राजकोट : जहां गांधी का बचपन गुजरा

मप्र के आईएएस आनंद कुमार शर्मा यात्राओं पर अपने लेखन के कारण भी जाने जाते हैं। राजकोट की उनकी यात्रा का यह दिलचस्‍प वृत्‍तांत।

Publish: Apr 06, 2020, 01:43 AM IST

gandhi's childhood home in rajkot

हमारे यहाँ सामान्यतः बाजार दिन में तभी बंद होता है जब साप्ताहिक अवकाश होता हो या हड़ताल में बंद करना पड़े, पर राजकोट में जहाँ कहीं भी मैं दोपहर में गया, बाजार बंद मिला। शुरुआत के दो-एक रोज तो मैंने यही समझा की साप्ताहिक अवकाश होगा पर जब प्रतिदिन यही नजारा देखने को मिला तो मैंने अपने संपर्क अधिकारी से इसका कारण पूछा तो उसने बताया पूरे राजकोट में या यूँ कहें तो सौराष्ट्र में ही ये परम्परा है की दिन में कोई व्यापारी काम नहीं करता। प्रतिदिन दोपहर में एक बजे से तीन बजे तक खाना खाने की छुट्टी होती है, बंदा अपनी दुकान बंद करता है घर जाता है खाना खाता है और आराम करता है फिर तीन बजे के बाद उठ कर आता है और दुकान खोल कर व्यापार करता है। मैं

आश्चर्य चकित था की पूरे देश में सबमर्सिबल पम्प और जहाज से लेकर खेत तक में प्रयोग होने वाली मशीन में पीतल के कल पुर्जों का निर्माण करने वाला राजकोट इतने इत्मीनान से दोपहर को बाजार बंद करने का माद्दा रखता है। मुझे इस तरह अचम्भे में डूबा देख संपर्क अधिकारी हँस कर बोले सर और तो और दवाई की दुकान तक लोग दिन में बंद कर चले जाते हैं क्योंकि उनको मालूम रहता है की डाक्टर भी दोपहर का भोजन करने घर गया होगा, साहब हमारे राजकोट को "रंगीला राजकोट" बोलते हैं क्यूंकि यहाँ पैसा कमाने को लेकर लोग हाय हाय नहीं करते संतोष से रहते हैं और जीवन का आनंद उठाते हैं। मैंने ध्यान दिया तो सचमुच खाने की होटलों में लोग लाइन लगा के खाने के लिए बैठते हैं और सड़क के किनारे बाजार में लगी रेहड़ियों पर डोसा और थेपले खाने के लिए फुटपाथ के किनारे अपनी एलेंट्रा, मर्सडीज और ऑडी लगा के लाइन लगा के अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हैं।

इंदौर के डेली कॉलेज, अजमेर के मेयो, रायपुर के राजकुमार और ग्वालियर के सिंधिया कॉलेज की तरह राजकोट में भी राजकुमार कॉलेज है जहाँ गोंडल के प्रतिष्ठित महाराजा सर भगवत सिंह, प्रसिद्द क्रिकेटर रणजीतसिंघजी जिनके नाम पर रणजी ट्रॉफी खेली जाती है और शहीद अशोक कामटे समेत अनेक हस्तियां पढ़ी हैं। कभी सौराष्ट्र के राजाओं और नवाबों के बच्चों की पढाई के लिए बनाया गया राजकुमार कॉलेज सैकड़ों सालों तक केवल "कुमारों" का स्कूल रहा है पर अब इसके दिन बदल गए हैं। 2011 से अब वहां लड़कियां भी पढ़ रही हैं यानि अब ये सहशैक्षिक स्कूल बन चुका है।

जिस तरह आदमी जीवन में उतार चढाव आते रहते हैं , वैसा ही शायद संस्थाओं और इमारतों के साथ भी होता है। राजकोट के व्यस्त बाज़ारों में घी काटा रोड पर स्थित महात्मा गाँधी जी के मकान को देखकर मुझे यही लगा। राजकोट में गाँधी जी जहाँ रहते थे उसे काबा गाँधी नो डेलोयानि काबा गांधी का घर कहते हैं। महात्मा गाँधी के पिता यानि करमचंद, जिन्हे लोग प्यार से काबा के नाम से बुलाते थे, 1876 में पोरबंदर से राजकोट राज्य के दीवान बन कर आ गए थे और 1881 में निवास के लिए ये मकान बन कर तैयार हो गया तब से अपने जीवनकाल तक करमचंद जी इस मकान में ही रहे। प्रशासनिक दक्षता के लिए पहचाने जाने वाले काबा गाँधी कितने सादगी पसंद थे ये उनके घर को देख के ही भान हो जाता है वर्ना राजाओं से ज्यादा वज़ीरों की ऐश के किस्से प्रचलित हैं।

