जी भाईसाहब जी: सादगी की नगरी में भगवा भव्यता, निशाने पर सरकार और सीएस
MP Cabinet Meeting: इंदौर में हुई कैबिनेट के लिए आयोजन में सबकुछ भव्य था। राजशाही जैसा। होर्डिंग और प्रचार ने जितना माहौल तैयार किया जनता ने उतना ही कष्ट उठाया। गले में भगवा दुपट्टा होने के कारण मुख्य सचिव अनुराग जैन की आलोचना की गई।

इंदौर देवी अहिल्या की नगरी है। देवी अहिल्या जो धर्म परायणता और सादगी के शासन की प्रतीक है। लेकिन जब आधुनिक समय की मोहन सरकार ने इंदौर के राजवाड़े को कैबिनेट बैठक के लिए चुना तो इवेंट चर्चा में आ गया। होल्कर राज्य की राजधानी में जब मोहन कैबिनेट की बैठक हुई तो इसकी भव्यता ने खूब ध्यान खींचा।
20 मई को हुई बैठक के लिए इंदौर की पहचान राजवाड़ा को सांस्कृतिक वैभव के साथ सजाया गया था। राजवाड़ा के हॉल को कॉर्पोरेट अंदाज से सजाया गया था, मगर शैली पारंपरिक थी। इस तैयारी में मालवी संस्कृति की झलक दिखाई दी। सबकुछ भव्य, राजशाही जैसा। लेकिन लोकतंत्र में सरकार की राजशाही जनता के लिए मुसीबत का कारण बन गई। राजवाड़ा परिसर में अस्थायी सचिवालय बनाया गया था और सुरक्षा के लिहाज से पूरे क्षेत्र को छावनी में तब्दील कर दिया गया था।
मोहन सरकार ने बहुचर्चित सराफा बाजार की सैर की, वहां का प्रख्यात खाना खाया। राजवाड़ा के बाहर फोटो सेशन हुआ। कैबिनेट बैठक के दिन लंच भी राजशाही था। सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीर पर टिप्पणी की गई कि खाद्य वस्तुओं की संख्या इतनी ज्यादा कि सबसे बड़ी थाली में भी कटोरी पर कटोरी रखनी पड़ी।
इस तरह भव्य तैयारियों का प्रचार भी बहुत भव्य हुआ। लेकिन इसकी अपनी परेशानियां भी थीं। अंदर सबकुछ शाही तो बाहर सुरक्षा के कारण सबकुछ बंद। होर्डिंग और प्रचार ने जितना माहौल तैयार किया जनता ने उतना ही कष्ट उठाया। सुरक्षा कारणों से करवाए गए राजवाड़ा बंद ने लोगों को त्रास दिया। मंत्रियों के गले में भगवा दुपट्टे होना सामान्य बात है लेकिन मुख्य सचिव अनुराग जैन के गले में भगवा दुपट्टा होने की आलोचना की गई। भोपाल के बाहर कैबिनेट करने के निर्णय का प्रसार की दृष्टि से स्वागत होता है लेकिन कैबिनेट को इवेंट बना दिए जाने से ऐसे आयोजन स्थानीय स्तर पर आक्रोश और आलोचना का शिकार भी हो जाते हैं। इन्हीं कारणों से सरकार और मुख्य सचिव अनुराग जैन निशाने पर हैं।
.. और मिल गया मंत्री विजय शाह को कवर
कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए गए बयान के बाद जनता, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में मंत्री विजय शाह को लेकर नाराजगी है लेकिन बीजेपी संगठन और सत्ता उनके साथ है। हर तरह से साथ। जहां मंच पर बैठी विधायक उषा ठाकुर ने बात गई की तर्ज पर मंत्री विजय शाह प्रकरण को भूल जाने की सलाह दी वहीं सत्ता और संगठन दोहराता रहा कि प्रकरण न्यायालय के अधीन है और जो कोर्ट कहेगी वही कार्रवाई होगी। हालांकि, हाईकोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया को लेकर पुलिस यानी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं।
एकतरफ, सरकार-संगठन पर जन भावना और कोर्ट का कार्रवाई के लिए दबाव था तब, जैसा कि खबरें बता रही हैं, मंत्री विजय शाह ने इस्तीफा देने से साफ इनकार कर दिया। खबरें तो यह भी बता रही हैं कि मंत्री विजय शाह ने अपने राजनीतिक भविष्य की गारंटी पर फिक्र जताते हुए प्रादेशिक नेतृत्व पर भरोसा नहीं दिखाया। मंत्री विजय शाह ने शर्त रखी है कि वे केंद्रीय नेतृत्व की बात ही मानेंगे। खैर, इन खबरों में सच्चाई तो नहीं पता लेकिन इतना तो सच है कि मंत्री विजय शाह को अपने साथी नेताओं का कवर मिल गया है।
वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा के भाषण का वीडियो वायरल हुआ तो हंगामा बरपा। फिर पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते का बयान आ गया। सांसद कुलस्ते ने आतंकवादियों को हमारे कह दिया। इसके साथ ही मनगंवा से बीजेपी विधायक नरेंद्र प्रजापति का वीडियो वायरल हो गया। विधायक नरेंद्र प्रजापति ने मीडिया से चर्चा में कहा कि यूएन ने भारत-पाक के बीच सीजफायर करवाया। बाद में गलती सुधारते हुए कहा कि यूएन नहीं यूएस ने सीजफायर करवाया। जब विपक्ष कांग्रेस ने मुद्दा बनाया तो वे भी बयान से पलट गए। मंत्री और बीजेपी नेताओं के इन बयानों ने मंत्री विजय शाह के बयान की हो रही आलोचना का मुंह मोड़ दिया।
