जी भाईसाहब जी: बीजेपी समर्थक ही क्‍यों कर रहे हैं प्रदीप मिश्रा की आलोचना 

MP Politics: यह अचरज का विषय है कि जब सभी पंडित प्रदीप मिश्रा की आलोचना कर रहे थे तब बीजेपी व संघ से जुडे़ लोग भी रूद्राक्ष महोत्‍सव में अव्‍यवस्‍था पर प्रदीप मिश्रा को घेर रहे हैं। ऐसा क्‍यों? शिवराज सिंह चौहान ने आबकारी नीति में उमा भारती की बात मान ली है तो अब उमा भारती के राजनीतिक पुनर्वास का क्‍या होगा और कब दूर होगी बीजेपी नेताओं की निराशा?

Updated: Feb 22, 2023, 06:23 AM IST

कथा वाचक प्रदीप मिश्रा
कथा वाचक प्रदीप मिश्रा

मध्यप्रदेश में इस वर्ष के अंत में होने विधानसभा चुनाव में मुद्दे क्‍या होंगे? तमाम मैदानी मुद्दों और जातीय समीकरणों के अलावा धार्मिक आस्‍था भी चुनावों को प्रभावित करने वाला एक कारक होगा। यही कारण है कि इन दिनों प्रदेश की राजनीति कथावाचकों के इर्दि‍गिर्द केंद्रित होने लगी है। मंत्री और विधायक अपने-अपने क्षेत्रों में कथाओं का आयोजन करवा कर वोट साधने की जुगत में लगे हैं। कथावाचक क्षेत्रीय समीकरण साधने में भी सहायक हो रहे हैं। जैसे, बुंदेलखंड में बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री, मालवा-निमाड़ क्षेत्र में कुबेरेश्वर धाम के प्रदीप मिश्रा और ग्‍वालियर-चंबल क्षेत्र में पंडोखर सरकार के गुरुशरण शर्मा का प्रभाव है। जैसे-जैसे चुनाव करीब आएंगे, कथा आयोजन की संख्‍या भी बढ़ने वाली है। 

बागेश्‍वर धाम के धीरेंद्र शास्‍त्री तो सनातन धर्म की पताका लहरा रहे हैं। वे धर्मांतरण के खिलाफ मुहिम भी चला रहे हैं। उनका स्‍वर बीजेपी के एजेंडे के करीब है। इसलिए मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, बीजेपी प्रदेश अध्‍यक्ष वीडी शर्मा सहित कई बीजेपी मंत्री और नेता उनके पास पहुंचे हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्‍यक्ष कमलनाथ भी बागेश्‍वर धाम पहुंचे थे। इधर, कुबेरेश्‍वरधाम में शिवरात्रि पर आयोजित रूद्राक्ष महोत्‍सव दो सालों से अव्‍यवस्‍था के कारण चर्चा में रहा है। इस बार तो यहां श्रद्धालुओं की मृत्‍यु भी हुई। इस अव्‍यवस्‍था के कारण कथावाचक प्रदीप मिश्रा आरोपों से घिर गए। हालांकि उन्‍हें धीरेंद्र शास्‍त्री का साथ मिला। दूसरे बीजेपी नेता मौन रहे लेकिन कैलाश विजयवर्गीय खुल कर बोले। रुद्राक्ष महोत्सव के दौरान कुबरेश्वरधाम पहुंचे बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने प्रदीप मिश्रा को कहा कि अगली बार और बड़ा कार्यक्रम आयोजित करें और व्यवस्था की जिम्मेदारी हम पर छोड़ें।   

कैलाश विजयवर्गीय का बयान ऐसे समय आया जब मीडिया कुबेरेश्‍वरधाम में आयोजन की अव्‍यवस्‍था की आलोचना कर रहा है। यहां तक कि बीजेपी के समर्थक माने जाने वाले स्‍तंभकारों ने भी अव्‍यवस्‍था और टोटकों के लिए प्रदीप मिश्रा की तीखी आलोचना की है।  

