दफ्तर दरबारी: आईएएस को कुर्सी देने के लिए 50 साल पुरानी संस्था की बलि
MP News: मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार ने सीनियर आईएएस अशोक शाह के पुनर्वास के लिए एक तकनीकी संस्था को ही खत्म कर उसके नियम बदल दिए। इस आईएएस के वीआरएस को नई राजनीतिक बाज़ी समझा जा रहा है। साथ ही जानिए कि क्यों ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्री एक जिले के कलेक्टर से खफा हुए

लंबे समय तक महत्वपूर्ण पदों पर रहने वाले आईएएस रिटायर होने के बाद भी कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते हैं। हमेशा अर्दलियों और अधीनस्थों से घिरे रहने वाले आईएएस अफसर रिटायर होने के बाद अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं। यही कारण है कि रसूख और दबदबा बनाए रखने के लिए एक कुर्सी से उतरते ही वे दूसरी कुर्सी पर पुनर्वास की कामना करते दिखते हैं। मुख्य सचिव पद पर रहने वाले आईएएस के पुनर्वास के इंतजाम तो रिटायर होने के पहले ही हो जाते हैं लेकिन अब ऐसा ही कुछ एक वरिष्ठ आईएएस के लिए भी हुआ माना जा रहा है।
एसीएस यानी अपर मुख्य सचिव रह चुके अशोक शाह के पुनर्वास के लिए एक तकनीकी संस्था को ही खत्म कर उसके नियम बदल दिए गए हैं। 31 जनवरी में रिटायर हुए एसीएस महिला एवं बाल विकास विभाग अशोक शाह को सरकार ने दो माह भी खाली नहीं बैठने दिया है। मार्च अंत में सरकार ने एक आदेश निकाल कर अशोक शाह को कार्य गुणवत्ता परिषद का महानिदेशक बना दिया है। सरकार ने 50 साल पुरानी संस्था चीफ टेक्निकल एग्जामिनर विजिलेंस यानी सीटीई को खत्म कर कार्य गुणवत्ता परिषद का गठन किया है।
अब तक सीटीई कार्यों की गुणवत्त जांचने वाली संस्था थी। इंजीनियरों की इस संस्था के मुखिया वरिष्ठ इंजीनियर ही हुआ करते थे। नई कार्य गुणवत्ता परिषद को बनाते समय तय किया गया था कि इसका मुखिया कोई वरिष्ठ इंजीनियर ही होगा। नियमों के अनुसार किसी आईएएस को इसकी कमान नहीं दी जा सकती थी। इस नियम के कारण कार्य गुणवत्ता परिषद में रिटायर आईएएस अशोक शाह का पुनर्वास संभव नहीं था इसलिए नियम बदल कर इंजीनियर की जगह अफसर को इसकी कमान दे दी गई। इस तरह एक और तकनीकी संस्थान पर एक विशेषज्ञ की जगह आईएएस का कब्जा हो गया।
बता दें कि अशोक शाह वही आईएएस हैं जिनके बयान के कारण पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती सहित बीजेपी के कई नेता आक्रोशित हो गए थे। अशोक शाह ने लाड़ली लक्ष्मी योजना-2 कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने कहा था कि 2005 में सिर्फ 15 प्रतिशत महिलाएं अपनी बेटियों को दूध पिलाती थी और सरकार की लाड़ली लक्ष्मी योजना के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 42 प्रतिशत तक पहुंच गया है। वे बीजेपी सरकार के कामकाज की तारीफ कर रहे थे लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, बीजेपी सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री रहीं कुसुम मेहंदेले और रंजना बघेल समेत कई नेताओं ने शाह के बयान पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने इस बयान को मातृशक्ति का अपमान बताया था। माना जा रहा है कि जनजातीय वर्ग के प्रतिनिधि अशोक शाह का पुनर्वास आदिवासी वोट बैंक को साधने की बीजेपी की रणनीति का ही एक हिस्सा है।
