नहीं रहे कांग्रेस के संगठन पुरोधा महेश जोशी

बेबाक़ मगर ज़िम्मेदार, कठोर मगर कर्मठ और सबको जोड़कर रखनेवाले महेश जोशी का 9 अप्रैल की रात निधन हो गया , वो कुछ समय से बीमारी से जूझ रहे थे

Updated: Apr 09, 2021, 09:41 PM IST

"हां सुगन सेठ मेरे दोस्त थे और उनके परिजनों की मदद करना कोई गुनाह नहीं है"

इतनी बेबाक बात महेश जोशी जैसा नेता ही कर सकता था। मैं दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता था और राजकुमार केसवानी हमारे संपादक थे। इंदौर विकास प्राधिकरण के संचालक मंडल की बैठक एक-दो दिन बाद होना थी और उसमें जमीन से जुड़े एक मामले में अहम फैसला होना था। पंडित कृपाशंकर शुक्ला तब आइ डी ए के चेयरमैन थे। बड़ी चर्चा थी कि अपने मित्र स्वर्गीय सुगन चंद्र अग्रवाल के बेटे मनीष अग्रवाल से जुड़े जमीन के किसी मामले में महेश जोशी पंडित जी पर दबाव बनाकर कोई फैसला करवाना चाहते हैं। केसवानी जी ने मुझसे कहा यार इस मुद्दे पर महेश जोशी से ही बात क्यों नहीं करते।

तब रात के 8 बज रहे थे मैं भास्कर के दफ्तर से निकला और पलासिया स्थित पीडब्ल्यूडी क्वार्टर पहुंचा जहां महेश भाई अपने इंदौर प्रवास के दौरान रुका करते थे। कुछ लोग वहां बैठे थे मुझे देखते ही बोले अरविंद तुम यहां कैसे ? मैंने कहा आपसे अखबार के लिए बात करनी है। बोले तुम आए हो तो बात करनी ही पड़ेगी वरना इन दिनों मैं अखबार वालों से दूर ही रहता हूं। बापू सिंह मंडलोई भी वहां मौजूद थे जैसे ही मैंने विषय छेड़ा महेश भाई बोले देखो प्यारे तुमको मालूम है सुगन सेठ मेरे दोस्त थे, मेरे सुख दुख के साथी और मेरी एक आवाज पर थैली खोल कर खड़े हो जाते थे। आज वह नहीं है और उनके बेटे की मदद करके मैं कोई गलती नहीं कर रहा हूं। इसका काम सही है और वह हर हालत में होगा मैं इसकी पूरी मदद करूंगा।

बाद में बहुत सारे मुद्दों पर जोशी जी से हुई, माफिया कौन इंदौर की कांग्रेस राजनीति, दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री काल में महेश जोशी का दबदबा। हर सवाल का जवाब उन्होंने अपने अंदाज में ही दिया। दफ्तर से लौटकर बैठे संपादक जी को जब सब कुछ बताया तो वह भी बोले इतनी बेबाकी से महेश जोशी ही बोल सकते हैं।

हमने भास्कर में उनका यह इंटरव्यू 5 कॉलम में छापा और अगले दिन सुबह जब अखबार जनता के बीच पहुंचा और जो फीडबैक मिला उसके बाद उन्होंने मुझे फोन कर कहा अरविंद तुमसे किसी ने यह तो नहीं कहा ना की महेश भाई से कौन से संबंध निभा रहे हो। जोशी परिवार से मेरा पारिवारिक रिश्ता दो पीढ़ियों का है। अपने बड़े भाई मणि शंकर जोशी को वह पिता जैसा सम्मान देते थे और जो दा सा ने कह दिया वह उनके लिए पत्थर की लकीर के समान था।

मैंने दिल्ली और भोपाल में उन्हें कई बार पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं पर बरसते हुए देखा। दिग्विजय सिंह तो मुख्यमंत्री बनने के पहले और बाद में कई बार उनका कोपभाजन बने लेकिन राजा हमेशा उनकी नाराजगी को हंसते-हंसते स्वीकार कर लेते थे। 1993 में दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवाने में पर्दे के पीछे जो लोग बहुत अहम भूमिका में थे उनमें महेश जोशी पहले तीन में थे। जब जीतने के बाद भोपाल में कांग्रेस के विधायक एकजुट होने लगे थे तो उन्हें दिग्विजय सिंह के पक्ष में लामबंद करने में महेश भाई ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। इंदौर में भले ही उनके समर्थक चुनाव हार गए थे लेकिन प्रदेश में कई जगह उनके द्वारा चयनित लोग चुनाव जीते थे।

