जी भाईसाहब जी: बीजेपी कार्यकर्ता ने कहा, हमारे विधायक ने वोट चुराए

MP Politics: देशभर में वोट चोरी की चर्चा है। ऐसे में मध्‍य प्रदेश से भी एक मामला सुर्खियों में आ गया है। मामला इसलिए भी गंभीर है कि विपक्ष ने नहीं बल्कि बीजेपी के कार्यकर्ता ने ही बीजेपी विधायक पर वोट चोरी का आरोप लगाया है। 

Updated: Aug 13, 2025, 03:28 PM IST

बीजेपी विधायक अशोक रोहाणी
बीजेपी विधायक अशोक रोहाणी

वोट चोरी के आरोप के साथ देश में विपक्ष सड़क पर और अदालत में लड़ाई लड़ रहा है। ऐसे ही मध्‍य प्रदेश में भी एक बीजेपी कार्यकर्ता निशांत शर्मा ने अपनी ही पार्टी के विधायक अशोक रोहाणी पर आरोप लगाया है कि उनके विधायक ने वोट चुराए हैं। स्‍वयं को बीजेपी का कार्यकर्ता बताने वाले निशांत शर्मा के मुताबिक जबलपुर के छावनी क्षेत्र के करीब 25 हजार नागरिकों के नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए थे। यह विधायक अशोक रोहाणी पर सीधे आरोप है। इसके बाद उन्होंने मार्च 2023 में एक बैठक बुलाई थी लेकिन इस दौरान उन पर हमला हो गया। निशांत का आरोप है कि वोट चोरी को मुद्दा बनाते ही विधायक ने उन पर हमला करवाया था। पुलिस ने मामला दर्ज जांच शुरू कर दी दी। 

लेकिन इस हमले के बाद भी निशांत शर्मा चुप नहीं बैठे और केंद्र व राज्य सरकार के साथ-साथ निर्वाचन आयोग को बार-बार पत्र लिखे। उनकी अपील पर कोर्ट ने सुनवाई की है। प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारिका प्रसाद सूत्रकार ने विधायक रोहाणी को समन जारी करते हुए 2 सितंबर को कोर्ट में हाजिर होने के निर्देश दिए हैं। इस दौरान निशांत शर्मा पर हुए हमले की सुनवाई होगी। जब बात उठेगी तो 25 हजार मतदाताओं के नाम गायब होने का मुद्दा भी गर्माएगा। वर्चस्‍व की राजनीति में हजारों की संख्‍या में मतदाताओं के नाम गायब हो जाना राजनीतिक तिकड़म का ही एक रूप हो सकता है। फिलहाल तो बीजेपी के विधायक पर बीजेपी के ही कार्यकर्ता का मोर्चा खोलना बीजेपी की अंदरूपी राजनीति का भी हिस्‍सा है। 

कलह से निपटने की तैयारी है बीजेपी में रायशुमारी 

कहने तो यह नवाचार है कि जिलास्‍तर पर कार्यकारिणी के गठन के लिए बीजेपी रायशुमारी कर रही है। जिलों में भोपाल से पर्यवेक्षक भेजे गए हैं जो कार्यकर्ताओं और नेताओं से चर्चा कर जिले की संभावित कार्यकारिणी तय करेंगे। रायशुमारी के बाद पर्यवेक्षक कार्यकारिणी की सूची संगठन को सौंपेंगे। इसके समानांतर जिलाध्‍यक्ष भी अपनी कार्यकारिणी की सूची संगठन को भेजेगा। इन दोनों सूचियों के अनुसार प्रदेश संगठन जिलों की कार्यकारिणी तय करेगा। 

ऐसा पहली बार हो रहा है जब जिला कार्यकारिणी के लिए भी रायशुमारी की जा रही है। बीजेपी इसे नया प्रयोग कह रही है। वास्‍तव में यह नवाचार कलह से निपटने का साधन है। जिलों में विधायकों और अन्‍य नेताओं के बीच वर्चस्‍व का इतना संघर्ष है कि जिलाध्‍यक्ष दबाव में हैं कि वे कार्यकारिणी में किस लें और किसे छोड़े। प्रदेश अध्‍यक्ष के चुनाव में देरी के कारण जिला कार्यकारिणी तय होने में पहले ही देरी हो चुकी है। जिलाध्‍यक्ष अकेले ही जिला संगठन संभाल रहे हैं। अब कार्यकारिणी तय करने का हक भी उनके हाथ से जाता रहा है। प्रदेश संगठन टीम तय करेगा तो जिलाध्‍यक्ष सर्वगुटीय टीम को संभालते संभालते कितना काम कर पाएंगे, देखना दिलचस्‍प होगा।  

सीहोर में मौतों के लिए सरकार जिम्‍मेदार क्‍यों नहीं?