डांटने और पुचकारने की इस दबाव की राजनीति के भी अपने रंग है। आकलन किया गया है कि असल में प्रदीप मिश्रा एक पक्ष में नहीं रहते हैं। वे पिछली बार कांग्रेस नेता जीतू पटवारी के बुलावे पर इंदौर गए थे। अन्‍य नेताओं के बुलावे पर भी कथा वाचन करने जाते हैं। मार्च में उनकी कथा उज्‍जैन में होने जा रही है। निमाड़ और मालवा भाग में कथा से राजनीतिक संदेश जाएंगे। इन सीटों पर वर्चस्‍व का मतलब है सत्‍ता पाना। यही कारण है कि प्रदीप मिश्रा की कथा के प्रभाव का राजनीतिक मार्ग एक ही रहे इस मंशा से उनकी आलोचना करने वालों में बीजेपी समर्थक आगे हैं। 

शिवराज ने बदल दी आबकारी नीति, अब क्‍या करेगी उमा 

अंतत: विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने के पहले शिवराज सरकार ने नई आबकारी नीति को मंजूरी दे दी है। इस नीति की गंभीरता को इस बात से समझा जा सकता है कि सभी मंत्रियों को 19 फरवरी को अनिवार्य रूप से भोपाल बुलाया गया था और हर तरह की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने के लिए कैबिनेट बैठक में स्‍वयं मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह नीति पेश की। इस नीति से उमा भारती और उनके समर्थक खुश हैं। 

उमा भारती का खुश होना लाजमी भी है। आखिरकार यह नीति उनके दबाव में ही बदली गई है। वे पिछले डेढ़ साल से प्रदेश में शराबबंदी की मांग कर रही हैं। उन्होंने भोपाल की एक शराब दुकान पर पत्थर फेंककर अपना अभियान शुरू किया था। पहले तो सरकार और बीजेपी ने उनके हर आक्रामक कदम को नजरअंदाज किया मगर जब वे लोधी समाज के बीच पहुंच कर सक्रिय हुई तो बीजेपी को अपने वोट जाते दिखाई दिए। बीते दिनों जब मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब नागपुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की थी तो माना गया कि उमा भारती को शराबबंदी के मुद्दे पर संघ का साथ मिल गया है। 

हुआ भी यही। सीएम चौहान की संघ प्रमुख से मुलाकात के बाद नई आबकारी नीति मंजूर हो गई। इस नीति की उमा भारती के अलावा बाबा रामदेव सहित अन्‍य लोगों ने भी प्रशंसा की। यानी मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रयासों के राजनीतिक माइलेज लेने के पूरे प्रयत्‍न हुए। खुद उमा भारती ने ट्वीट किया है कि मुख्यमंत्री जी ने अपनी वचनबद्धता पूरी की, अब आपको अपना कर्तव्य पूरा करना है। इस शराब नीति से मेरे बड़े भाई ने व्यक्तिगत तौर पर मुझे परम संतोष एवं गौरव प्रदान किया है। 

एक तरह से उमा भारती का दबाव कारगर हुआ है लेकिन सवाल तो उनकी राजनीतिक पुनर्वास का है। क्‍या लोधी वोटों का ध्रुवीकरण उनकी राजनीतिक वापसी में सहायक होगा? इस सवाल पर राय बंटी हुई है। बीजेपी सरकार ने शराब मामले पर उमा भारती की बात मान कर अपना हाथ ऊंचा कर लिया है। अब राजनीतिक मामलों में उनकी बात को नजरअंदाज करना आसान होगा। यूं भी आबकारी नीति मामले पर उमा भारती को डेढ़ साल तो नजरअंदाज किया ही गया था। फिलहाल अपनी राजनीति मंशाओं को पूरा करवाने के लिए उमा भारती के अगले कदम क्‍या होंगे, यह राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र हैं। 

खोदा पहाड़ फिर निकला चूहा, आखिर कितना खोदें 

हैदर अली आतिश का प्रख्‍यात शेर है, ‘बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का/ जो चीरा तो इक कतरा-ए-ख़ूं न निकला।’ मध्‍यप्रदेश में मंत्रिमंडल के विस्‍तार को लेकर भी यही हो रहा है। हर बार चर्चा होती है कि अब शिवराज मंत्रिमंडल का विस्‍तार होगा। खबरें उड़ती है कि संगठन कुछ मंत्रियों के काम से नाखुश है। कहा जाता है कि मंत्रियों को हिदायत दे दी गई है। अब तो इनका पद गया समझो। हर बार ऐसी खबरों के बाद मंत्री बनने का इंतजार कर रहे नेताओं के चेहरे पर चमक आती है और कुछ दिनों बाद लौट जाती है क्‍योंकि मंत्रिमंडल के विस्‍तार की खबरें जैसे आती हैं, वैसे ही गायब हो जाती हैं। 

