दफ्तर दरबारी: अब भी आखिरी बॉल पर छक्के की उम्मीद
New Chief Secretary of MP: यह एकदम बेहद दिलचस्प क्रिकेट मैच की तरह है। वह मैच जिसमें जीत के लिए छह रन चाहिए और बेट्समेन लास्ट बॉल पर छक्का मार देता है। क्या एकबार फिर आईएएस अनुराग जैन अंतिम गेंद पर छक्का मारेंगे?

उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। अब मात्र तेरह दिन बचे हैं, जिस दौरान मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव का फैसला हो जाएगा। मोहन यादव सरकार ने अब तक फैसला सार्वजनिक नहीं किया है कि 30 अगस्त को रिटायर हो रहे वर्तमान मुख्य सचिव अनुराग जैन का क्या होगा? क्या सरकार पिछले सीएस की तरह उनके कार्यकाल में वृद्धि की अनुशंसा करेगी या नहीं? क्या पिछली बार की तरह केंद्र सरकार तो यह निर्णय नहीं लेगी?
प्रदेश के सबसे बड़े प्रशासनिक पद पर आईएएस अनुराग जैन की पदस्थापना भी ऐसी ही कशमकश भरी हुई थी। 30 सितंबर 2024 को तत्कालीन मुख्य सचिव वीरा राणा रिटायर हो गई थी। उनकी विदाई भी हो गई लेकिन शाम तक नए मुख्य सचिव को लेकर असमंजस बना हुआ था। माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. राजेश राजौरा ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पसंद है और उनकी नियुक्ति का रास्ता साफ है। यहां तक कि डॉ. राजेश राजौरा को बधाई भी दी जाने लगी थी लेकिन नियुक्ति आदेश जारी हुए आईएएस अनुराग जैन के।
तब अनुराग जैन केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर थे। 1 जनवरी 2015 से प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव बनाए गए अनुराग जैन पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल में 2020 में भी प्रतिनियुक्ति पर गए थे। पीएमओ में उनके कामकाज से प्रधानमंत्री मोदी खुश बताए जाते हैं। यही कारण माना गया कि राज्य सरकार की पसंद को पीछे कर केंद्र ने आईएएस अनुराग जैन की प्रतिनियुक्ति खत्म कर भोपाल भेज दिया था।
अब 30 अगस्त को अनुराग जैन रिटायर हो रहे हैं। प्रशासनिक जगत में चर्चा है कि केंद्र उनकी सेवाओं को छह माह तक बढ़ा सकता है। इसकी वजह सीएस अनुराग जैन द्वारा किए जा रहे कार्य हैं। माना जा रहा है कि उन्होंने प्रशासनिक सुधार का जो कार्य हाथ में लिया है उसे जारी रखने के लिए अधिक समय दिया जाना चाहिए।
दूसरी तरफ, डॉ. राजेश राजौरा समर्थक मान रहे हैं कि एक वर्ष पहले जो बाजी डॉ. राजेश राजौरा के हाथ से छूट गई थी वह पद अब उनके बेहद करीब हैं। मीडिया में नाम चलाए जाने की तुलना में वे वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं। वे उत्साह में कोई प्रतिक्रिया देने की जगह डॉ. राजेश राजौरा के पक्ष में निणर्य आने की उम्मीद कर रहे हैं।
दोनों पक्ष के अपने-अपने तर्क और उम्मीद हैं। धीरे-धीरे दिन गुजर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने अब भी कोई संकेत नहीं दिए हैं। माना जा रहा है कि पिछली बार की तरह ही केंद्र दखल दे कर अनुराग जैन को सेवावृद्धि दे देगा। सो अब 30 अगस्त का ही इंतजार है जब प्रदेश के 36 वें मुख्य सचिव का फैसला होगा।
सीधी भर्ती के आईएएस जाएंगे कहां?
कड़ा परिश्रम कर भारतीय प्रशासनिक सेवा में आए अफसरों के सामने भी बडा संकट है, आखिर जाएं तो जाएं कहां? सरकार लंबे समय से फील्ड में पोस्टिंग के लिए प्रमोटी आईएएस पर अधिक भरोसा दिखा रही हैं। ऐसे में निकट भविष्य में खाली होने वाले पदों पर जितनी निगाहें सीधी भर्ती के आईएएस की लगी है उतनी ही प्रमोटी आईएएस की भी।
अभी प्रदेश के 10 संभागों में से 6 में प्रमोटी आईएएस संभागायुक्त बनाए गए हैं। इंदौर जैसे बड़े संभाग में भी प्रमोटी आईएएस ही पदस्थ हैं। भोपाल, नर्मदापुरम और शहडोल में सीधी भर्ती के आईएएस संभागायुक्त हैं। अगले तीन महीनों में जबलपुर कमिश्नर अभय वर्मा सहित 3 संभागायुक्त रिटायर हो रहे हैं। इन पदों के लिए सीधी भर्ती के आईएएस अजय गुप्ता, प्रियंका दास, अविनाश लवानिया, सूफिया फारुखी, टी. इलैया राजा, आदि के नाम चर्चा में हैं। जबकि प्रमोटी आईएएस अनुभा श्रीवास्तव, सतेंद्र सिंह और मनीष सिंह भी दावेदार हैं।
