जी भाईसाहब जी: बीजेपी अध्‍यक्ष जेपी नड्डा को दिखाई नहीं दी एमपी बीजेपी

MP Politics: मध्य प्रदेश बीजेपी सरकार और संगठन इस बात से खुश है कि कामकाज से जनता में फीलगुड है। केंद्रीय नेतृत्‍व भी समय-समय पर पीठ ठोक ही देता है मगर राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा की भोपाल यात्रा में मिली प्रशंसा से अधिक उनकी फटकार याद रह गई .... क्‍या है यह फटकार और जानिए कौन है मध्‍यप्रदेश में शादी का फूफा जी

Updated: Mar 28, 2023, 08:56 PM IST

सीएम शिवराज  सिंह चौहान और बीजेपी अध्‍यक्ष जेपी नड्डा
सीएम शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी अध्‍यक्ष जेपी नड्डा

एक फिल्‍म आई थी ‘चक दे इंडिया’। इस फिल्‍म में हॉकी कोच बने शाहरूख खान प्रदेशों में बंटी महिला खिलाडि़यों से कहते हैं कि उन्‍हें प्रदेशों के नाम सुनाई नहीं देते हैं। सुनाई देता है तो केवल इंडिया। कुछ ऐसे ही अंदाज में बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा भी कह गए हैं कि उन्‍हें एमपी बीजेपी दिखाई नहीं देती। दिखाई देते हैं तो नेताओं के खेमे और गुटों में बंटी पार्टी। कुछ इस तरह टीमवर्क के अभाव का खुलासा करते हुए उन्‍होंने कहा कि टीम एकसाथ मिलकर काम करेगी तो बेहतर होगा। इस बेहतर का मतलब है, मिशन 2023 फतह होगा। 

हुआ यूं कि सार्वजनिक कार्यक्रमों में राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने शिवराज सरकार की योजनाओं और काम की प्रशंसा की तो सभी को महसूस हुआ कि केंद्रीय नेतृत्‍व मध्‍य प्रदेश के कामकाज से खुश है मगर नड्डा ने सार्वजनिक कार्यक्रम में इशारों-इशारों और कमरा बैठक में खुलकर जो कहा वह होश उड़ाने वाला था। 

बूथ अध्‍यक्षों के सम्‍मेलन में प्रदेश अध्‍यक्ष वीडी शर्मा और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गला खराब थे। वीडी शर्मा ने सफाई में कहा कि तीन दिनों से बैठक ले रहा हूं इसलिए गला खराब है। राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने अपने भाषण में इस पर कमेंट किया कि यह गला खराब करने का नहीं विपक्ष की हालत खराब करने का समय है। उन्‍होंने नए कार्यालय के भूमि पूजन के दौरान ये हिदायतें दी। 

मगर सार्वजनिक कार्यक्रमों में संकेतों में बातकर रहे जेपी नड्डा ने कोर ग्रुप की बैठक में प्रदेश के सभी प्रमुख नेताओं की मौजूदगी में कहा कि उन्‍हें प्रदेश में टीमवर्क नजर नहीं आता है। वे कहकर गए हैं कि अफसरों से मिले फीडबैक के भरोस मत रहो, कार्यकर्ताओं की भी सुनो। 

नाराज कार्यकर्ताओं को इस बात से संतोष है कि राष्‍ट्रीय संगठन तक कम से कम कार्यकर्ताओं की नाराजगी खबर पहुंच रही है। नेतृत्‍व इस बात से अनजान नहीं है कि पार्टी गुटों में बंटी हैं और एक गुट दूसरे को निपटाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है। बहरहाल, नड्डा की नसीहतों का इतना असर हुआ है कि सत्‍ता और संगठन के सूत्रधार जरा गंभीर हो गए हैं। बैठकों का दौर शुरू हो गया है। मगर गुटबाजी और अपने अपने वर्चस्‍व के दंगल का क्‍या होगा, खबर नहीं है। 

पीएम मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा, मोहन भागवत, बार बार कितनी बार

बीजपी के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जिन मैदानी रिपोर्ट्स के आधार पर मध्‍य प्रदेश के पार्टी कर्ताधर्ताओं को चेताया है कुछ उसी का असर समझ लीजिए कि केंद्रीय नेताओं ने एमपी में राजनीति के सारे सूत्र अपने हाथ में ले लिए हैं। हर तरह के समीकरण साधने के लिए संघ और बीजेपी के शीर्ष नेताओं का मध्यप्रदेश आना लगातार जारी है। 

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह छिंदवाड़ा आए थे फिर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भोपाल आए। अब 31 मार्च को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत भोपाल पहुंच रहे हैं। वे देशभर की सिंधी पंचायतों के कार्यक्रम में मुख्‍य अतिथि होंगे। 31 मार्च को केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह भी भोपाल आएंगे। एक अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल आ रहे हैं। वे सेना प्रमुखों के कार्यक्रम में भाग लेने के अलावा रानी कमलापति से नई दिल्‍ली तक चलनेवाली वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी भी दिखाएंगे। पीएम मोदी 24 अप्रैल को एक बार फिर भोपाल आएंगे। तब वे देशभर में उत्‍कृष्‍ट काम कर रही संस्थाओं का मुआयना आदि करेंगे। इसके बाद पीएम की जनसभा रखी गई है। 