 सुभाष यादव जिनके बारे में यह कहा जा रहा था कि वही अर्जुन सिंह की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे और दाऊ साहब इन्हीं की मदद करेंगे का तो जब c-19 शिवाजी नगर में महेश भाई से आमना-सामना हुआ तो उन्होंने कहा महेश भाई कभी हमारी भी मदद करो हमने भी आपको अपना नेता माना है।  इस बार मदद कर दो आपका बड़ा एहसान रहेगा।  लेकिन वचन के पक्के महेश भाई दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवाकर ही माने। 
 
सही कहा जाए तो संगठन के पुरोधा महेश जोशी के साथ कांग्रेस ने कभी न्याय नहीं किया। वह बहुत कुशल संगठक थे मुख्यमंत्री बनने के पहले जब दिग्विजय सिंह प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे तब कांग्रेस को तीन ही लोगों ने चलाया महेश जोशी, हरवंश सिंह और स्वरूप चंद जैन जोशी दफ्तर संभालते थे हरवंश सिंह विधानसभा वार दावेदारों की हकीकत पर तहकीकात करते थे और स्वरूप चंद जैन के जुम्मे पार्टी का अर्थ तंत्र था इन्हीं तीनों के भरोसे संगठन को छोड़ दिग्विजय सिंह ने प्रदेश का चप्पा चप्पा छान मारा था और उस इसका फायदा उन्हें आज तक मिल रहा है।

महेश भाई सुबह 10 बजे दफ्तर पहुंच जाते थे और रात को 8 बजे जब उनकी टेबल से अंतिम कागज का डिस्पोजल ना हो जाए उठते नहीं थे। दोपहर 12बजे उनके घर से 10-12 लोगों का टिफिन आ जाता था आधे घंटे के लिए सारा कामकाज बंद कर पूरी टीम के साथ खाना खाते और फिर अपने काम में लग जाते थे। एक दिन में सौ-सौ चिट्टियां वह अपने हाथ से लिखते थे। उनकी कोशिश रहती थी कि जो भी पत्र पार्टी के दफ्तर पहुंचे उसका जवाब जरूर दिया जाए। सैकड़ों लोगों से वे पार्टी के दफ्तर में मिलते थे और उनकी समस्या का संबंधित जिले के अफसर को फोन लगाकर निराकरण करवाते थे। 

देश की युवक कांग्रेस की राजनीति में वे उस समय मुख्य रणनीतिकार थे जब अंबिका सोनी और प्रियरंजन दास मुंशी जैसे नेता युवक कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे। जोशी तब युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव थे। शरद पवार,गुंडू राव, अशोक गहलोत , गुलाम नबी आजाद,जनार्दन सिंह गहलोत, संजय सिंह अमेठी और  सतीश चतुर्वेदी जैसे नेता अलग-अलग प्रांतों में युवक कांग्रेस के कर्णधार थे और जोशी के नेतृत्व में काम करते थे। अंबिका सोनी जब यूथ कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष थी तब इंदौर में महेश भाई ने उनका ऐसा भव्य स्वागत करवाया था जो सालों तक लोगों के मानस पटल पर अंकित रहा। 

सत्ता की बजाए संगठन हमेशा महेश भाई की प्राथमिकता रहा पर उनकी संगठन क्षमता का कांग्रेस कभी ना तो प्रदेश में ना ही देश में सही उपयोग कर पाई। दिग्विजय सिंह एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने उनकी संगठन क्षमता को आंका और उसका भरपूर उपयोग किया। इंदिरा गांधी जरूर महेश जोशी की संगठन क्षमता को पहचानती थी और उन्होंने उसका कई मौकों पर बखूबी उपयोग किया।

यह बहुत कम लोगों को मालूम है कि जितना  दबदबा जोशी जी का मध्य प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में था उतना ही दबदबा उनका राजस्थान की राजनीति में भी रहा। चाहे हरिदेव जोशी वहां के मुख्यमंत्री रहे हो चाहे अशोक गहलोत हमेशा जोशी जी की बात को तवज्जो मिली।  उनके गृह क्षेत्र कुशलगढ़ में तो यह स्थिति थी कि जिस पर जोशी जी हाथ रख देते थे, वह व्यक्ति विधायक बन जाता था। मामा बालेश्वर दयाल को वह अपना आदर्श मानते थे। 