अब विवाद केवल मंत्री विजय शाह के बयान पर नहीं था। बल्कि कई नेता उनके साथ कतार में आ गए। विवादास्पद बयान देने वाले सभी पर कार्रवाई की अपेक्षा बढ़ गई। बीजेपी सत्ता और संगठन एक विजय शाह पर तो कार्रवाई कर नहीं पा रहा थी, सब पर कार्रवाई होने से तो रही। इस तरह विजय शाह को कवर मिल गया।
बीजेपी एमएलए उषा ठाकुर ने कुछ नहीं सुना
बीजेपी अपने नेताओं के बयानों से बार बार संकट में घिर रही है। पार्टी एक मुद्दा खड़ा करती है और फिर उसके नेता कुछ ऐसा कर देते हैं कि विपक्ष को मौका मिल जाता है और बीजेपी सरकार और संगठन बैकफुट पर आ जाते हैं। विवाद खड़ा होने से प्रचार और ब्रांडिंग का एक बेहतर अवसर पार्टी के हाथ से चला जाता है। इस कारण अब बीजेपी संगठन ने नेताओं को हिदायत दी है कि तिरंगा यात्रा में कोई बयान नहीं दिया जाए। इसके साथ ही मंत्रियों व अन्य नेताओं के लिए एक कार्यशाला आयोजन की तैयारी की जा रही है जिसमें प्रोफेशनल्स कब बोलना है, क्या बोलना है तथा कब चुप रहना है आदि का प्रशिक्षण देंगे।
प्रशिक्षण तो बाद मिलेगा, बीजेपी नेताओं ने विजय शाह प्रकरण से खुद को दूर रखने के बयान सीख लिए हैं। ताजा मामला पूर्व मंत्री उषा ठाकुर का है। वे उस वक्त मंच पर थीं जब मंत्री विजय शाह विवादित बात कह रहे थे। वीडियो में वे मंच पर हँसते हुए दिखाई दे रही हैं। बाद में उन्होंने कहा था कि मंशा ऐसी नहीं थी। जोश में जुबान फिसल गई। अब इंदौर में मीडिया के सवाल पर उन्होंने कहा है कि हम सबने विजय शाह को भाषण देते हुए देखा, लेकिन मंच पर मौजूद होने के बावजूद हम उन्हें सुन नहीं पाए। वे देशभक्ति के जोश में थे। इस मामले में जब दूसरे दिन इस पर हंगामा हुआ, तब हमने पूरा परिप्रेक्ष्य देखा। लेकिन जो उन्होंने कहा, वो मैंने नहीं सुना।
विधायक उषा ठाकुर उन समझदार नेताओं में से हैं जो जानती हैं कि जब सत्ता और संगठन ने खामोशी को चुना हो तब किसी मुद्दे से कैसे किनारा किया जाता है। वे ही नहीं, बीजेपी के अन्य नेताओं ने भी कुछ कहने की जगह चुप्पी को ही चुना।
कांग्रेस में मजबूत संगठन से बनेगा सत्ता का रास्ता
चुनाव में वक्त है लेकिन तैयारी का लिए कोई वक्त नहीं होता, अर्थात् तैयारी जितनी जल्दी शुरू की जाए उतना बेहतर। बीजेपी और उसके कर्ताधर्ता नेता जहां हर वक्त चुनाव के मोड में रहते हैं वहीं कांग्रेस पर आरोप लगते हैं कि वह ऐन चुनाव के वक्त जागती है। लगता है कि इस धारणा को तोड़ने का वक्त आ गया है। यही कारण है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस ने भी अपने संगठन को मजबूत करने तथा इस रास्ते सत्ता हासिल करने की कवायद शुरू कर दी है।
प्रदेश में युवा कांग्रेस की चुनाव प्रक्रिया जारी है। इसके साथ ही कांग्रेस के जिलाध्यक्षों की नियुक्ति पर भी बड़ा फैसला किया गया है। तय किया गया है कि कांग्रेस के जिलाध्यक्षों की नियुक्ति दिल्ली से तय होगी। इसके लिए आब्जर्वर नियुक्त किए गए है। चुने गए अध्यक्षों को अन्य कौशल प्रशिक्षण के साथ ही बोलने का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा ताकि ये धारदार विपक्ष की भूमिका निभा सकें।
इसके साथ ही चुनाव के बहुत पहले कांग्रेस ने चुनाव प्रबंधन विभाग का अलग से गठन किया है। आमतौर पर चुनाव प्रबंधन समितियां बनाई जाती हैं जो चुनाव के समय की सारी तैयारियां देखती हैं। लेकिन कांग्रेस ने चुनाव प्रबंधन विभाग बना कर व्यवस्थित ढंग से चुनावी तैयारियों का मन बनाया है।
विधानसभा चुनाव के करीब साढ़े तीन साल पहले बनाए गए चुनाव प्रबंधन विभाग का प्रभार पूर्व मंत्री प्रियव्रत सिंह को दिया गया है। उनके साथ गौरव रघुवंशी विभाग अध्यक्ष, गोरकी बैरागी, मृणाल पंत, शैलेन्द्र पटेल और मयंक तेनगुरिया सदस्य बनाए गए हैं। तैयारी है कि विभाग पंचायत स्तर तक अपनी ताकत बढ़ाएगा। संगठन को खड़ा करने की ये कवायद योजना के स्तर पर अच्छी है, क्रियान्वयन चुनौती है।