शीर्ष नेताओं का बार-बार मध्‍यप्रदेश आना संयोग नहीं है बल्कि यह खतरे की आहट से निपटने का जतन है। अंदरखाने की खबर है कि केंद्रीय पदाधिकारियों के प्रदेश में दौरों से इस बात का खुलासा हो चुका है कि कई तरह के संतुलन नहीं साधे तो 2018 दोहराया जा सकता है। यही कारण है कि आदिवासी वोट बैंक को साधने का काम एक साल पहले से ही शुरू हो गया था। महिला वोट बैंक के लिए लाड़ली लक्ष्‍मी योजना से काम नहीं चलने वाला था इसलिए लाडली बहना योजना लाई गई है। युवाओं को भत्‍ता नहीं स्‍टाइपंड देने वाली लर्न एंड अर्न योजना प्रस्‍तुत की गई है।

मगर जब उपलब्धियों की बारी आई है तो डबल इंजन की सरकार का नारा नहीं पीएम मोदी का ‘चेहरा’ आगे करना पड़ रहा है। यही कारण है कि लगभग हर महीने ही बड़े-बड़े नेताओं का मध्‍य प्रदेश में आने का कार्यक्रम तैयार हो रहा है। बड़े नेता समीक्षा, आकलन करेंगे और उनके दिए टारगेट को पूरा करना प्रदेश के नेताओं का काम होगा।

ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया से गढ़ छीनने की तैयारी  

शिवाजी ने अपने मित्र और मराठा सेना में सूबेदार तानाजी मालूसरे के युद्ध में मारे जाने के बाद कहा था कि गढ़ तो जीता मगर सिंह मारा गया। ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की सरकार बनवाई थी और कहा गया था कि उन्‍होंने गढ़ जीत लिया है। खुद को टाइगर कहने वाले सिंधिया के सामने अब अपने गढ़ के साथ खुद को बचाने का संकट है क्‍योंकि चर्चा है कि पार्टी उन्‍हें परंपरागत गुना या ग्‍वालियर सीट के बदले इंदौर सीट पर भेजने की तैयारी कर रही है।  

ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के विभिन्‍न कारणों में एक कारण यह भी माना जाता है कि वे अपना गढ़ कहे जानेवाले गुना से लोकसभा चुनाव कभी अपने समर्थक रहे केपी यादव से हार गए थे। बीजेपी में आने के बाद भी उनकी केपी यादव से पटरी बैठी नहीं है। सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद केपी यादव को लगा कि पार्टी में उनको नजरअंदाज किया जा रहा है तो उन्‍होंने सिंधिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 

चर्चा है कि बीजेपी सिंधिया को उनकी परंपरागत गुना या ग्‍वालियर सीट से टिकट देने के मूड में नहीं है। उनके लिए मालवा की इंदौर सीट पर संभावना तलाशी जा रही है। कहा जा रहा है कि ग्‍वालियर में कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता और बीजेपी के नाराज नेताओं के कारण सिंधिया को हार का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए उन्‍हें सुरक्षित सीट पर भेजा जाएगा। 

सिंधिया खेमे की ओर से कहा जा रहा है कि ग्‍वालियर से सिंधिया के बेटे महाआर्यमन सिंधिया को मैदान में उतारा जाएगा। बीजेपी की रीति नीतियों को देखते हुए ऐसा होना जरा मुश्किल जान पड़ता है कि पार्टी पिता-पुत्र दोनों को टिकट देगी। कहा जा रहा है कि इंदौर में सुरक्षित सीट से सिंधिया चुनाव लड़ेंगे तो चुनाव प्रचार में उनका अधिक इस्‍तेमाल किया जाएगा। 

मगर, स्थिति इसके उलट है। समर्थक मान रहे थे कि मुख्‍यमंत्री बनाए जाने के आश्‍वासन के बाद सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी है मगर ऐसा हुआ नहीं। उनके समर्थक को उपमुख्‍यमंत्री भी नहीं बनाया गया। अब बीजेपी ने अपनी सुरक्षित सीट पर भेजने के बहाने सिंधिया को खुद के गढ़ से दूर करने की योजना बना ली है। बेटे को टिकट मिलेगा या नहीं इसपर अभी संशय है। देखना होगा सिंधिया अपने लिए लड़ते हैं या अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने के लिए अपना हित छोड़ते हैं।  

शादी के फूफा जी की तरह ब्राह्मण

ब्‍याह के बुआ जी या शादी के फूफा जी मुहावरा तो आपने सुना ही होगा। शादी में फूफा जी ऐसे व्‍यक्ति होते हैं जो नाराज-नाराज घूमते जरूर हैं मगर आयोजन से बाहर नहीं जाते हैं। छुटपुट मनुहार के अलावा उनकी नाराजगी पर ज्‍यादा ध्‍यान दिया जाना जरूरी काम नहीं माना जाता है क्‍योंकि वे कितने ही नाराज हो जाएं, कार्यक्रम छोड़कर जाएंगे तो नहीं। मध्‍य प्रदेश बीजेपी के लिए ब्राह्मण कुछ ऐसे ही हो गए हैं। जिनकी नाराजगी की पार्टी को परवाह नहीं है क्‍योंकि नेतृत्‍व मानता है कि ब्राह्मण नाराज हुए तो भी रहेंगे तो साथ ही। 

