जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज का देवलोकगमन, कल परमहंसी गंगा आश्रम में दी जाएगी समाधि

जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारका एवं ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य थे, उनका जन्म मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में एक ब्राह्मण परिवार के यहां हुआ था

Updated: Sep 11, 2022, 02:08 PM IST

नरसिंहपुर। सनातन धर्म के ध्वजवाहक जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज ब्रह्मलीन हो गए हैं। उन्होंने रविवार को नरसिंहपुर स्थित झोतेश्वर परमहंसी गंगा आश्रम में 99 साल की उम्र में दोपहर साढ़े तीन बजे अंतिम सांसें ली। वह दो मठों (द्वारका की शारदा पीठ और ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ) के शंकराचार्य थे। बीते 2 सितंबर को ही उन्होंने अपना 99वाँ जन्मदिन मनाया था।

जगतगुरु के निधन से उनके करोड़ों अनुयायी शोक में डूब गए हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उनके निधन पर दुख जताया है। प्रियंका ने ट्वीट किया, 'जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के महाप्रयाण का समाचार सुनकर मन को भारी दुख पहुंचा। स्वामी जी ने धर्म, अध्यात्म व परमार्थ के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।' 

कांग्रेस महासचिव ने आगे लिखा कि, 'साल 2021 में प्रयागराज में गंगा स्नान के बाद उनका आशीर्वाद प्राप्त कर देश व धर्म की उदारता व सद्भावना पर उनके साथ चर्चा करने का मौका मिला। स्वामी जी ने मेरे पिता के रहते हुए 1990 में हमारी गृहप्रवेश की पूजा कराई थी। ये पूरे समाज के लिए एक अपूर्णीय क्षति है। ईश्वर से प्रार्थना है कि इस कठिन समय में स्वामी जी के अनुयायियों को कष्ट सहने का साहस दें। ॐ शांति!'

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने इसे अपना व्यक्तिगत क्षति बताया है। उन्होंने लिखा कि, 'हमारे पूज्य गुरुदेव जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के देवलोक गमन की खबर मेरे लिए गहरे आघात जैसी है और बड़ी व्यक्तिगत क्षति है। वे मेरे मार्गदर्शक तो थे ही, मेरे बहुत बड़े शुभचिंतक भी थे। मैं उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। ॐ शांति।' बता दें कि सिंह स्वामी स्वरूपानंद महाराज के दीक्षित शिष्य हैं।

हिंदुओं के सबसे बड़े धर्मगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में एक ब्राह्मण परिवार के घर हुआ था। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। महज नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। 

यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। जब सन 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी। आजादी की लड़ाई में बतौर सन्यासी उनका योगदान अहम माना जाता है।

स्वामी स्वरूपानंद 1973 में स्वामी कृष्णबोध आश्रम के निधन पर ज्योतिरमठ, बद्रीनाथ के शंकराचार्य की उपाधि स्वामी स्वरूपानंद को प्राप्त हुई। 1982 में वे द्वारका पीठ के शंकराचार्य भी बने। शंकराचार्य का पद हिंदू धर्म में सर्वोच्च माना जाता है। हिंदुओं का मार्गदर्शन एवं भगवत् प्राप्ति के साधन आदि विषयों में हिंदुओं को आदेश देने के विशेष अधिकार शंकराचार्यों को प्राप्त होते हैं।