दफ्तर दरबारी: तबादलों से आजिज आ कर स्टे और इस्तीफा

MP News: मिशन 2023 को पूरा करने में जुटी बीजेपी सरकार ने अपने नेताओं की मांग पर प्रदेश में तबादलों पर लगा प्रतिबंध हटाया और चुनावी बिसात पर प्रशासनिक जमावट की। इन तबादला आदेशों के साथ ही प्रदेश के अलग–अलग हिस्सों से खबर आई कि पोस्टिंग से परेशान अधिकारियों ने शासन और कलेक्टरों के निर्णय का विरोध शुरू हो गया है।

Updated: Aug 05, 2023, 03:14 PM IST

आईएएस का औसतन हर चौथे माह तबादला

यह चुनाव का मौसम है और तबादलों की झड़ी लगी है। नेताओं की मांग पर तबादलों पर से बैन हटाया गया है। साथ ही चुनाव के पहले प्रशासनिक जमावट भी की जा रही है। इस फेरबदल में नेताओं ने मनचाहे अफसरों की अपने क्षेत्र में पोस्टिंग करवा ली तो अफसरों ने भी इच्छित जगह पा ली। जब यह अदला-बदली मनचाही है तो सबकुछ ठीक होना चाहिए। मगर ऐसा है नहीं। तबादलों से दुःखी अधिकारियों ने स्टे पाने से लेकर आक्रोश में इस्तीफा देने तक के कदम उठा लिए हैं।

तबादलों के आदेश के साथ ही प्रदेश के अलग–अलग हिस्सों से खबर आई कि पोस्टिंग से परेशान अधिकारियों ने शासन और कलेक्टरों के निर्णय का विरोध शुरू हो गया है। विरोध की सबसे बड़ी खबर अनूपपुर जिले से आई। यहां जब जिला पंचायत सीईओ आईएएस अभय कुमार ओहरिया का ट्रांसफर किया गया तो ओहरिया हाईकोर्ट की शरण में चले गए। खबरों ने उनके हवाले से कहा कि पिछले 2 साल में उनका आठ बार ट्रांसफर हुआ है। हिसाब लगाएं तो औसतन हर चार माह में एक तबादला। जिला पंचायत सीईओ ओहरिया को कोर्ट से राहत मिली है लेकिन इससे प्रशासनिक संकट खड़ा हो गया है क्योंकि सरकार द्वारा किए गए तबादले के बाद नए सीईओ ने भी अनूपपुर में जॉइन कर लिया है। 

दूसरा मामला, श्योपुर का है जहां तहसीलदार अमिता सिंह ने जूनियर अधिकारियों को उनसे ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी देने का विरोध करते हुए श्योपुर कलेक्टर को त्यागपत्र भेज दिया। अपने इस्तीफे में उन्होंने लिखा है कि शिवपुरी में जिले में उनकी वरिष्ठता का अनादर करते हुए नायब तहसीलदार और सहायक अधीक्षक भू-अभिलेख को तहसीलदार पद के प्रभार सौंपे गए हैं और उनके मामले में इसकी अनदेखी की जा रही है। उन्हें नए कलेक्टर से उम्मीद थी कि मगर लिपिक वर्ग के स्टाफ की बातों में आकर कलेक्टर ने फिर उन्हें अच्छे दायित्व नहीं सौंपे हैं। इसलिए वे शासकीय सेवा से त्यागपत्र देने पर विवश हैं।

तीसरा मामला, मुरैना जिले का है। सबलगढ़ एसडीएम डिप्टी कलेक्टर मेघा तिवारी पिछले दिनों कलेक्टर दफ्तर में अटैच कर दी गईं। इससे नाराज होकर मेघा तिवारी ने गुरुवार को अपर कलेक्टर सीबी प्रसाद को इस्तीफा सौंप दिया। हालांकि कहा गया कि मेघा ने इस्तीफा नहीं लंबी छुट्टी के लिए आवेदन किया था। चुनाव को देखते हुए यह आवेदन भी अस्वीकार कर दिया गया है।

ये उदाहरण तो हांडी के चावल की तरह उदाहरण हैं। प्रदेश में असंतोष के ऐसे कई मामले भीतर ही भीतर खदबदा रहे हैं।

विवादास्पद अफसर की बेविभाग पोस्टिंग

आपको पन्ना कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा याद होंगे? वही जिनका विकास यात्रा के दौरान दिया गया बयान वायरल हुआ था। वे इस वायरल वीडियो में यह कहते सुने जा जा रहे हैं कि बीजेपी की यह सरकार अगले 25 साल तक रहनी चाहिए. जनता को किसी बहकावे-भरमाने में नहीं आना चाहिए. इसी शिद्दत के साथ शिवराज सरकार के साथ बने रहना चाहिए।  इस बयान के अलावा वे तब भी चर्चा में आए थे जब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि वे राजनीतिक एजेंट की तरह काम कर रहे हैं।