सीहोर में स्थित कुबेरेश्वर धाम के पंडित प्रदीप मिश्रा द्वारा आयोजित कावड़ यात्रा, रुद्राक्ष वितरण कार्यक्रम में शामिल होने आए श्रद्धालुओं में से 7 की मौत हुई। कावड़ यात्रा प्रारंभ होने के एक दिन पहले से शुरू हुआ मौतों का सिलसिला लगातार तीन दिन तक जारी रहा। इस दौरान कार्यक्रम यथावत चलता रहा। डीजे की धूम में मौतों की चित्‍कार खो कर रह गई। 

श्रद्धालुओं की मौत पर सरकार और आयोजन समिति दोनों ने ही पल्‍ला झाड़ लिया। जिला प्रशासन ने केवल डीजे संचालकों पर तय सीमा से अधिक शोर करने पर मामला दर्ज किया लेकिन लोगों की मौत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जबकि कुबेरेश्‍वर धाम में श्रद्धालुओं की मौत का यह पहला मामला नहीं है। इसके पहले के सालों में भी रेलमपेल की स्थिति तथा इंदौर-भोपाल हाईवे पर घंटों जाम लगा रहा है। 

अगले कार्यक्रमों में ऐसे भगदड़ से बचने के लिए प्रशासन ने अब भोपाल के अफसरों के हाथ में व्‍यवस्‍था देने का निर्णय लिया है लेकिन सवाल यह है कि श्रद्धालुओं की मौतों का जिम्मेदार आखिर कौन है? जब बेंगलुरु के चिन्‍नास्‍वामी क्रिकेट स्‍टेडियम के बाहर भगदड़ से 11 लोगों की मौत हुई तो सरकार की जवाबदेही पूछी गई थी। सरकार ने आयोजकों को जिम्‍मेदार बताया था जिन्‍होंने अनुमति नहीं ली। यदि सीहोर में आयोजन समिति ने अनुमति ले कर इतनी भीड़ इकट्ठा की थी तब तो यह सरकार की लापरवाही है कि उसने की उपयुक्‍त व्‍यवस्‍था नहीं की। रात गई बात गई की तर्ज पर आयोजन खत्‍म होते ही सरकार और आयोजन समिति दोनों की मौत की जवाबदेही को भूला चुकी हैं। 

युवा कांग्रेस के सदस्‍यता अभियान के कई मायने  

संभवत: यह पहली बार है जब युवा कांग्रेस का सदस्‍यता अभियान चला कर 15 लाख युवाओं को सदस्‍य बनाया गया। इस सदस्‍यता अभियान के आंकड़ें कई तथ्‍य साफ करते हैं। मसलन, सीएम डॉ. मोहन यादव के गृह नगर उज्जैन से सबसे ज्यादा 74 हजार युवाओं ने युवा कांग्रेस जॉइन की। सबसे कम 574 सदस्य हरदा जिले से बने। छिंडवाड़ा से 3,287 युवाओं ने सदस्यता ली। जबकि नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के गृह जिले धार से 55 हजार युवा शामिल हुए। भोपाल शहर में 53 हजार और भोपाल ग्रामीण में 11 हजार युवाओं ने सदस्यता ली। 

यह जानकारी राजनीतिक रूप से रोचक है। एक तो युवाओं का कांग्रेस की सदस्‍यता ग्रहण करने को उत्‍सुकता दिखाना पार्टी के लिए हौंसला बढ़ाने वाली बात है। मुख्‍यमंत्री के निवास उज्‍जैन सहित उन क्षेत्रों में भी युवाओं ने कांग्रेस की रीति-नीतियों में रूचि दिखाई है जहां बीजेपी और उसके अनुषांगिक संगठन पिछले कई बरसों से मैदानी कार्य कर रहे हैं। हालांकि, युवाओं के बीच पहुंच बढ़ाने की दृष्टि से नई सदस्‍यता का आंकड़ा और अधिक होना चाहिए था मगर यह संख्‍या भी उत्‍साहवर्धक है। यह आंकड़ें वर्तमान तौर तरीकों की समीक्षा तथा नई राजनीतिक रणनीति तय करने में सहायक हो सकते हैं।