अपने बेटे पिंटू जोशी को यदि वे विधायक नहीं बनवा पाए तो इसके पीछे भी एकमात्र कारण उनका संगठन के प्रति निष्ठावान होना रहा। पिछले चुनाव में उन्होंने तय कर लिया था कि बेटे पिंटू को हर हालत में चुनाव लड़वाएंगे उनके लिए यह काम ज्यादा मुश्किल भी नहीं था क्योंकि तब उनके खासम खास अशोक गहलोत कांग्रेस के संगठन प्रभारी थे, गुलाम नबी आजाद बहुत अहम भूमिका में थे। कई और नेता थे जो महेश भाई की खुलकर मदद करते।‌ इंदौर की उनकी पूरी टीम भी पिंटू के लिए मैदान संभाल चुकी थी। लेकिन ऐन वक्त पर संगठन के प्रति उनकी भावनाओं का दोहन करते हुए दिग्विजय सिंह ने उन्हें इस बात के लिए राजी कर लिया कि महेश भाई इस बार तो भतीजे अश्विन को ही चुनाव लड़ने दो पिंटू को अगली बार मौका दे देंगे। 

महेश जोशी पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। तीन दशक तक उन्होंने इंदौर में राज किया। वे हमारी पूंजी थे और हम बहुत गर्व से कहते थे कि महेश भाई हमारे इंदौर के नेता हैं।  इंदौर नगर निगम के पार्षद से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने के पहले वह किसी स्कूल में बहुत  मामूली वेतन पर शिक्षक थे। 1972 में वे पहली बार विधायक बने। 77 की जनता लहर में ओमप्रकाश रावल से चुनाव हार गए। 80 और 84 में फिर विधायक बने अर्जुन सिंह और मोतीलाल वोरा के मंत्रिमंडल में वन राज्यमंत्री आवास एवं पर्यावरण मंत्री तथा स्वास्थ्य मंत्री रहे। 1990 के विधानसभा चुनाव में वे गोपी नेमा के हाथों पराजित हुए। इसके बाद कई साल चुनावी राजनीति से दूर रहे फिर एक बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं की इंदौर के सारे कांग्रेसियों ने मिलकर उन्हें चुनाव हरवा दिया। ऐसा करने के पीछे इन नेताओं का मकसद जोशी के बढ़ते राजनीतिक कद पर विराम लगाना था, पर ऐसा हो नहीं पाया। नौकरशाही को महेश जोशी ने हमेशा सूत सावल में रखा।

कहा जाता है कि जब वे विधायक या मंत्री थे तब उनके चश्मा खिसका कर देख लेने भर से अफसरों के पसीने छूट जाते थे। 72 में जब वे पहली बार विधायक बने तब पीसी सेठी उन्हें अपने मंत्रिमंडल में लेना चाहते थे लेकिन पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र के शिष्य जोशी ने कुछ शर्ते रख दी‌। फिर उन्हें 10 साल बाद मंत्री पद नसीब हुआ लेकिन इसका उन्हें कभी गिला नहीं रहा। मंत्री न रहते हुए भी किसी भी मंत्री से ज्यादा पावरफुल थे। मंत्री बने भी तो मुख्यमंत्री का पिछलग्गू रहने की बजाय कैबिनेट में बिंदास तरीके से अपनी राय रखते थे और अपना विभाग अपने हिसाब से ही चलाते थे।  1980 में इंदिरा गांधी उन्हें इंदौर से लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहती थी लेकिन अंतिम दौर में बाबू घनश्याम दास बिरला ने उन्हें प्रकाश चंद्र सेठी के नाम पर सहमत कर लिया।  

इंदौर में जब नई दुनिया की तूती बोलती थी तब महेश भाई ने उनसे लड़ाई लड़ी। उन्होंने लोकस्वामी अखबार का प्रकाशन नई दुनिया को चुनौती देने के लिए शुरू किया था। दुर्भाग्य से आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण बाद में उन्होंने इस प्रकाशन से किनारा कर लिया। दिल्ली और भोपाल दोनों जगह पत्रकार मित्रों की उनकी एक मंडली थी जिनके साथ वे नियमित संवाद करते थे। 

