भी सक्रिय किया है। वैसे अनुभव बताते हैं कि ऐसी सक्रियता क्षणिक होती है और वन विभाग उसी ढर्रे पर चलता रहता है जिस पर अब तक चलते आया है।    

गौरतलब है कि यह वही पन्‍ना है जहां 2009 में बाघ पूरी तरह से खत्म हो गए थे. 'टाइगर रीलोकेशन प्रोग्राम' के बाद यहां बाघों की संख्या बढ़कर 50 से ज्यादा हो गई है. वन विभाग का यही रवैया रहा तो देश में सबसे ज्‍यादा बाघ की मौत का कलंक मध्‍य प्रदेश के माथे से मिटेगा नहीं। 

देखो देखो आईएएस आया, डर कर सीएम से मांगा सहारा 

आईएएस लॉबी का अपना खौफ होता है। वे सारे सिस्‍टम को अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं। यही कारण है कि नॉन आईएएस पदों पर भी आईएएस की नियुक्तियां की जाने लगी है। अपने हक के पदों पर आईएएस को नियुक्‍त होता देख अन्‍य कैडर वालों में विरोध उपज रहा है। कैडर संतुलन गड़बड़ाने का विरोध पहले बंद कमरों में होता था अब खुल कर सार्वजनिक रूप से हो रहा है।  

इस बार मध्य प्रदेश राज्य प्रशासनिक सेवा संघ ने जिलों में अपर कलेक्टर के पद पर आईएएस अफसरों की पदस्थापना का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात की है। संघ प्रतिनिधि मंडल ने सीएम चौहान से मिल कर और अपनी शिकायत दर्ज करवाई कि अपर कलेक्टर का पद राज्य प्रशासनिक सेवा का पद है। इस पद पर राज्य प्रशासनिक सेवा कैडर के अफसरों की पदस्थापना की जानी चाहिए। मगर आईएएस की नियुक्ति कर राज्‍य प्रशासनिक सेवा के अफसरों का अवसर खत्‍म किया जा रहा है। 

इसके पहले प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में प्रशासक के रूप में आईएएस की नियुक्ति का प्रस्‍ताव कैबिनेट बैठक में रखे जाने की जानकारी मिलते ही चिकित्‍सक शिक्षक विरोध में मैदान में उतर आए थे। इस विरोध के बाद प्रस्‍ताव कैबिनेट में नहीं रखा गया था। 

राज्य प्रशासनिक सेवा संघ के विरोध के बाद अपर कलेक्‍टर के रूप में आईएएस की नियुक्ति रूकेगी या नहीं यह तो भविष्‍य बताएगा मगर अपने हक पर कब्‍जा देख घर बचाने के लिए राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर हर संभव कदम उठाने का मन बना चुके हैं।