मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव निरस्त, शिवराज चौहान कैबिनेट ने पारित किया रोक लगाने संबंधी प्रस्ताव

रविवार को शिवराज कैबिनेट ने पंचायत राज संशोधित अध्यादेश वापस लेने का प्रस्ताव पास कर दिया, जिससे राज्य में पंचायत चुनाव पर रोक लगने की स्थिति बन गयी है...पंचायत चुनाव का आधार ख़त्म हो गया है

Updated: Dec 26, 2021, 09:35 AM IST

भोपाल। मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने पंचायत चुनाव पर रोक लगाने का फैसला किया है। रविवार को हुई कैबिनेट की बैठक में पंचायती राज का संशोधित अध्यादेश वापस लेने का प्रस्ताव पारित हो गया है। इसके साथ ही पंचायत चुनाव कराने संबंधी सरकार का आधार समाप्त हो गया है। कैबिनेट के प्रस्ताव पर राज्यपाल की मुहर के साथ ही पंचायत राज संशोधन विधेयक निरस्त मान लिया जाएगा।

संशोधित अध्यादेश के तहत सरकार पुराने पंचायती राज अधिनियम के तहत होनेवाले रोटेशन प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए चुनाव करा रही थी।   जिसका विपक्ष विरोध कर रहा था और मामला कोर्ट में चला गया था। विपक्ष का आरोप है पंचायत राज अधिनियम के तहत सरकार को हर चुनाव से पहले परिसीमन कर आरक्षण की रोटेशन प्रक्रिया अपनाना जरूरी है, लेकिन मौजूदा शिवराज सरकार सात साल पुराने आरक्षण और रोटेशन के आधार पर चुनाव कराना चाह रही थी।  

पंचायती राज मंत्री महेंद्र सिंह चौहान ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए इसे खारिज करने का प्रस्ताव किया जिसपर कैबिनेट की मुहर लग गई। शिवराज सरकार के मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि हमने बिना ओबीसी आरक्षण के पंचायत चुनाव में न जाने का निर्णय लिया है। लेकिन असल में सरकार यह नहीं बता रही कि आरक्षण के तहत हर पांच साल पर होनेवाले रोटेशन में जिन नए लोगों को मौका मिलना था, उनके हक इस संशोधित अध्यादेश की वजह से मारे जा रहे थे।

शिवराज सरकार ने पंचायत चुनावों के मद्देनजर जारी किया गया अध्यादेश वापस ले लिया है। इस अध्यादेश में सरकार ने पंचायत राज अधियम के मुताबिक हर चुनाव से पहले रोटेशन और परिसीमन की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। विपक्ष ने सदन से लेकर अदालत तक इसे चुनौती दी और आखिरकार सरकार ने भी इसे मान लिया है।

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दरअसल पंचायत चुनाव की तैयारियों के बीच नवंबर महीने के आखिर में शिवराज सरकार ने ग्राम पंचायतों के संबंध में एक अध्यादेश जारी किया था। जिसमें कमल नाथ सरकार द्वारा लागू किए गए परिसीमन को निरस्त करने का प्रावधान था। 2019 में कमल नाथ सरकार ने 2011 की जनगणना के आधार पर पंचायतों का नए सिरे से परिसीमन किया था। लेकिन शिवराज सरकार ने अध्यादेश के ज़रिए 1950 के परिसीमन को दोबारा लागू कर दिया था। शिवराज सरकार के इस फैसले का कांग्रेस पार्टी ने पुरजोर विरोध किया था और सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण पर स्टे लगा दिया। 

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विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू होते ही सदन में इस मुद्दे पर कांग्रेस और बीजेपी में आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। कांग्रेस पार्टी ने सत्ताधारी दल बीजेपी पर आरोप लगाया कि सरकार ने पहले चुनावों में रोटेशन पॉलिसी का पालन नहीं किया और जब कोर्ट में पक्ष रखने की बारी आई, तब सरकार ने अपना पक्ष भी सही ढंग से नहीं रखा। जिस वजह से कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण पर स्टे लगाने का फरमान सुना दिया। 

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सदन में दोनों पक्षों के बीच हुई तीखी बहस के बाद बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव न कराए जाने का संकल्प लिया गया। इस संकल्प को सर्वसम्मति से विधानसभा में पास किया गया। जिसके बाद से ही प्रदेश में पंचायत चुनाव को टाले जाने के आसार बढ़ गए थे। हाल ही में गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भी कोरोना का हवाला देते हुए पंचायत चुनाव को टालने के संकेत दिए थे।