नौकरी छोड़ एक और आईएएस करेंगे राजनीति
मध्य प्रदेश में कई अफसर ऐसे हैं जो पद पर रहते हुए राजनीतिक बिसात पर रणनीतिक चालें चलते रहते हैं। कुछ ऐसे आईएएस भी हैं जो रिटायर होने के बाद खुल कर राजनीति में आ गए हैं। इस सूची में एक और वरिष्ठ आईएएस का नाम जुड़ने जा रहा है। ये अफसर है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सचिवालय में पदस्थ रहे आईएएस बी. चंद्रशेखर।
दलित वर्ग के प्रतिनिधि आईएएस बी. चंद्रशेखर अभी जबलपुर कमिश्नर हैं। वे अजीराजपुर, झाबुआ, रतलाम, डिंडौरी, बालाघाट आदि आदिवासी जिलों में कलेक्टर रह चुके हैं। इन जिलों में खासकर झाबुआ और रतलाम में कलेक्टर रहते हुए बी. चंद्रशेखर ने आदिवासी क्षेत्रों में सरकार की हितग्राही योजनाओं को पहुंचाने का बड़ा काम किया था। एक समय तो ऐसा भी आया था जब इन क्षेत्रों में कार्य कर रहे राजनीतिक संगठनों को कलेक्टर की कार्यप्रणाली से चिंता और भय हो गया था।
अपने तय मानक और एजेंडे के साथ काम करने वाले बी. चंद्रशेखर की अभी 15 वर्षों की सर्विस बाकी है लेकिन उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का निर्णय ले लिया है। सरकार ने भी उनकी मंशा को तुरंत स्वीकार कर आवेदन को स्वीकार कर केंद्र को भेज दिया है। सरकार की इस फुर्ती से कयास लगाए जा रहे हैं कि चंद्रशेखर राजनीति में आएंगे और बीजेपी उन्हें टिकट देगी।
बी. चंद्रशेखर ने नौकरी छोड़ने का कारण सामाजिक कार्य करने की इच्छा बताया है। उन्होंने कहा है कि वे एक सामाजिक संस्था से जुड़े हैं और नौकरी के कारण उस संस्था को समय नहीं दे पा रहे थे। इसलिए माना जा रहा है कि वे इस संस्था के लिए दलितों की राजनीति रणनीतिक और मैदानी रूप से परवान चढ़ाएंगे। सरकार आईएएस बी. चंद्रशेखर का इस्तीफा स्वीकार तो कर ही चुकी है, जल्द ही उनके आगामी कदम का खुलासा भी हो ही जाएगा।
बावड़ी हत्यारिन नहीं है, सिस्टम हत्यारा है
इंदौर में बावड़ी में गिरने से तीन दर्जन लोगों की मौत पूरे शहर के लिए किसी सदमे से कम नहीं है। कई परिवारों ने अपने एक से अधिक परिजनों को खोया है। जब यह हादसा हुआ तो शुरुआती आक्रोश बावड़ी को हत्यारिन कहा जाने लगा लेकिन थोड़ी ही देर में सारा गुस्सा प्रशासन पर आ केंद्रित हो गया। वह सिस्टम जिसने राजनीतिक रसूख के आगे गलत निर्माण पर चुप्पी साधे रखी और फिर जब पीडि़तों को बचाने की बारी आई तो उसके अमले के हाथ पैर फूल गए। पहले तो अमला देरी से पहुंचा और फिर बचाव की बारी आई तो उसके पास आवश्यक संसाधन ही नहीं थे।
इसपर जनता बिफर पड़ी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ा। सांसद शंकर लालवानी, स्थानीय पार्षद सहित कलेक्टर और निगम अधिकारी जनता के निशाने पर आ गए। राजनीतिक रसूख के कारण प्रशासन ने बावड़ी बंद करने तथा अवैध निर्माण पर ध्यान नहीं दिया। इस हादसे के बाद मजिस्ट्रियल जांच और दोषियों पर एफआईआर से जनता संतुष्ट नहीं है।