इसबार भी यही हुआ। पिछले कई दिनों से बीजेपी की समीक्षा बैठकों में मंत्रियों के कामकाज को लेकर नकारात्‍मक टिप्‍पणियां की जा रही है। फिर सभी मंत्रियों को विकास यात्रा छोड़ कर जब 19 फरवरी को भोपाल आने के लिए कहा गया तो माना गया कि अब कुछ हलचल होगी। खाली पड़े 4 पदों को भरने के अलावा कुछ मंत्रियों को हटाया जा सकता है। इन खबरों के बाद मंत्री बनने के लिए उत्‍सुक और पद खोने से भयभीत करीब डेढ़ दर्जन नेताओं की राजनीतिक सक्रियता बढ़ गई। 19 फरवरी को हुआ वही जो पहले होता आया है। मुख्‍यमंत्री निवास पर हुई कैबिनेट बैठक में आबकारी नीति को मंजूरी और कुछ हिदायतों के अलावा कुछ नहीं हुआ। 

मंत्री बनने और राजनीतिक नियुक्तियां पाने के इच्‍छुक नेता एक बार फिर निराश हुए हैं। एक बार फिर सरकार को कोसा जा रहा है। एक दूसरे से बात कर ये नेता अपना गम साझा कर रहे हैं। पीड़ा यह कि और कितना इंतजार करें। पूर्व मंत्री दीपक जोशी की सोशल मीडिया पोस्‍ट भी इसी आक्रोश का हिस्‍सा माना जा रहा है। दीपक जोशी ने लिखा है कि छल, कपट और पाप का फल इसी धरती पर भुगतना पड़ता है। समय किसर को माफ नहीं करता है। भीतरघात से हार का शिकार हुए दीपक जोशी सहित अन्‍य नेताओं को दरकिनार किए जाने की पीड़ा है। 

जीतू पटवारी का फार्मूला आसान कर सकता है कांग्रेस की राह 

मिशन 2023 के लिए बीजेपी और कांग्रेस अलग अलग क्षेत्रीय और जातीय समीकरण साध रही हैं। आदिवासियों को लुभाने के लिए बीजेपी दो साल से विभिन्‍न आयोजन कर रही है। पेसा एक्‍ट लागू किया गया है। महिलाओं के लिए लाड़ली बहन योजना प्रस्‍तुत कर दी गई है। दलितों के लिए अलग-अलग घोषणाएं की गई हैं। जबकि कांग्रेस बुदंलेखंड, विंध्‍य, ग्‍वालियर-चंबल क्षेत्र में अपनी जमीन मजबूत करने पर जुटी है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने मालवा-निमाड़ में पार्टी को ताकत देने का काम किया है। 

इन सभी कोशिशों में युवा कुछ पीछे छूट रहे हैं। रोजगार मेले और मुख्‍यमंत्री स्‍वउद्यमी योजना जरूर लागू है लेकिन बेरोजगारी अब भी बड़ा मुद्दा है। ऐसे में कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी की एक घोषणा ने युवाओं का ध्‍यान आकृष्‍ट किया है। 

पूर्व उच्‍च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी ने कहा है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो युवाओं से सरकारी भर्ती में फीस नहीं ली जाएगी। राजस्थान की कांग्रेस सरकार यह फैसला कर चुकी है। बेरोजगार युवाओं के लिए भर्ती परीक्षा की फीस बड़ा मसला है। खासकर प्रोफेशनल एक्‍जामिनेशन बोर्ड द्वारा करवाई जाने वाली परीक्षाएं। बोर्ड ने कई परीक्षाओं का ऐलान किया। फार्म भरवाए गए। फीस वसूली गई और फिर परीक्षा स्‍थगित कर दी गई। ऐसे ही फीस से बोर्ड के पास 500 करोड़ रुपए एकत्रित हो चुके हैं। इस एफडी के ब्‍याज से ही काम चल सकता है। 

जीतू पटवारी विधानसभा में भी यह मुद्दा उठा चुके हैं कि शिवराज सरकार बेरोजगारों से फीस लेना बंद करें मगर अब तक तो सरकार ने सुनवाई नहीं की है। अब चुनावी समय में कांग्रेस का यह कदम बेरोजगार युवाओं के लिए राहत भरा हो सकता है। यह संदेश सही तरीके से पहुंच गया तो युवाओं का समर्थन कांग्रेस की राह आसान कर देगा।