पंजीयन के लिए आवेदन कर हफ्तेभर किया था इंतजार

सीएम श्रमिकों को धैर्य रखने के लिए कह रहे हैं जबकि औरंगाबाद ट्रेन हादसे में मृत श्रमिकों की पंजीयन की कोशिशें हुईं बेकार

Publish: May 10, 2020, 01:09 AM IST

photo courtesy : the indian express
photo courtesy : the indian express

रेलवे ट्रैक पर कुचलकर मरे मध्य प्रदेश के मजदूरों पर एक सनसनीखेज खुलासा हुआ है। हादसे में बचे मजदूर धीरेंद्र सिंह का कहना है कि उन्होंने एक हफ्ते पहले पंजीयन के लिए कोशिशें की थीं, लेकिन एमपी सरकार से कोई उत्तर नहीं मिला। आखिरकार मजबूर होकर उन्हें पैदल चला पड़ा।

यही आरोप कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का भी है। दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट कर कहा है कि उनके कार्यालय द्वारा 2,3 और 4 मई को महाराष्ट्र में फंसे मजदूरों को वापस लाने के लिए और पंजीयन के लिए कई कोशिशें की गईं लेकिन जिम्मेदार अधिकारी और उनके दफ्तर में किसी ने फोन तक नहीं उठाया। दिग्विजय सिंह ने इस हादसे के जिम्मेदार लोगों पर सवाल उठाते हुए कार्रवाई की मांग की है।

 

वहीं, एमपी कांग्रेस ने जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट के ट्वीट पर व्यंग्‍य करते हुए लिखा है कि “ हे महामानव, युद्ध भूमि के उपदेश और अपने लोगों की मृत्यु के भाव के अंतर को कब समझोगे?” कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्‍यक्ष जीतू पटवारी ने भी इस बाबत ट्वीट किया और मांग की थी कि महाराष्‍ट्र से समन्‍वय के लिए अधिकृत आईएएस अधिकारी को निलंबित कीजिए। कांग्रेस ने इसे शिवराज का जंगलराज भी बताया है।

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश सरकार ने महाराषट्र से मजदूरों की वापसी और पंजीयन के लिए प्रमुख सचिव दीपाली रस्तोगी को ये जिम्मा दिया है और एक हेल्पलाइन नंबर 0755-2411180 भी दिया गया है जिसपर मजदूर अपना पंजीकरण कराकर सरकारी मदद के लिए आवेदन कर सकते हैं। लेकिन मुश्किल ये है कि ना तो नेता और ना ही मजदूरों को इस विभाग से कोई जवाब मिल पा रहा है।

कल ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने दुर्घटना पर दुख जताते हुए मजदूरों की मदद का भरोसा दिलाया था तथा उपरोक्त हेल्पलाइन पर अपना रजिस्ट्रेशन कराने की अपील की थी। लेकिन आज मजदूर और विपक्ष सभी ये सवाल पूछ रहे हैं कि जिन मजदूरों के मरने के बाद शिवराज जी ने विमान भेजा, अगर पहले ही बस भेज दिया होता तो शायद ये हादसा टल सकता था।

जीवन से हारे इन मजदूरों पर अंग्रेजी अखबार द हिन्‍दु ने परिजनों से बात की तो पता चला कि मौत से एक रात पहले उमरिया जिले के एक मजदूर ने अपनी पत्नी, कृष्णावती सिंह को फोन करके कहा था कि उनके पास खाने-पीने के लिए कुछ नहीं बचा है और उनका कॉन्ट्रैक्टर उन्हें पैसे नहीं दे रहा है। कृष्णावती ने पति को याद करते हुए कहा कि 800 किलोमीटर चलकर घर पहुंचने के लिए निकले उनके पति ने गुरूवार की रात 9 बजे फोन पर कहा था कि भूख- प्यास से मरने की नौबत आ चुकी है….आगे वो ये भी कहती हैं कि उनके पास एक पशु भी नहीं, जिसे बेचकर वो किसी तरह अपने घर परिवार का पेट पालतीं...।

कृष्णावती मामन गांव, उमरिया की रहनेवाली हैं, जिस गांव के 4 मजदूर इस ट्रेन हादसे में कटकर मर गए। कुछ ऐसा ही बयान हादसे के शिकार हुए शहडोल के मजदूर परिवारों का भी है।