पांढुर्णा में बारिश के बीच शुरू हुआ विश्व प्रसिद्ध गोटमार खेल, पत्थरबाजी में अबतक 125 लोग घायल

पांढुर्णा में आज सावरगांव पक्ष के लोगों ने सुबह 4:30 बजे जाम नदी में पलाश का झंडा लगाकर मेले की औपचारिक शुरुआत कर दी है। 

Updated: Sep 15, 2023, 03:45 PM IST

पांढुर्णा। भारत में आज भी कई ऐसे त्यौहार, उत्सव, मेलों और परंपराओं का आयोजन होता है, जो आम जन के लिए कई तरह से घातक है। इसी क्रम में मध्य प्रदेश के पांढुर्णा में होने वाले विश्व प्रसिद्ध पांढुर्णा मेले को भी सम्मिलित किया जाता है। आज औपचारिक रूप से इस मेले की शुरुआत हो चुकी है। आज दोपहर 12 बजे से लोगों ने एक दूसरे पर पत्थर फेंकना शुरु किया। जिसमें अबतक 125 लोग घायल हो गए हैं। 

पांढुर्णा के इस मेले में हर वर्ष हजारों लोग शामिल होते हैं। मेले में लोग एक दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। मेले के इतिहास में कई लोग इस खेल में मारे जा चुके हैं। 1955 से अबतक इस मेले में 14 लोगों की जान पत्थरों से घायल होने की वजह से हो चुकी है। मेले की शुरुआत शुरकवार सुबह 4.30 पर सावरगांव पक्ष के लोगों ने जाम नदी में पलाश का झंडा स्थापित कर की। दोपहर 12 बजे से मेले में पत्थरबाजी का खेल शुरु हो गया इसमें अबतक 125 लोग घायल हो गए। जिन्हें मौके पर मौजूद प्रशासनिक अमले ने अस्पताल पहुंचाया। 

हालांकि, पांढुर्णा में आज पहले से ही इस उत्सव के चलते प्रशासन अलर्ट पर है। मेले के दौरान अवैध शराब बिक्री, गाली-गलौज, मारपीट करने वालों पर केस दर्ज किया जाएगा। मौक पर जिला कलेक्टर व एसपी समेत अन्य अफसर मौजूद हैं। मेला स्थल और शहर भर में पुलिस तैनात है। पांढुर्णा में धारा 144 लगा दी गई है। 

मेला स्थल पर दो एएसपी, 7 एसडीओपी, 10 थाना प्रभारी, 30 एसआई, 50 एएसआई और करीब 500 एसएएफ, होमगार्ड, वन विभाग, जिला पुलिस बल के जवान सहित 600 लोग तैनात हैं। मेले में घायल होने वालों के लिए डॉक्टरों की हेल्थ केयर टीम और 10 एम्बुलेंस भी तैनात की गई हैं। पूरे मेलास्थल पर पुलिस ड्रोन कैमरे से निगरानी रख रही है। 

पांढुर्णा में मेले की शुरुआत आज से करीब 300 साल पहले हुई थी। मान्यता है कि 300 साल पहले पांढुर्णा का युवक सावरगांव की युवती को प्रेम प्रसंग के चलते भगाकर ले जा रहा था। वे दोनों जैसे ही जाम नदी पर पहुंचे, तो युवती के परिवार और सावरगांव वालों ने युवक पर पत्थरों की बौछार करना शुरु कर दिया। जैसे ही, युवक के गांववालों को इस बात का पता लगा, तो उन्होंने भी बचाव के लिए सावरगांव वालों पर पत्थर बरसाना शुरु कर दिया। इस पत्थरबाजी में युवक औऱ युवती की बीच नदी में ही मौत हो गई। 

इसके बाद ग्रामीणों ने दोनों के शव को चंडी माता के मंदिर में रखकर क्षमा याचना की और माता चंडिका की पूजा करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार किया। 
इसके बाद से हर साल यह उत्सव मनाया जाने लगा। तब से लेकर अब तक दोनों पक्षों के ग्रामीण प्रायश्चित के रूप में एक दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। हालांकि इस खेल में हर साल कई लोग घायल होते हैं। लेकिन गांव वालों का कहना है कि यह हमारी परंपरा का हिस्सा है। खेल खत्म होने के बाद सभी ग्रामीण आपस में गले मिलते हैं।

मानवाधिकार आयोग ने गोटमार मेले का स्वरूप बदलने के लिए कई बार जिला प्रशासन को निर्देश दिए हैं। लेकिन विगत कई वर्षों के प्रयासों के बावजूद भी जिला प्रशासन गोटमार मेले का स्वरूप बदलने में नाकाम साबित हो रहा है। छिंदवाड़ा के कलेक्टर ने आज लोगों से अपील करते हुए कहा कि गोटमार मेला प्रेम का प्रतीक है, लोगों से अपील है कि मेले को शांतिप्रिय ढंग से मनाएं। ताकि कोई भी अप्रिय स्थिति नहीं बने। लेकिन गांव वाले इस आस्था का विषय बताते हैं और अपनी परंपरा में बदलाव करने को तैयार नहीं होते।