जी भाईसाहब जी: पीएम मोदी गा गए, सामंतों के गीत

MP News: तीन साल पहले तक बीजेपी के नेता ही अंग्रेजों का साथ देने के मुद्दे पर सिंधिया परिवार के प्रति सबसे ज्‍यादा आक्रामक और हमलावर होते थे। अब बीजेपी के सुर बदले हैं। ग्‍वालियर आए पीएम मोदी ने तो सिंधिया राजशाही की प्रशंसा कर नई मुहिम को तेजी दे दी है। 

Updated: Oct 25, 2023, 12:03 PM IST

नमो-नमो फिर गा गए सामंतों के गीत,

थोड़ी सी दृढ़ हो गई,कच्ची पड़ती भीत।

ग्‍वालियर के वरिष्‍ठ पत्रकार-लेखक राकेश अचल की ये पंक्तियां सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ग्‍वालियर यात्रा और सिंधिया परिवार के गुणगान के बाद छा गई। बीजेपी की राजनीति को जानने-समझने वाले विश्‍लेषकों से लेकर बीजेपी कार्यकर्ता खुद पीएम मोदी के इस रूख से हैरान हैं। कोई इसे बीजेपी की भावी इबारत मान रहा है तो किसी को इसमें राजनीति की लंगड़ी दिखाई दे रही है। मुद्दा लोकतंत्र के पर्व कहे जाने वाले चुनाव के अवसर पर राजशाही के बखान के निहितार्थ का भी है। 

अब तक आजादी का संघर्ष और सिंधिया परिवार का जिक्र करते ही स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता ‘झांसी की रानी’ की पंक्तियां याद आती हैं: 

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी। 

इस कविता ने सिंधिया राजपरिवार को अंग्रेजों का मित्र बता कर राजनीतिक संदर्भ को रेखांकित किया था। 1857 से ही सिंधिया परिवार को ‘गद्दारी’ के कारण जाना जाता रहा है। आजादी के बाद अब तक सिंधिया परिवार ने लोकतांत्रिक ढंग से राजनीति में भागीदारी की है लेकिन सिंधिया राजपरिवार पर तो अंग्रेजों के मित्र होने का कलंक लगा ही रहा है। 

तीन साल पहले तक बीजेपी के नेता ही इस मुद्दे पर सिंधिया परिवार के प्रति सबसे ज्‍यादा अक्रामक और हमलावर होते थे। तीन साल पहले केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद बीजेपी के सुर बदले हैं। एक मुहिम चली है जो सिंधिया परिवार के अंग्रेजों के दबाव में रहने के तर्क के साथ ‘गद्दारी’ को मजबूरी साबित करने का जतन कर रही है। इसीबीच ग्‍वालियर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल सिंधिया परिवार से रिश्ता माना बल्कि सिंधिया राजशाही की प्रशंसा की। जिस काशी के संवारने का श्रेय बतौर सांसद प्रधानमंत्री मोदी को दिया जाता है, उसी काशी के संदर्भ में स्‍वयं मोदी ने कहा कि काशी का संरक्षण करने में सिंधिया परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज काशी का विकास हो रहा है, उसे देखकर गंगाबाई और महाराज माधोराव की आत्मा प्रसन्न हो रही होगी। 

मध्‍य प्रदेश में लोकतांत्रिक सरकार चुनने के लिए चुनाव प्रक्रिया जारी है, ऐसे समय प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राजशाही का किया गया गुणगान चौंकाने वाला है। इसे बीजेपी के भावी नेतृत्‍व का संकेत भी माना गया तो सिंधिया और उनके समर्थकों को बरसों के परिश्रम के आगे तवज्‍जो देने से नाराज जमीनी नेताओं के लिए यह एक तरह से झटका साबित हुआ। 

पोस्‍टर से परे बीजेपी का भावी सीएम चेहरा 

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 के लिए बीजेपी ने मध्‍य प्रदेश के सारे कद्दावर नेताओं को दरकिनार कर केवल पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इसके लिए सबसे लंबे समय तक मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी नजरअंदाज कर दिया गया है। पोस्‍टर और चुनाव अभियान से परे बीजेपी का एक भावी सीएम चेहरा भी है जो जनता से विधायक के साथ मुख्‍यमंत्री चुनने की अपील कर रहा है। 

