शहडोल जिला अस्पताल में एक और बच्चे की मौत, अब तक 21 बच्चों की गई जान

मध्य प्रदेश के शहडोल में नहीं थम रहा मासूम बच्चों की मौत का सिलसिला, सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की ख़ामियों के कारण अब तक 21 बच्चों की मौत

Updated: Dec 12, 2020, 09:14 PM IST

Photo Courtesy: Bhaskar
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शहडोल। शहडोल में नवजात मासूम बच्चों की मौत का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है, शुक्रवार को एक और नवजात बच्चे ने दम तोड़ दिया। चार दिन के बच्चे की मौत के बाद यहां मरने वाले बच्चों की संख्या 21 हो गई है।गौरतलब है कि शहडोल के जिला अस्पताल में 18 बच्चों ने दो हफ्ते में दम तोड़ा था। एक बच्चे की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही रास्ते में हो गई थी।

जबलपुर और बुढ़ार में भी दो बच्चों की मौत हो चुकी है। आपको बता दें कि 26 नवंबर की रात से शहडोल जिला अस्पताल में बच्चों की मौतों का सिलसिला शुरू हुआ था। सिविल सर्जन डॉक्टर जीएस परिहार से मिली जानकारी के अनुसार कल्याणपुर निवासी लक्ष्मी राव ने 8 दिसंबर को जिला चिकित्सालय पहुंचने से पहले रास्ते में ही बच्चे को जन्म दिया था, जिसकी शुक्रवार को मौत हो गई। यहां के शहडोल के सरकारी अस्पताल में लगातार बच्चों की मौतों से इलाके में हड़कंप मचा हुआ है।

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इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत के बाद कांग्रेस ने सरकार पर जमकर सवाल खड़े किए थे। कांग्रेस का आरोप था कि यहां गंभीर बीमार बच्चों के इलाज़ में भी देरी होती है, वहीं मौत के आंकड़ों को छिपाने की कोशिश की जाती है।

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विपक्ष के हंगामे के बाद शिवराज सरकार हरकत में आई और आनन-फानन में आपात बैठक बुलाई गई। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मध्य प्रदेश की संचालक छवि भारद्वाज ने ऑन लाइन मीटिंग की थी। इसमें स्वास्थ्य विभाग के उत्त अधिकारी और उप संचालक स्वास्थ्य (रीवा) भी मौजूद थे। शासन ने रिव्यू में फील्ड स्टाफ यानी मैदानी अमले को जिम्मेदार पाया था।

रिव्यू में माना गया था कि फील्मड स्टाफ की लापरवाही से बच्चे समय पर अस्पताल नहीं पहुंचे। अगर उन्हें समय पर अस्पताल पहुंचा दिया जाता तो उनकी जान बचाई जा सकती थी। आपको बता दें कि शहडोल के कुशाभाऊ ठाकरे जिला चिकित्सालय में बाल रोग विशेषज्ञ नहीं हैं। अब यहां जिला अस्पताल का  इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने और मेडिकल कॉलेज में भी नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (SNCU)जल्द से जल्द शुरू कराने और बाल रोग विशेषज्ञ की नियुक्त करने का सुझाव दिया गया है।