महेश भाई बहुत संवेदनशील भी थे। इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि अजीत जोगी से उनकी कभी नहीं पटी। कहा तो यह भी जाता है कि इंदौर के रविंद्र नाट्य ग्रह में कांग्रेस के एक संभागीय सम्मेलन में जोगी की पिटाई जोशी की शह पर ही हुई थी, लेकिन जब जोगी की बेटी ने सुसाइड कर लिया तो जोशी ही पहले व्यक्ति थे जो सारा काम छोड़ संकट के इस दौर में जोगी के साथ खड़े रहे। जब अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश की राजनीति से दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद अचानक विदा कर दिए गए तो चाहे वह पंजाब के राज्यपाल रहे हों, या केंद्र में संचार मंत्री जब भी भोपाल आते थे उनके कार्यक्रमों में से एक बड़ा कार्यक्रम महेश जोशी की अगुवाई में ही होता था। अर्जुन सिंह उन्हें हमेशा भाई साहब ही कहते थे। जिससे महेश भाई की ठन जाती थी उसका वह पूरा इंतजाम भी कर देते थे। 

महेश भाई हम को कभी भुला नहीं पाएंगे आप हमारी पूंजी थे आपने इस शहर में नेताओं की तीन पीढ़ी तैयार की है इस शहर के विकास में भी आपका बड़ा योगदान रहा है और आपने हमेशा राजनीतिक नजरिए से अलग हटकर संबंध निभाए हैं। दिल्ली में आपके मजबूत राजनीतिक संबंधों के कारण इंदौर को ओडीए जैसा बड़ा प्रोजेक्ट मिला। चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय की परिकल्पना को आपने स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए अंतिम रूप दिलवाया। 

 यह कौन भूल सकता है कि जब आप आवास मंत्री थे तब आपने कांग्रेस से ज्यादा जनता पार्टी और भाजपा के नेताओं को इंदौर की अलग-अलग आवासीय बस्तियों में प्लाट और मकान दिलवाए। आपके विरोधी भी आपकी तारीफ ही करते हैं। आवास मंत्री रहते हुए आपने सतीश कंसल जैसे इंदौर के जानकार आईएएस अफसर को प्राधिकरण का अध्यक्ष बनवाया और उसी दौर से इंदौर में बुनियादी सुविधाओं को व्यवस्थित करने का काम शुरू हुआ।

भोपाल का सिविल लाइंस स्थित उनका बंगला इंदौर के लोगों के लिए हमेशा खुला रहता था। वहां जब तक इंदौर के 25- 50 लोग रोज भोजन न कर ले उन्हें आनंद ही नहीं आता था। के के मिश्रा जब प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता बन भोपाल पहुंचे तो जोशी जी ने उनसे कहा देखो के के तुम रहो भले ही कहीं लेकिन खाना तुम्हारे लिए यही से आएगा। सालों तक मिश्रा जी का भोजन जोशी जी के बंगले से ही आता था। पंगत के साथ संगत यह उनका पसंदीदा मुहावरा था और उनके अंतिम समय तक उनसे जुड़े रहे अजय चौरडिया और अशोक धवन जैसे साथी ही बता सकते हैं कि कैसे उन्होंने दिग्विजय सिंह को भी इस फार्मूले पर तैयार कर लिया था। 2018 के चुनाव के पहले राजा मध्य प्रदेश में जहां भी गए इसी फार्मूले पर उन्होंने सारे आयोजन किए।

कितना कहें क्या क्या कहें,जोशी जी के लिए जो कहा जाए वह कम है।‌ पंडित कृपाशंकर शुक्ला, उजागर सिंह, शिवदत्त सूद, इंदर सिंह चावड़ाऔर अशोक शुक्ला उनके शुरुआती दौर के राजनैतिक हमसफर थे। पंडित जी कुछ साल पहले शहर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के दौरान जोशी जी का साथ छोड़कर सज्जन वर्मा की अगुवाई में बनी इंदौरी यूपीए का दामन थाम लिया था। इसका गिला जोशी जी को सालों रहा लेकिन पंडित जी के साथ अपनी मित्रता में उन्होंने कभी कटुता नहीं आने दी।
"एक जवां मर्द नेता महेश जोशी का अवसान इंदौर की ही नहीं मध्य प्रदेश की राजनीति में एक युग का अंत है।*

*शत शत नमन महेश भाई।*