बीजेपी सांसद और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के करीबी माने जाने वाले कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा पर कई तरह के आरोप लगे। विपक्ष के विरोध के बाद भी उन्हें हटाया नहीं गया था। अब वे बतौर कलेक्टर तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा कर रहे थे तो चुनाव आयोग की गाइड लाइन के अनुसार चुनाव के पहले उन्हें हटाया जाना तय था। माना जा रहा था कि वे किसी और जिले या राजधानी में महत्वपूर्ण पद पर भेजा जाएगा।

इस सप्ताह राज्य सरकार ने आईएएस की तबादला सूची जारी की तो इसमें अब तक के सबसे ज्यादा विवादास्पद कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा  का नाम भी था। मगर उम्मीद के विपरीत उन्हें कोई महत्‍वपूर्ण पद नहीं दिया गया बल्कि मंत्रालय में बिना विभाग का उप सचिव पदस्‍थ कर दिया गया है। वे राज्‍य के सत्‍कार अधिकारी रह चुके हैं मगर अभी तो उनके लिए मंत्रालय में कोई विभाग, कोई कक्ष या स्‍टॉफ नहीं है। बिना विभाग के पदस्‍थ करना प्रशासनिक भाषा में सजा के तौर पर माना जाता है। अब सभी की निगाहें लगी हैं कि बीजेपी के लिए खुल कर बयान देने वाले अधिकारी की यह सजा कब तक कायम रहती है। 

चुनाव आए तो याद आया पुलिस का अवकाश

खुश हो जाइए कि चुनाव आ गए हैं। इसलिए खुश हो जाइए कि चुनाव के कारण सरकार हर तरह से मेहरबार है। तमाम तरह की योजनाएं, वादों और मांगों को पूरा कर रही बीजेपी सरकार को यकायक मैदानी पुलिस कर्मचारी याद आ गए हैं। चुनाव की बेला आई तो इन कर्मचारियों की पीड़ा भी याद आई है। लंबी-लंबी और बिना अवकाश की ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मियों के साप्‍ताहिक अवकाश शुरू किए जा रहा हैं। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा पर अमल के लिए डीजीपी सुधीर सक्सेना ने निर्देश दे दिए हैं। यहां याद दिला दूं कि एमपी पुलिस के मैदानी अमले को साप्ताहिक अवकाश देने का कार्य कमलनाथ सरकार ने किया था। फिर मार्च 2020 में बीजेपी के सत्‍ता में आने के बाद पुलिस के वीकली ऑफ बंद हो गए थे। वोट के समीकरण को देखते हुए सरकार फिर से अवकाश आरंभ कर रही है। हालांकि, चुनाव, पुलिसकर्मियों की कम संख्‍या, वीआईवी मूवमेंट जैसे कारणों के कारण यह अवकाश कितने दिन और कितने लोगों को मिल पाएगा यह सवाल ही है। 

पद और पुनर्वास के अवसर में अफसरशाही
रिटायर होने के बाद भी अफसरों का पद का मोह नहीं जाता है। यही कारण है कि अफसर रिटायर होने के पहले ही पुनर्वास की जुगड़ कर लेते हैं। जिनका पुनर्वास नहीं हो पाता है वे राजनीति की राह पकड़ लेते हैं। 2023 में हो रहे विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए कई अफसर कमर कस चुके हैं। जो वर्तमान में पद पर हैं वे इस्‍तीफा देने को तैयार हैं और जो रिटायर हो चुके हैं वे टिकट पाने के लिए हर जोड़-तोड़ कर रहे हैं। इन अफसरों को अपने के लिए बीजेपी, कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी में भी संभावनाएं नजर आ रही हैं।

राज्‍य प्रशासनिक सेवा की अधिकारी निशा बारंगे अपर कलेक्‍टर पद से इस्‍तीफा दे चुकी हैं। वे राजनीति में आने की तैयारी में हैं। एडीजीपी पद से रिटायर हुए आईपीएस पवन जैन के राजस्‍थान में अपने गृह क्षेत्र से चुनाव लड़ने की चर्चा है तो सेवानिवृत्त आईएएस डीएस राय ने अपने लिए कांग्रेस से टिकट मांगा है। इस कड़ी में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के दो अफसरों के नाम भी चर्चा में हैं।

वन सेवा के अधिकारी सीएस निनामा अगस्त 2022 में सेवानिवृत्त हो चुके हैं जबकि डीएस डोडवे 31 जुलाई को रिटायर हुए हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से  जुड़े रहे निनामा 2024 में रतलाम झाबुआ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। वे बीजेपी से टिकट मांग रहे हैं और खबर है कि बीजेपी से उन्‍हें आश्‍वासन मिल गया है। यदि ऐसा हुआ तो वे वर्तमान बीजेपी सांसद जीएस डामोर का स्‍थान लेंगे। सांसद डामोर भी अफसर रह चुके हैं। उनकी पत्‍नी सूरज डामोर आईएएस अधिकारी रही हैं।

जुलाई में रिटायर हुए डीएस डोडवे रतलाम ग्रामीण के निवासी है। वे भी बीजेपी के टिकट से आरिक्षत सैलाना सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हैं। सैलाना से अभी कांग्रेस के हर्षविजय गहलोत विधायक हैं। डीएस डोडवे को बीजेपी से टिकट पाने के लिए पूर्व विधायक संगीता चारेल की दावेदारी से निपटना होगा।