कैलिफोर्निया के समुद्र में सफलतापूर्वक उतरा शुभांशु शुक्ला का यान, 20 दिन अंतरिक्ष ने रहकर धरती पर लौटे

शुभांशु ने इस मिशन पर दो रिकॉर्ड बनाए हैं। वह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय नागरिक बन गए हैं। साथ ही वो राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष में कदम रखने वाले केवल दूसरे भारतीय नागरिक हैं।

Updated: Jul 15, 2025, 03:26 PM IST

भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला भारतीय समयानुसार दोपहर तीन बजे धरती पर लौट आए हैं। वह 20 दिन की ऐतिहासिक यात्रा के बाद अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से वापस लौटे हैं। करीब 23 घंटे के सफर के बाद ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट की दोपहर 3 बजे कैलिफोर्निया के समुद्र में लैंडिंग हुई। 4 पैराशूट की मदद से यह कैप्सूल समंदर में गिरा है। अब कैप्सूल को पानी से निकालकर एक विशेष रिकवरी जहाज पर रखा जाएगा, जहां से अंतरिक्ष यात्रियों को कैप्सूल से बाहर निकाला जाएगा।

एक्सिओम-4 मिशन के तहत 25 जून को फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च हुए शुभांशु ने ISS पर कई वैज्ञानिक प्रयोग किए, जिसमें पौधों की वृद्धि और माइक्रोग्रैविटी के प्रभाव का अध्ययन शामिल था। उनकी टीम में अमेरिका की पेगी व्हिटसन, पोलैंड के स्लावोस उजनान्स्की और हंगरी के टिबोर कपु शामिल थे। चारों अंतरिक्ष यात्रियों ने सोमवार शाम 4:35 बजे (IST) ISS से निकले थे। वे ड्रैगन कैप्सूल में सवार थे. अब 22.5 घंटे की यात्रा के बाद ड्रैगन कैप्सूल कैलिफोर्निया तट के पास प्रशांत महासागर में ‘स्प्लैशडाउन’ किया गया। यह पूरी प्रक्रिया पूरी तरह सफल रही।

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से लेकर धरती पर आने तक, ड्रैगन स्टेसक्राफ्ट ने लगभग 22-23 घंटे का सफर तय किया। स्पेस स्टेशन के आसपास के सुरक्षित क्षेत्र से बाहर निकलने के बाद, कैप्सूल में बैठे अंतरिक्ष यात्रियों ने अपने स्पेससूट उतार दिए थे। धरती पर स्प्लैशडाउन के लगभग 34 मिनट पहले डी-ऑर्बिट बर्न की प्रक्रिया खत्म हुई। डी-ऑर्बिट बर्न की प्रक्रिया 18 मिनट तक चली और इसके शुरू होने से ठीक पहले ही अंतरिक्ष यात्रियों ने अपना स्पेससूट पहन लिया।

दरअसल जब कोई स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी का चक्कर काट रहा होता है और उसे वापस धरती पर लाना होता है, तो उसकी गति को कम करना आवश्यक होता है ताकि वह कक्षा से बाहर निकलकर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर सके। इसी गति को कम करने के लिए अंतरिक्ष यान के थ्रस्टर्स (छोटे इंजन) को एक निश्चित समय और दिशा में दागा जाता है। इस प्रक्रिया को ही ‘डी-ऑर्बिट बर्न' कहते हैं।

डी-ऑर्बिट बर्न की प्रक्रिया के लगभग 19 मिनट बाद ड्रैगन में लगे ट्रंक मॉड्यूलर अलग हो गए और बस कैप्सूल वाला हिस्सा बचा और उसने वायुमंडल में प्रवेश किया। इसके बाद ड्रैगन कैप्सूल लगभग 28163 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से धरती के वायुमंडल में गुजरा। इस रफ्तार से जब कैप्सूल गुजरता है तो वायुमंडल से रगड़ खाता है और घर्षण यानी फ्रिक्शन की वजह से तापमान 3,500 डिग्री फैरनहाइट तक पहुंच जाता है। ठीक यही हुआ और कैप्सूल आग के गोले जैसा दिखने लगा।

हालांकि इसका कोई असर अंतरिक्ष यात्रियों को महसूस नहीं हुआ। SpaceX के अनुसार स्पेसक्राफ्ट में लगी हीट शील्ड यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि अंदर का तापमान कभी भी 85 डिग्री फैरनहाइट (लगभग 29-30 डिग्री सेल्सियस) से ऊपर न जाए। इसके बाद बारी आई पैराशूट की। शुरू में दो पैराशूट खुले और उन्होंने ड्रैगन कैप्सूल की रफ्तार को कम किया। इसके बार दो और पैराशूट खुले और उनकी कुल संख्या 4 हो गई।

कैप्सूल की रफ्तार कम होकर लगभग 24 किमी प्रति घंटे तक आ गई। इसी रफ्तार से कैप्सूल समुंदर में गिरा। इसके बाद अंतरिक्ष यात्री कैप्सूल के अंदर ही बैठे रहे। अब एक ग्राउंड टीम वहां पहुंचेगी और कैप्सूल को समुंदर से बाहर निकालेगी। इसके बाद कैप्सूल को खोलकर अंदर बैठे अंतरिक्ष यात्रियों को बाहर निकाला जाएगा।