यह धारणा इसलिए बनी है क्‍योंकि जातीय समीकरण साधने के लिए बीजेपी ने उस नेता की संगठन में वापसी करवा दी है जिसे ब्राह्मणों के बारे में अपशब्‍द कहने के आरोप में बाहर का रास्‍ता दिखा दिया गया था। ये नेता हैं प्रीतम लोधी। सार्वजनिक कार्यक्रम में ब्राह्मणों को लेकर दिए बयान पर संगठन खफा हुआ था और प्रदेश अध्‍यक्ष वीडी शर्मा ने प्रीतम लोधी को कुछ ही घंटों में बाहर का रास्‍ता दिखा दिया था। मगर प्रीतम लोधी शांत नहीं बैठे। उन्‍होंने ओबीसी वोट को एकजुट करने की मुहिम छेड़ दी। प्रदेश में ओबीसी वोट करीब 48 फीसदी है और इसके सहारे 2003 से सत्‍ता हासिल करनेवाली बीजेपी इस आधार को खोना नहीं चाहती है। इ‍सलिए प्रीतम लोधी की पार्टी में वापसी हो गई है। 

इस वापसी पर सोशल मीडिया में कुछ ब्राह्मण ग्रुप्‍स में नाराजगी जताई गई है। बीजेपी के ब्राह्मण नेताओं तक भी बात पहुंची है लेकिन बीजेपी जानती है कि जितना ओबीसी एकजुट हैं उतनी ब्राह्मण एकता है नहीं। और फिर नाराज भी हुए तो ब्राह्मण जाएंगे कहां? आज नहीं तो कल मान ही जाएंगे। यूं भी उनके एक राष्‍ट्रीय पदाधिकारी कह ही चुके हैं कि उनकी एक जेब में ब्राह्मण वोट हैं तो दूसरी जेब में बनिया। इसलिए जातीय समीकरण में ब्राह्मण और उनके नेता फिलहाल हाशिए पर कर दिए गए हैं। 
  

विरोध बर्दाश्‍त नहीं, सख्‍ती के मूड में सरकार   
 
एमपी बीजेपी ने नारा दिया है अबकी बार 200 पार। 230 सदस्‍यों वाली विधानसभा में 200 से ज्‍यादा सीट जीतने का मतलब है विपक्ष को समेट देना। इस‍के लिए साम, दाम, दंड, भेद हर पैंतरा आजमाया जा रहा है। इसमें विरोधियों को ‘निपटाने’ का क्रम भी जारी है। 

इस ‘सख्‍ती’ का पहला शिकार हुए थे समाजवादी लहजे वाले कांग्रेस नेता राजा पटेरिया। प्रधानमंत्री मोदी को लेकर दिए एक बयान के बाद वे लंबा समय जेल में गुजारकर वापिस आए हैं। जबकि वायरल हुए वीडियो में वे तुरंत ही भूल सुधार करते हुए दिखाई व सुनाई दिए थे। मगर उनके प्रति कोई रियायत नहीं बरती गई। 

ऐसा ही हुआ युवक कांग्रेस नेता विक्रांत भूरिया के साथ भी। राहुल गांधी की संसद सदस्‍यता खत्‍म किए जाने के विरोध में विक्रांत भूरिया ने अपने साथियों के साथ रेल रोको प्रदर्शन किया था। इससे सरकार इतनी नाराज हुई कि विक्रांत भूरिया की गिरफ्तारी के लिए भोपाल से पुलिसकर्मियों की फौज झाबुआ भेज दी गयी। इस कार्रवाई के दौरान नियमों को भी नजरअंदाज कर दिया गया जिसके लिए कोर्ट ने फटकार लगाते हुए विक्रांत भूरिया को जमानत दे दी। 

तीसरा मामला डॉ. आनंद राय की बर्खास्‍तगी का है। पहले व्‍यापमं मामले और फिर जयस व आदिवासी मुद्दों के सहारे सरकार की परेशानियां खड़ी करने वाले डॉ. आनंद राय का सजा के तौर पर पहले इंदौर से रीवा तबादला कर दिया गया था। मगर डॉ. राय माने नहीं। पिछले दिनों एक ट्वीट के बाद बीजेपी नेत्री रंजना बघेल ने डॉ. राय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और अब सरकार ने डॉ. राय को नौकरी से बर्खास्‍त ही कर दिया है।

दिल्‍ली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर कार्रवाई से लेकर मध्‍य प्रदेश की इन घटनों में एक सीधा संबंध यह है कि सरकार अब अपनी आलोचना को बर्दाश्‍त नहीं करेगी। इसके पीछे यह आत्‍मविश्‍वास भी है कि इस सख्‍त कार्रवाई का मैदान में विपरीत असर नहीं होगा।