जी भाईसाहब जी: हार का भय कि अपनी घोषणाएं भूल गए सीएम शिवराज सिंह चौहान
MP Politics: मुख्यमंत्री चौहान की हड़बड़ी समझी जा सकती है। तमाम सर्वे जहां कांग्रेस की लीड बता रहे हैं वही बीजेपी में असंतोष थमने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसे में सीएम और नेतृत्व हर राजनीतिक और सामाजिक-जातीय समीकरण साधने के लिए ताबडतोड़ कदम उठा रहे हैं। और इस हड़बड़ी में की जा रही चूक भारी पड़ रही है।
2013 से होती है परशुराम जयंती पर छट्टी, दस साल बाद फिर घोषणा दोहरा गए शिवराज
क्या यह हार का डर है या ब्राह्मण समाज की नाराजगी दूर करने की हड़बड़ी कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद अपनी ही घोषणा को भूल गए? उन्होंने भोपाल में आयोजित ब्राह्मण महाकुंभ में परशुराम जयंती पर अवकाश की घोषणा तो की लेकिन वे भूल गए कि यह घोषणा वे 2013 में भी कर चुके हैं और उस घोषणा पर अमल हो चुका है।
साल 2013 में भी चुनाव के पहले का वक्त था। इंदौर की सर्व ब्राह्मण युवा परिषद ने परशुराम जयंती पर सरकारी छट्टी घोषित कराने के लिए आंदोलन चलाया था। 15 अप्रैल 2013 को जिला एवं तहसील मुख्यालय पर आपके नाम ज्ञापन दिए थे। 20 दिन बाद ही 5 मई 2013 को परिषद के प्रतिनिधि मुख्यमंत्री निवास पहुंचे थे। उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने परशुराम जयंती के दिन अवकाश की घोषणा की थी जो अब तक लागू है।
अब 2023 में भी चुनाव का वक्त है और ब्राह्मणों की एकता दिखाने के लिए भोपाल में 4 जून को ब्राह्मण महाकुंभ आयोजित किया गया। सीएम चौहान ब्राह्मण महाकुंभ में पहुंचे तो उन्होंने कई घोषणाएं की जिसमें परशुराम जयंती पर सरकारी छुट्टी की घोषणा भी शामिल है। जबकि प्रदेश में बीत एक दशक से परशुराम जयंती की छुट्टी घोषित है।
सीएम की इस चूक से ब्राह्मण राजनीति गरमा गई है। ब्राह्मण समाज का दूसरा गुट सवाल उठा रहा है कि एक परशुराम जयंती पर तो सीएम शिवराज सिंह के कहने पर ही अवकाश घोषित हुआ है, फिर अब ये कौन सी परशुराम जयंती पर छट्टी की घोषणा कर दी गई है? मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी ऐसी घोषणाओं के कारण विपक्ष और अपनी ही पार्टी में अपने विरोधियों के निशाने पर आ जाते हैं और ‘घोषणावीर’ कहे जाते हैं।
हालांकि, मुख्यमंत्री चौहान की हड़बड़ी समझी जा सकती है। तमाम सर्वे जहां कांग्रेस की लीड बता रहे हैं वही बीजेपी में असंतोष थमने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसे में सीएम और नेतृत्व हर राजनीतिक और सामाजिक-जातीय समीकरण साधने के लिए ताबडतोड़ कदम उठा रहे हैं। ऐसे में ब्राह्मण समाज को खुश करने के लिए की गई घोषणा ही उनकी नाराजगी का कारण बन गई है।
यूं भी जातीय, क्षेत्रीय और स्थानीय समीकरणों को साधने के साथ ही हिंदुत्व के मुद्दे पर दोनों पार्टियों में होड़ है। इस स्पर्धा के कारण कथा आयोजनों की ही नहीं बल्कि भागवत कथा, चुनरी यात्रा सहित धार्मिक आयोजन की संख्या में एकदम इजाफा हो गया है। प्रमुख सड़कों पर नाम जाप व कीर्तिन करते हुए, यात्रा निकालते हुए, श्रद्धालुओं के समूहों का दिखाई देना आम बात हो गई है।
नेतृत्व समेट नहीं पा रहा है बिखराव
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही नहीं समूचा बीजेपी संगठन ही इनदिनों तमाम तरह के संकटों से घिरा हुआ है। मैदान से आ रही खबरें संगठन को डरा रही हैं। कार्यकर्ताओं और हाशिए पर डाल दिए गए नेताओं के असंतोष से पार्टी में बिखराव की स्थिति है और पिछले हफ्ते की मैराथन बैठकों के बाद भी स्थिति संभाले नहीं संभल रही है।
बुंदलेखंड, विंध्य, ग्वालियर-चंबल और मालवा-निमाड़ हर क्षेत्र में बीजेपी स्थानीय नेताओं की नाराजगी झेल रही है। इस नाराजगी का कारण पार्टी द्वारा उन्हें हाशिए पर धकेल देना तथा आयातीत नेताओं को तवज्जो देना है। पूर्व मंत्री दीपक जोशी भारी मन से बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में जा चुके हैं। कई वरिष्ठ नेताओं ने ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के नेताओं को अधिक जगह देने पर बार-बार नाराजगी जताई है।
ताजा मामला बुंदेलखंड का है। यहां आठ बार के निर्वाचित विधायक लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव को साइड लाइन करने की कोशिशें की गईं। नगरीय विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह सागर क्षेत्र में कद्दावर बन कर उभरे हैं। तभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में आए गोविंद सिंह राजपूत तीसरा कोण बन गए। समय के साथ भूपेंद्र सिंह की ताकत से निपटने के लिए गोपाल भार्गव और गोविंद सिंह राजपूत एक हो गए। इन नेताओं के ध्रुवीकरण से बुंदलेखंड में बीजेपी बिखर गई। इन नेताओं को पहले समझाया गया, फिर हिदायत दी गई तब भी बात नहीं बनी तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद बैठ कर मामला सुलझाना चाहा लेकिन इस बैठक में ही नेता झगड पड़े।
हालत यह है कि जिस नेता और उसके समर्थकों को ‘विभीषण’ कहा गया था वही नेता व समर्थकों के आते ही बीजेपी में ऐसा बिखराव शुरू हुआ कि पार्टी नेतृत्व उसे समेट नहीं पा रहा है। आपसी सिर फूटव्वल, वर्चस्व का संघर्ष थम नहीं रहा है, दूसरी तरफ एंटीइंकम्बेंसी यानी ऊब फेक्टर भी काम कर रहा है। पार्टी को समझ नहीं आ रहा है कि करे तो क्या करें?
