बड़े बांध के प्रस्ताव अव्यावहारिक, छोटे बांध ज्यादा कारगर, पार्वती-कालीसिंध-चंबल लिंक प्रोजेक्ट की समीक्षा बैठक में बोले दिग्विजय सिंह
पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने पार्वती-कालीसिंध-चंबल लिंक में बड़े बांधों का विरोध किया, सिंह ने बड़े बांध के कारण विस्थापन, जमीन डूबने और लागत बढ़ने जैसी चिंताएं रखीं।
गुना। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने रविवार को गुना जिले के कुंभराज क्षेत्र स्थित घाटाखेड़ी गांव में पार्वती-कालीसिंध-चंबल नदी जोड़ो लिंक परियोजना की विस्तृत समीक्षा की। इस दौरान उनके साथ कई विशेषज्ञ इंजीनियर भी मौजूद रहे। बैठक में बड़े बांध के प्रस्ताव को अव्यावहारिक बताते हुए उन्होंने इसके स्थान पर छोटे बांध बनाने की सलाह दी। स्थानीय किसानों ने भी बड़े बांध से होने वाली संभावित समस्याओं पर अपनी चिंता व्यक्त की।
समीक्षा बैठक के दौरान दिग्विजय सिंह ने कहा कि घाटाखेड़ी में बनने वाला बड़ा बांध जमीन अधिग्रहण और लागत दोनों दृष्टि से अव्यावहारिक है। उनके साथ आए विशेषज्ञ इंजीनियरों ने भी यह राय दी कि क्षेत्र में इतने बड़े बांध की आवश्यकता नहीं है। स्थानीय ग्रामीणों ने भी बताया कि यदि बड़ा बांध बनता है तो उनकी खेती योग्य जमीन डूब क्षेत्र में चली जाएगी, जिससे आजीविका प्रभावित होगी।
दिग्विजय सिंह ने ग्रामीणों व किसानों के साथ अलग से चर्चा की। इस दौरान किसानों ने बड़े बांध के कारण विस्थापन, जमीन डूबने और लागत बढ़ने जैसी चिंताएं रखीं। उन्होंने इंजीनियरों से आमने-सामने सवाल-जवाब कराए ताकि तकनीकी और व्यावहारिक पहलुओं को समझा जा सके। पूर्व मुख्यमंत्री ने बताया कि पहले बांध बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता था कि कितनी जमीन सिंचित होगी और कितनी जमीन डूब में जाएगी।
सिंह ने उदाहरण देते हुए कहा कि नरसिंहगढ़ के पास बने बांध में ज्यादातर वन भूमि अधिग्रहीत हुई थी।
लेकिन सुठालिया बांध में अधिकांश कृषि भूमि डूब क्षेत्र में गई, जिससे किसान प्रभावित हुए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि वह दीतलवाड़ा हो या घाटाखेड़ी, दोनों स्थानों पर बड़े बांध के विरोध में हैं।
किसानों से चर्चा के दौरान दिग्विजय सिंह ने कहा कि 10,000 एकड़ से अधिक डूब क्षेत्र वाले किसी भी बांध के लिए केंद्रीय जल आयोग की मंजूरी अनिवार्य होती है। लेकिन वर्तमान परियोजनाओं में इन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है। दिग्विजय सिंह ने कहा कि कांग्रेस सरकार के दौरान वाटरशेड मॉडल अपनाकर 'गांव का पानी गांव में' और 'खेत का पानी खेत में' रखने की योजना चलाई गई थी। भाजपा सरकार आने के बाद यह योजना बंद कर दी गई, जिससे जल संरक्षण के प्रयास कमजोर हुए हैं।