बहरहाल, इसी मकान में मोहन का महात्मा बनने का सफर प्रारम्भ हुआ। महात्मा गाँधी ने अपने जीवन के कितने वर्ष यहाँ बिताये होंगे उसका वर्णन करती तस्वीरों को देखते देखते मुझे कई बार सिहरन सी हुई। इसी मकान के आँगन में रात के अँधेरे से डरते मोहन को घर की नौकरानी ने राम नाम का मन्त्र दिया होगा और इसी मकान के किसी कमरे में टंगी पिता की बंडी से मोहन ने पैसे चुराए होंगे और सहन में छुप कर कहीं सिगरेट और शराब पी होगी। दोस्त के समझाने पर ताकतवर बनने के लिए मांसाहार खाने के बाद इसी घर पर अपने पिता को खत में सच लिख कर दिया होगा और यहीं पिता और पुत्र के आंसू गिर के उस मिटटी में अदृश्य हो गए होंगे जिसे दुनिया इस असाधारण महामानव की कर्मभूमि के रूप में जानने वाली थी। इसी मकान में रहते हुए मोहन ने करण सिंह प्राथमिक स्कूल में प्रायमरी और अल्फ्रेड हाई स्कूल में हायर सेकेंडरी की परीक्षा पास की। अल्फ्रेड हाई स्कूल के इस ऐतिहासिक भवन को, जो जूनागढ़ के नवाब ने प्रिंस अल्फ्रेड के नाम पर बनवाया था अब महात्मा गाँधी स्मृति संग्रहालय में परिवर्तित किया जा रहा है।

इसी मकान में कस्तूरबा मोहन की पत्नी बन कर आयीं और यहीं उनके दोनों बच्चे मणिलाल और हरिलाल का जन्म हुआ। जब मोहन वकालत की पढाई के लिए लन्दन जाने लगे तो इसी मकान के कमरे में फर्श पर बिठा कर माँ ने मोहन से तीन व्रत लिए, शराब नहीं पियेगा, मांसाहार नहीं करेगा और पराई औरतों से गलत सम्बन्ध नहीं रखेगा। मुझे ना जाने क्यों लगता है तीसरा व्रत कस्तूरबा के कहने पर सासु माँ ने रखवाया होगा। करमचंद गाँधी का निधन 1885 में इसी मकान में हुआ और 1891 में गाँधी जी की माता पुतली बाई का देहावसान भी यहीं हुआ, फिर गांधीजी 1891 में इसी मकान से दक्षिण अफ्रीका के लिए प्रस्थान किया। उसके बाद भी विदेश से लौटने पर और देश में रहते समय समय पर गाँधी जी राजकोट के इस घर में आते रहे। इसके बाद गाँधी घर के ना रह के देश के हो गए पर घरेलू परिस्थितियों के चलते परिवार वालों ने ये मकान मुंबई के किसी सेठ को बेच दिया। मकान की हालत खस्ता हो चुकी थी। तब सौराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देबर भाई ने पचास हजार रुपयों में ये मकान मुंबई के व्यापारी से वापस खरीद लिया और यह महिलाओं और बच्चो के कल्याण कार्यक्रमों में प्रयुक्त होने लगा , कुछ सालों बाद इसे गांधीजी की याद में स्मृति भवन के रूप में स्थापित कर दिया गया। 2001 के त्रासदपूर्ण भूकंप में पुनः इसे भारी क्षति पहुंची लेकिन फिर गुजरात सरकार ने पुनः इसे पूर्वरुपास्थित किया और आज यहाँ महात्मा की तमाम वो स्मृतियाँ संजोयी गयीं हैं जो इस महाविभूति शैशव काल की हैं।