वैसे यह आकलन भी आधारहीन नहीं है कि इस हादसे के दोषी अफसर भी पहले के अफसरों की तरह बच जाएंगे। इसके पहले दतिया जिले के रतनगढ़ में 2013 में भगदड़ के कारण 115 लोगों की मौत हो गई थी। रतनगढ़ में ही अक्टूबर 2006 में नदी में बहने से 49 लोगों की मौत हुई थी। यहां के दोषी अफसर शुरुआती कार्रवाई के बाद बड़े पदों पर पहुंचे। 2004 में देवास जिले के धाराजी में नर्मदा नदी में बिना अलर्ट पानी छोड़ देने से 70 लोगों की मौत हो गई थी। धाराजी हादसे के आरोपी एसडीएम के खिलाफ हाईकोर्ट ने विचाराधीन फौजदारी प्रकरण खत्म कर दिया क्योंकि एसडीएम के खिलाफ केस के लिए राज्य शासन से अनुमति आवश्यक होती है और सरकार ने यह अनुमति नहीं दी थी। पेटलावद विस्फोट में 100 लोगों की मौत हुई। इस हादसे के सभी आरोपी कोर्ट से बरी हो गए। पन्ना जिले में बस हादसे में 50 यात्री जिंदा जल गए थे। ड्राइवर और बस मालिक को सजा सजा हुई लेकिन परमिट जारी करने वाले परिवहन अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
साफ है कि मध्य प्रदेश में लापरवाही से हुए हादसों का इतिहास पुराना है और दोषियों का छूट जाना भी नया नहीं है। इंदौर की घटना पर कहा गया कि ऐसे मामलों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए मगर सबसे ज्यादा राजनीति भी हो रही है। परिजनों को खो चुके परिवारों के दर्द की दवा नहीं है मगर दोषियों को सजा की राह भी नहीं है।
सिंधिया समर्थक मंत्री क्यों भड़क गए कलेक्टर पर
गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के गृहक्षेत्र दतिया में दिव्यांगों के जीवन में बदलाव लाने के लिए एक शिविर का आयोजन किया गया था। इस शिविर में जहां 815 दिव्यांगों को ट्राइसाइकिल और इलेक्ट्रॉनिक्स मोटो ट्राइसाइकिल दी गई है। इस आयोजन में मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार, सांसद संध्या राय और बीजेपी युवा नेता व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के पुत्र सुकर्ण मिश्रा शामिल हुए। इस कार्यक्रम में सब खुश थे मगर लोक निर्माण राज्यमंत्री सुरेश धाकड़ राठखेड़ा का मन बुझ गया। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक राज्यमंत्री सुरेश धाकड़ दतिया के प्रभारी मंत्री हैं।
पूरे कार्यक्रम में तो प्रभारी मंत्री सुरेश धाकड़ शांत रहे लेकिन जाते-जाते दतिया कलेक्टर संजय कुमार पर उखड़ गए। जब प्रभारी मंत्री धाकड़ को दतिया कलेक्टर संजय कुमार पर भड़कते देखा गया तो लोग कारण की पड़ताल करने में जुट गए। पता चला कि कार्यक्रम के पोस्टर में सभी अतिथियों के फोटो थे लेकिन प्रभारी मंत्री सुरेश धाकड़ का ही फोटो नहीं था।
कलेक्टर संजय कुमार पर आक्रोशित मंत्री धाकड़ की पीड़ा यह है कि जब भी किसी सरकारी कार्यक्रम का पोस्टर-होर्डिंग छपवाया जाता है तो उनका फोटो नहीं लगाया जाता है। मंत्री सुरेश धाकड़ ने कलेक्टर पर गुस्सा जरूर निकाल लिया लेकिन उनके फोटो का न होना प्रशासनिक निर्णय कम और राजनीतिक समीकरण अधिक दिखाई देता है।