क्या सत्ता की अंतरात्मा पर दस्तक दे पाएंगी सर्दी में भीगते अन्नदाता की तस्वीरें

दिल्ली में रविवार की सुबह कड़कड़ाती ठंड के बीच तेज़ बारिश, सड़कों पर डटे किसानों की बढ़ी मुश्किलें लेकिन अब भी बुलंद हैं हौसले

Updated: Jan 03, 2021, 06:17 PM IST

Photo Courtesy : Hindustan Times
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नई दिल्ली। देश की राजधानी की हाड़ कंपाने वाली सर्दी को आज सुबह से हो रही बारिश ने और भी असहनीय बना दिया। पहले से घरों में बंद लोग और भी दुबक गए। इस बरसात के कारण एक महीने से ज़्यादा वक्त से सड़कों पर डटे लाखों अन्नदाताओं का इम्तेहान और मुश्किल कर हो गया। टेंट टपकने लगे, सड़कों पर रखे गद्दे भीग गए। दिल्ली की चुभने वाली सर्दी की मार और बेरहम हो गयी। मगर किसानों के हौसलों ने न तो सरकारों के दमन के आगे घुटने टेकना सीखा है और न कुदरत के कहर से हार मानना। लेकिन क्या इस भयंकर सर्दी में सड़क पर भीगते अन्नदाता की तस्वीरें सत्ता की अंतरात्मा को छू पाएंगी?

मेहनत और सत्ता के बीच छिड़े इस संघर्ष के बीच कुदरत भी मेहनतकश का ही इम्तहान लेने पर आमादा है। किसान इस इम्तहान को हर हाल में पास करने पर अडिग हैं। तमाम मुसीबतों का सामना करके देश के लिए अनाज उगाने वाले किसान आज अपने अस्तित्व की लड़ाई में हर तूफान से टकराने का जज़्बा लिए, सत्ता की सरहदों पर दस्तक देने का सिलसिला लगातार जारी रखे हैं। निराशा पैदा करने वाले हालात की परवाह न करके वे अब भी इस हौसले को जिलाए हुए हैं कि उनकी आवाज़ एक न एक दिन हुक्मरानों की अंतरात्मा पर भी ज़रूर दस्तक देगी।

Photo Courtesy: Twitter/ANI

आज सुबह दिल्ली की सरहदों पर डटे किसानों की तस्वीरें गवाह हैं कि वो बारिश की बूंदों से, सर्दी के कहर से हार मानने की जगह जिंदगी की कुर्बानी देना बेहतर समझते हैं। जिन्हें अब तक समझ न आया हो, उन्हें यह साहस, यह अदम्य इच्छाशक्ति देखकर समझना चाहिए कि देश की सीमाओं पर सबसे बड़ी कुर्बानी देने वाले जवानों की वीरता का कभी न खत्म होने वाला स्रोत कहां है। अपनी अंतरात्मा को जगाकर इस तस्वीर को देखेंगे तो उन्हें एहसास होगा, जय जवान, जय किसान की घोषणा महज एक नारा नहीं, देश के अस्तित्व का एक ज़रूरी आधार है। 

यह लड़ाई मेहनतकश की सच्चाई और सत्ताधारी की ज़िद के बीच है। किसानों का संकल्प है कि उन्हें सरकार के बनाए तीन नए कानून नहीं, अपनी मेहनत की उपज के लिए वाजिब कीमत की गारंटी चाहिए। ताकि वे हमेशा की तरह अपना और इस देश का पेट भर सकें। मग़रूर सत्ताधारियों की ज़िद है कि देश में वही होगा जो हम चाहेंगे। विरोध की हर आवाज़ या तो कुचल दी जाएगी या थककर खामोश हो जाएगी। लेकिन हुक्मरानों के इस अहंकार को किसानों ने भी अपने संकल्प का आईना दिखा दिया है। उन्होंने एलान किया है कि अगर उसकी आवाज़ नहीं सुनी गई तो वो सत्ता की चौखट पर अनंतकाल तक इंतज़ार नहीं करता रहेगा। गणतंत्र दिवस पर इस देश का गण आगे बढ़ेगा और राजधानी की सड़कों पर उमड़कर अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की मुनादी बुलंद आवाज़ में करेगा।

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