यदि सरकार ने प्रमोटी आईएएस को संभागायुक्त बनाने की परंपरा कायम रखी तो सीधी भर्ती के आईएएस भोपाल में विभागाध्यक्ष जैसे पदों पर बने रहने को विवश होंगे। राजधानी में अफसरों की भरमार है कि यहां मैदान जैसा सुकून और काम का आनंद नहीं है। लिहाजा अफसर या तो पूरी ताकत लगा कर मैदानी पोस्टिंग पाने का जतन करेंगे या या दिल्ली की राह पकड़ेंगे।
मेट्रोपॉलिटन सिटी में सजा उम्मीद का बाजार
डुगडुगी बज चुकी है, घोषणा हो गई है, विधानसभा में बिल पास हो चुका है, तैयारी अंतिम चरण में हैं। इंदौर और भोपाल जल्द ही मेट्रोपॉलिटन सिटी होंगे। इसके बाद ग्वालियर और जबलपुर का नंबर है।
अगले कुछ माह में मेट्रोपॉलिटन रीजन एंड मेट्रोपॉलिटन प्लानिंग सोसायटी का गठन होगा। समिति में 12 सदस्य होंगे। समिति के अध्यक्ष सीएम खुद होंगे जबकि प्रशासनिक क्षेत्र से मेट्रोपॉलिटन आयुक्त नियुक्त होंगे। शेष नियुक्तियां राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र से होंगी। मेट्रोपॉलिटन सिटी चार से पांच जिलों को मिला कर बनाई जाएगी। जाहिर है, इसका मेट्रोपॉलिटन आयुक्त का कार्यक्षेत्र और अधिकार संभागायुक्त की तुलना में अधिक होंगे। मेट्रोपॉलिटन सिटी से जुड़े निर्माण, विकास तथा नियोजन के सारे काम सोसायटी ही देखेगी तो आयुक्त के पास अधिक पॉवर होंगे। नियमों के अनुसार सचिव या उससे ऊपर के पद का आईएएस मेट्रोपॉलिटन सोसायटी का आयुक्त हो सकेगा।
पहला मेट्रोपॉलिटन आयुक्त बनना पोस्टिंग के लिहाज से ही नहीं पॉवर रेस के हिसाब से भी अहम् है। यही वजह है कि सोसायटी में आयुक्त बनने की संभावना के साथ आईएएस अफसरों ने लॉबिंग शुरू कर दी है। जिस तरह से इंदौर और भोपाल में पुलिस कमिश्नर बनने के लिए आईपीएस में होड़ थी वैसे ही आईएएस अपने ट्रेक रिकार्ड के साथ ही अपने पॉलिटिकल कनेक्शन को भी आजमा रहे हैं।
आ गए चार रिटायर्ड अफसरों के अच्छे दिन
प्रदेश में लगभग 300 अफसरों के खिलाफ विभिन्न मामलों में जांच और कार्रवाई लंबित है। सवाल उठता है कि क्या मध्यप्रदेश सरकार भ्रष्ट अफसरों पर मेहरबान है क्योंकि सरकार विभिन्न मामलों में अफसरों पर जांच के लिए लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू को मंजूरी नहीं दे रहा। सरकार की मंजूरी न मिलने के काऱण इनके खिलाफ चार्जशीट ही पेश नहीं हो पा रही। जांच एजेंसियां बार-बार स्वीकृति के लिए सरकार को पत्र लिखती है और सरकार पत्रों को पेपरवेट के नीचे दबा देती है।
यह संख्या आईएएस जैसे प्रभावी अफसरों की हैं। ये अफसर जब तक सर्विस में रहते हैं तब तक प्रभाव के चलते आर्थिक अपराध जैसे मामलों में भी कार्रवाई रुक जाती है। मगर एक बार फाइल खुल गई तो उसपर कार्रवाई का खतरा बना रहता है। अधिकांश अफसर रिटायर्ड होने के बाद पेंशन रुकने से लेकर अन्य सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं, जबकि केस की सुनवाई के लिए बार-बार कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
ऐसे में 3 रिटायर्ड आईएएस और 1 रिटायर्ड आईपीएस के लिए फील गुड है कि उन्हें जांच और कार्रवाई से मुक्ति मिल गई है। तीन आईएएस का मामला ग्वालियर में स्वैच्छानुदान वितरण से जुड़ा है। 2017 में दर्ज मामले के अनुसार रिटायर आईएएस तथा तत्कालीन निगम आयुक्त वेद प्रकाश शर्मा, विनोद शर्मा और एनबीएस राजपूत को भी दोषी पाया गया था। सरकार ने पाया कि स्वैच्छानुदान देने में आयुक्तों की भूमिका नहीं थी। इसलिए इन अफसरों पर जांच के लिए लोकायुक्त को इंकार कर दिया है। नगरीय विकास विभाग ने तत्कालीन महापौर समीक्षा गुप्ता, नेता प्रतिपक्ष शम्मी शर्मा और पार्षद डॉ. अंजली रायजादा को जिम्मेदार मानते हुए उनके तीन वर्ष चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई है।
इसी तरह, रिटायर्ड डीआईजी अखिलेश झा को भी राहत मिली है। आईपीएस अखिलेश झा ने जून 2012 से 2014 तक अलीराजपुर एसपी के रूप में पदस्थ रहते हुए गुंडा दस्ता बंद करने के निर्देश के बाद भी गुंडा दस्ता का गठन किया। इस दौरान एक व्यक्ति की हिरासत में मौत हो गई थी। विभागीय जांच शुरू हुई थी। उन्हें इंदौर संभाग के पुलिस महानिदेश विपिन माहेश्वरी ने आरोप पत्र जारी किया था। इस मामले में जांच में देरी के कारण सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद सरकार ने रिटायर्ड आईपीएस अखिलेश झा की विभागीय जांच खत्म कर दी है।