मध्य प्रदेश की हेरिटेज महुआ शराब हुई फ्लॉप, फैक्ट्रियों में लगे ताले, श्रमिक पलायन को मजबूर

मध्य प्रदेश की आदिवासी अर्थव्यवस्था के लिए महुआ को गेम-चेंजर बताया गया था। इसकी फूलों से बनी शराब को हेरिटेज शराब का दर्जा दिया गया लेकिन अब इसके उत्पादन पर ब्रेक लग गया है।

Updated: Jan 27, 2025, 07:18 PM IST

Photo Courtesy: NDTV
Photo Courtesy: NDTV

भोपाल। मध्य प्रदेश की पूर्ववर्ती शिवराज सरकार ने चार साल पहले महुआ से बनी शराब को "हेरिटेज शराब" का तमगा दिया था। शिवराज सरकार ने महुआ से बनी शराब को आदिवासी अर्थव्यवस्था के लिए गेम-चेंजर करार देते हुए इसके प्लांट्स लगाए थे। हालांकि, सिस्टम की मदहोशी के कारण ये प्लांट बंद हो गए। इतना ही नहीं यहां कार्यरत श्रमिक अब पलायन को मजबूर हैं।

दरअसल, राज्य सरकार ने कहा था कि आदिवासियों को महुआ शराब खुद बनाने और बेचने के लिए भी परमिशन दिया जाएगा। जानकारों ने इसे अच्छी पहल बताया लेकिन इसे अमल में लाने में लापरवाही हुई। न तो इसके विपणन का सही से इंतजाम किया गया और न ही इसका प्रचार ही किया गया। नतीजा ये हुआ कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद योजना अधर में हैं। इसमें लगे मजदूर गुजरात पलायन कर गए। जो हेरिटज शराब बनी वो भी सड़ने लगी और उसे नष्ट करना पड़ा।

मध्य प्रदेश में महुआ खूब होता है। एक अनुमान के मुताबिक राज्य में साढ़े 7 साल क्विंटल से भी ज्यादा महुआ का उत्पादन हुआ था। महुआ लघु वनोपज है जिसका समर्थन मूल्य 35 रु था लेकिन हेरिटज लिकर के लिये सरकार ने इसे 40 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से खरीदना शुरू किया। आदिवासी बहुल अलीराजपुर और डिंडोरी जैसे जिलों में मॉडल महिला स्वयं सहायता समूह बनाये थे। उन्हें शराब बनाने की प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता दी गई।

इसके साथ ही महुआ से शराब बनाने के लिए अलीराजपुर और डिंडोरी में करोड़ों की लागत से दो डिस्टिलरी यूनिट भी बनाई गई। इसी के तहत पुणे के वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट में 13 स्थानीय लोगों को महुआ स्पिरिट उत्पादन की पारंपरिक और वैज्ञानिक तकनीकों पर 22 दिनों की ट्रेनिंग मिली। तब लगा कि शायद इन जिलों के आदिवासियों की किस्मत बदलेगी। लेकिन अलीराजपुर में बनी फैक्ट्री महीनों से बंद पड़ी है। इसका बॉयलर खराब हो चुका है और यहां के श्रमिक काम की तलाश में गुजरात पलायन कर चुके हैं।

अलीराजपुर की फैक्ट्री में टैक्निशयन अंकिता भाबर ने बताया कि ये प्लांट दिसंबर 2022 में बना था लेकिन अब ये बंद है। प्लांट का बॉयलर खराब हो गया है। उन्होंने बताया कि सीजन में हम महुआ ग्रामीणों से खरीदते हैं और फिर पूरे साल के लिए स्टॉक करके रख लेते हैं। अब चूंकि प्लांट बंद है लिहाजा यहां के मजदूर गुजरात चले गए हैं। इसी तरह डिंडोरी की डिस्टिलरी भी बंद पड़ी है। जिसकी वजह से स्व-सहायता समूह को नुकसान उठाना पड़ रहा है। फैक्ट्री से जुड़े लोग बताते हैं कि आधी इंवेट्री भी नहीं बिकी। यहां कोई महुआ बीनता था, कोई चक्की पीसता था, बॉटलिंग, कैप लगाना सारे काम यहीं होते थे, अब सब बंद हैं। यहां तक की मजदूरों के पैसे भी अटके हैं।