चुनाव करीब, रथ की तैयारी, सारथी का पता नहीं
विधानसभा चुनाव 2023 की उल्टी गिनती शुरू हो गई आचार संहित लगने में डेढ़ सौ दिन का समय भी नहीं है। ऐसे में जीत के सफल नुस्खे माने जाने वाले सारे तौर तरीकों को अपनाया जा रहा है। इन तरीकों में एक है जन आशीर्वाद यात्रा। पांव-पांव वाले नेता के रूप में पूरे क्षेत्र की पदयात्रा करने वाले शिवराज सिंह चौहान ने विधासनसभा चुनाव के पहले रथ यात्रा निकालना शुरू की थी। इस रथ यात्रा से उनकी लोकप्रियता बढ़ी तो हर चुनाव का यह आजमाया हुआ नुस्खा बन गया।
इस बार भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की रथयात्रा को संगठन की स्वीकृति मिल चुकी है। सीएम शिवराज सिंह चौहान एक बाा फिर जन आशीर्वाद रथ को लेकर गांव-गांव जाएंगे और लोगों से आशीर्वाद मांगेंगे। इस दौरान बीजेपी सरकार के कामकाज और योजनाओं की जानकारी दी जाएंगी। प्रस्ताव है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर 25 सितंबर को रथ यात्रा का भोपाल में समापन होगा। इस दिन भोपाल में कार्यकर्ताओं का महाकुंभ आयोजित होगा जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया जाएगा।
रथयात्रा की इन तैयारियों के साथ ही मार्गनिर्धारण भी किया जा रहा है मगर सबसे बड़ा सवाल है कि इस बार यात्रा का ‘सारथी’ कौन होगा? यानी, पूरी यात्रा का संयोजन कौन करेगा? पिछली बार वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने यात्रा की जिम्मेदारी संभाली थी। मगर 2018 में बीजेपी हार गई थी। प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते वीडी शर्मा यात्रा कार्यक्रम का एक हिस्सा होंगे लेकिन संपूर्ण यात्रा के संयोजन के लिए एक उपयुक्त नेता की तलाश जारी है।
कांग्रेस में महिलाओं को मंच उधर एक हजार मिले नहीं दस हजार का ख्वाब
चुनावी घोषणाओं का आलम यह है कि एक से बढ़ कर एक घोषणा ऐसे हो रही है जैसे दावों से ही आगे जाने की होड़ हो। बात महिला मतदाताओं प्रभावित करने की है। बीजेपी महिलाओं को अपना बड़ा वोट बैंक मानती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मामा और भाई की छवि तथा लाड़ली लक्ष्मी और लाड़ली बहना योजना के कारण बीजेपी को महिलाओं का साथ मिलता भी रहा है।
इसबार लाड़ली बहना योजना ला कर बीजेपी मान रही है कि उसने गेम चेंज कर दिया है। बीजेपी ने महिलाओं को प्रतिमाह एक हजार रुपए देने का वादा किया है। जवाब में कांग्रेस ने 15 सौ रुपए प्रतिमाह देने के वादे के साथ नारी सम्मान योजना प्रस्तुत कर दी। इतना नहीं कांग्रेस ने एक कदम आगे जाते हुए महिलाओं को मंच सौंपना शुरू कर दिया है। कई कार्यक्रम ऐसे हुए जहां मुख्य अतिथि के अलावा मंच पर केवल महिला जनप्रतिनिधि और कार्यकर्ता ही थीं।
कांग्रेस के इस छवि निर्माण को देखते हुए बीजेपी को कुछ तो करना ही था। झाबुआ पहुंचे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा कर दी कि वे लाड़ली सेना बनाएंगे। लाड़ली सेना से आर्थिक लाभ क्या? सो सीएम शिवराज सिंह ने घोषणा कर दी है कि वे लाड़ली लक्ष्मी को एक हजार नहीं दस हजार रुपए देना चाहते हैं। राजनीति जो करवाए सो कम है, अभी खाते में एक हजार रुपए आए नहीं है और दस हजार रुपए मिलने के ख्वाब दिखा दिए गए हैं।