यह चेहरा है बीजेपी के ब्राह्मण नेता पं. गोपाल भार्गव। लोकनिर्माण मंत्री पं. गोपाल भार्गव नौवीं बार मैदान में हैं। वे संकेतों में तथा उनका परिवार खुल कर यह कह रहा है कि वे ही मध्‍य प्रदेश के अगले मुख्‍यमंत्री होंगे। इसके पीछे पं. गोपाल भार्गव के गुरु की साख है। जब बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद के दावेदार सभी बड़े नेताओं को विधानसभा चुनाव में उतार दिया था तब एक कार्यक्रम में पं. गोपाल भार्गव ने कहा था कि मेरे गुरु जी ने कहा-एक चुनाव और लड़ लो। गुरु का आदेश आया है तो हो सकता है उनकी कुछ इच्छा हो। ईश्वर की तरफ से बात आई हो।

अपने क्षेत्र में एक कार्यक्रम में मंत्री गोपाल भार्गव ने जनता से आशीर्वाद मांगते हुए कहा- मुझे लंबे समय तक विधायक बनाया, लंबे समय तक कैबिनेट मंत्री रहा. अब आप लोग मुझे ऐसा आशीर्वाद दे जिससे मैं सबसे ऊंचे पद पर पहुंच जाऊं। इतना ही नहीं, उनकी बहू का एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें वे मतदाताओं से कह रही हैं कि अब तक आपने विधायक चुना है, इसबार मुख्‍यमंत्री चुनिए। 

भोपाल-दिल्‍ली में भले ही यह अबूझ पहेली है कि बीजेपी की सरकार बनी तो सीएम कौन होगा लेकिन कम से कम एक विधानसभा क्षेत्र में तो बीजेपी के भावी चेहरे का खुलासा हो गया है, जबकि इन भावी सीएम को बीजेपी के प्रचार पोस्‍टर तक में जगह नहीं मिली है। हालांकि, यह दूर की कोढ़ी लगती है कि ओबीसी और आदिवासी वोट बैंक को साधने की राजनीति के इस दौर में बीजेपी किसी ब्राह्मण नेता को सीएम बनाएगी। 

बुढ़ापे में दोहरी मुसीबत 

हिंदी की प्रख्‍यात कहावत, ‘गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास’ बीजेपी के बुजुर्ग नेताओं पर सटीक लागू हो रही है। बीजेपी हाईकमान के 75 वर्ष से अधिक उम्र वाले नेताओं की सक्रिय राजनीति से विदाई के फार्मूले को सच मान बैठे बीजेपी नेता अपने ‘बल्‍ले’ खूंटी पर टांग चुके थे। उनका एकमात्र लक्ष्‍य रह गया था, अपने पारिवारिक उत्‍तराधिकारियों को राजनीतिक उत्‍तराधिकारी बनाना। मगर पार्टी ने राजनीतिक रूप से सुस्‍ताए, अलसाए, वानप्रस्‍थ की ओर कूच कर गए नेताओं को टिकट दे कर खुद सक्रिय होने और बच्‍चों का कॅरियर बचाने की दोहरी मुसीबत में डाल दिया है।   

बीजेपी की प्रत्‍याशी सूची देखेंगे तो पाएंगे कि सतना जिले की नागौद विधानसभा सीट से पूर्व मंत्री नागेंद्र सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है। 81 वर्षीय नागेंद्र सिंह ने चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के काफी पहले ही मंच से कहा था कि वे अब चुनाव नहीं लड़ना चाहते और युवाओं को मौका देना चाहते हैं। इन नागेंद्र सिंह के साथ ही रीवा जिले की गुढ़ सीट से वर्तमान विधायक 81 वर्षीय नागेंद्र सिंह को फिर टिकट दे दिया जबकि नागेंद्र सिंह 2013 के चुनाव को अपना आखिरी चुनाव कह चुके थे। इसके बाद भी वे 2018 और अब 2023 में भी उम्मीदवार बनाए गए हैं।  

पिछले चुनाव में हार चुके 76 वर्षीय पूर्व वित्तमंत्री जयंत कुमार मलैया दमोह अपने बेटे सिद्धार्थ मलैया को स्‍थापित कर रहे हैं लेकिन सिद्धार्थ मलैया, राहुल लोधी सहित अन्‍य युवा चेहरों के बदले पार्टी ने उम्रदराज मलैया पर ही दांव चला है। पांचवीं सूची में ग्वालियर पूर्व सीट से 73 वर्षीय पूर्व मंत्री माया सिंह को प्रत्याशी बनाया है। जबकि माया सिंह उतनी सक्रिय है ही नहीं, वे तो अपने बेटे के लिए टिकट चाह रही थी। ऐसा ही कुछ राष्‍ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ भी हुआ। 

ये सभी नेता चाहते है कि उनके परिजन उनकी राजनीतिक विरासत संभाल ले लेकिन पार्टी ने उन्‍हें ही काम पर लगा दिया। अब खतरा यह है कि वे जीतें या हारें, उनके राजनीतिक उत्‍तराधिकारियों का भविष्‍य को संकट में ही है। 

समझौते और समझाइश के चार दिन 

कहते हैं राजनीति में कुछ भी स्‍थाई नहीं होता लेकिन टिकट वितरण के बाद फूटा असंतुष्‍ट नेताओं का गुस्‍सा और असंतोष पार्टी को स्‍थाई नुकसान दे सकता है। यही कारण है कि एक दर्जन से अधिक सीटों पर अपने नेताओं और उनके समर्थकों का गुस्‍सा झेल रही कांग्रेस और बीजेपी के पास समझौते और समझाइश के लिए चार दिन का वक्‍त है। इन चार दिनों में असंतोष का जितना प्रबंधन हो जाएगा, वह मिशन 2023 फतह करने के उतने ही करीब हो जाएगा। 

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए टिकट वितरण तो पूरा हो गया लेकिन टिकट न मिलने से नाराज नेताओं और उनके समर्थकों का शक्ति प्रदर्शन और बगावत भी शुरू हो गया है। कांग्रेस और बीजपी में डेढ़ दर्जन सीटों पर विरोध और असंतोष के स्‍वर उभर रहे हैं। कार्यकर्ताओं का पार्टी मुख्यालय पर पहुंचकर विरोध प्रदर्शन जारी है। रविवार को भी दोनों ही दलों के असंतुष्ट पार्टी वर्करों ने भोपाल स्थित भाजपा और कांग्रेस कार्यालय पहुंचकर अपनी नाराजगी व्यक्त की। ग्वालियर में बीजेपी कार्यकर्ता मुन्नालाल गोयल पूर्व मंत्री माया सिंह को टिकट दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। जबलपुर उत्तर-मध्य सीट से अभिलाष पांडे को प्रत्याशी बनाने पर नाराज कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के साथ ही धक्का-मुक्की कर दी। भिंड विधानसभा सीट पर टिकट नहीं मिलने पर विधायक संजीव सिंह कुशवाह के समर्थकों ने बड़े नेताओं का पुतला फूंका। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व सांसद स्व. नंदकुमार सिंह चौहान के पुत्र हर्षवर्धन सिंह चौहान भी नाराज हैं। रविवार को उन्होंने बुरहानपुर में शक्ति प्रदर्शन किया। सिंगरौली सीट से रामलल्लू वैश्य का टिकट कटने के बाद उनके समर्थकों में रोष है। कांग्रेस के टिकट वितरण से नाराज नेता कार्यालय और नेताओं के घरों पर धरना दे रहे हैं। कई नेता बागी के रूप में मैदान में हैं तो कुछ को तीसरे दलों का सहारा मिल गया है। 

30 अक्‍टूबर नामांकन भरने का अंतिम दिन है और 2 नवंबर नाम वापसी की अंतिम तारीख है। लेकिन वास्‍तव में पार्टियों के पास समय कम है। चार दिन हैं और चार कदम हैं। दोनों ही दलों में नेता असंतोष के प्रबंधन में जुटे हुए है। रूठों को समझाया जा रहा है कि सरकार बनेगी तब ही तो उनके भी हित सुरक्षित रह पाएंगे। कुछ नेताओं को पार्टी द्वारा अब तक दिए गए लाभ याद दिला कर नाराजगी छोड़ देने की समझाइश दी जा रही है। कुछ को सरकार बनने के बाद महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी देने का वादा कर समझौते के लिए तैयार किया जा रहा है। नेताओं के पुराने अनुभव खराब हैं। वे अनुभव और भविष्‍य की रणनीति का आकलन कर अपनी भूमिका तौल रहे हैं। इसी कवायद के कारण अगले चार दिन मिशन 2023 की सफलता को तय करने वाले होंगे।