जी भाईसाहब जी: पीएम मोदी का रोड शो, भोपाल न आते तो
MP Politics: जीत के प्रति भरपूर आश्वत सीटों पर भी प्रचार के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को क्यों आना पड़ रहा है? क्या कारण है कि पीएम मोदी को भोपाल जैसी सीट पर भी रोड शो करना पड़ रहा है? यह सवाल मध्य प्रदेश की राजनीति में बेहद गंभीरता से पूछा जा रहा है। दूसरी तरफ, कोर्ट में पेश नहीं हो रही सांसद प्रज्ञा ठाकुर का नाम एक नए विवाद से जुुड़ गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 24 अप्रैल को एक बार फिर भोपाल आ रहे हैं। बकौल मुख्यमंत्री मोहन यादव पीएम मोदी के भोपाल पहुंचते ही एक रिकार्ड बनने जा रहा है। वे सर्वाधिक बार मध्यप्रदेश आने वाले पीएम होंगे। सवाल यह उठ रहा है कि विधानसभा चुनाव में रिकार्ड तोड़ जीत के बाद भी ऐसा क्या है जिसके लिए पीएम मोदी को इतनी बार मध्य प्रदेश और भोपाल आना पड़ रहा है?
आमतौर पर राजनीतिक या सामरिक रणनीति कहती है कि जीत के लिए कमजोर मोर्चों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। मजबूत पक्ष पर ज्यादा मेहनत करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी का चेहरा बन गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार मध्य प्रदेश आ रहे हैं। मोदी की गांरटी के नाम पर बीजेपी वोट मांग रही है। नेता जीत के प्रति इतना आश्वस्त हैं कि वे जीत के अंतर को लेकर स्पर्धा कर रहे हैं। इतने आत्मविश्वास के बाद भी पार्टी को जीत के प्रति कोई शक है?
यह शक तब उजागर हुआ जब पूर्व मुख्यमंत्री और विदिशा से प्रत्याशी शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान ने कहा कि कार्यकर्ता एकतरफा जीत की उम्मीद में नहीं बैठे रहे। चुनाव एकतरफा नहीं मानने चाहिए। कांग्रेस की रीड की हड्डी अब भी कायम है। उनका अपना वोट बैंक है। उनका वोट कहीं नहीं जा रहे। कार्तिकेय की तरह संघ समर्थित अखबार मध्य स्वेदश ने भी ऐसे ही विश्लेषण प्रकाशित किए हैं।
बीजेपी में ही जारी इस विमर्श से साफ है कि पार्टी कहीं कोई चूक नहीं रखना चाहती है। इसलिए भोपाल जैसी सबसे सुरक्षित सीट पर भी प्रचार के लिए स्वयं पीएम मोदी आ रहे हैं। मुख्यमंत्री मोहन यादव का बयान भी ऐसा ही संकेत दे रहा है। जब मोदी के भोपाल आने के बारे में पूछा गया तो मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि वे वोट की अपील करने आ रहे हैं। तीसरी बार जनादेश लेना है तो जनता के बीच आना ही है। यदि वे विनम्रता से नहीं आएंगे तो लोग कहेंगे अहंकारी हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इन यात्राओं को प्रथम चरण में कम मतदान और कम मतदान का असर बीजेपी की जीत पर पड़ने के विश्लेषणों से जोड़ कर भी देखा जा रहा है। चाहे जो मामला हो, पीएम मोदी एक मोर्चा भी खाली नहीं छोड़ रहे हैं।
मौसमी है पीएम की मुस्कान
सबसे ज्यादा चुनाव जीतने वाले नेता गोपाल भार्गव इनदिनों मध्य प्रदेश बीजेपी की राजनीति पर हाशिए पर हैं। एक वक्त था जब कयास लगाए जा रहे थे कि 1 जुलाई को मप्र यात्रा के दौरान जिस तरह पीएम मोदी ने तत्कालीन मंत्री गोपाल भार्गव के साथ ठहाके लगाए हैं उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी की सरकार बनी, मुख्यमंत्री बदले भी लेकिन गोपाल भार्गव को नहीं डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया। मुख्यमंत्री तो ठीक गोपाल भार्गव् को मंत्री भी नहीं बनाया गया, न कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई।
तब से लेकर अब तक उनके समर्थक इस उम्मीद में हैं कि भार्गव के कद और अनुभव को देखते हुए पार्टी उन्हें बड़ा दायित्व देगी। लोकसभा चुनाव के पहले उम्मीद जताई गई कि भार्गव को लोकसभा चुनाव लड़वाया जाएगा। लेकिन कुछ हुआ नहीं। गोपाल भार्गव के समर्थकों के ये अरमान तब हरे हो गए जब 19 अप्रैल को दमोह की सभा में पीएम मोदी दमोह मंच पर गोपाल भार्गव से खूब बतियाते दिखाई दिए। मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव का आपस में चर्चा के दौरान ठहाके लगाने वाला वीडियो खूब वायरल हुआ।
यह दृश्य प्रधानमंत्री की एक मुस्कान को तरसने वाले नेताओं के दिल पर छुरियां चलाने के लिए काफी था जबकि गोपाल भार्गव समर्थक फूले नहीं समा रहे हैं। उम्मीद बढ़ गई है कि पीएम मोदी के साथ के इन पलों का अपना राजनीतिक महत्व जल्द सामने आएगा। जबकि भार्गव विरोधियों का कहना है कि पीएम के साथ हुई इस मुलाकात से भार्गव की राजनीतिक सेहत को कोई फायदा नहीं होगा। पीएम तो पहले भी गोपाल भार्गव से इसी आत्मीयता से मिले हैं। पीएम की यह मुस्कान मौसमी है। इसका स्थाई प्रभाव नहीं है।
भोपाल में सांसद प्रज्ञा ठाकुर मुर्दाबाद
लोकसभा चुनाव है और टिकट कटने के बाद वर्तमान सांसद प्रज्ञा ठाकुर परिदृश्य से गायब हैं। वे मालेगांव विस्फोट मामले में कोर्ट में भी उपस्थित नहीं हो रही हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भोपाल आने के दो दिन पहले अपने ही संसदीय क्षेत्र में सांसद प्रज्ञा ठाकुर के मुर्दाबाद के नारे लग गए। मामला श्मशान घाट की जमीन पर कब्जे को लेकर है।
सांसद प्रज्ञा ठाकुर के बोलने को लेकर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सार्वजनिक रूप से नाराजगी जता चुके हैं और काम ऐसा कि कोविड के दौरान उनके गायब होने पर पोस्टर लगाए गए थे। नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताने पर पीएम मोदी ने सांसद प्रज्ञा ठाकुर को कभी माफ न करने की बात कही थी। अब उनका टिकट भी काट दिया गया है। भोपाल में अपने लिए राजनीतिक जमीन बचाए रखने की कोशिश में लगी प्रज्ञा ठाकुर ने नई जेल के पास स्थित नेवरी गांव में जमीन खरीदी है। यहां वे अपना आश्रम बनाएंगी। आश्रम की जमीन के पास ही श्मशान घाट है।
गांव वालों का आरोप है कि सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने अपनी मौजूदगी मे जेसीबी से श्मशान घाट की बाउंड्री तुड़वा दी। इस पर नाराज ग्रामीण इकट्ठा हो गए तथा उन्होंने सांसद प्रज्ञा ठाकुर के मुर्दाबाद के नारे लगा दिए। ग्रामीणों द्वारा हंगामा करने के बाद ड्राइवर जेसीबी छोड़ कर भाग गया।
गौरतलब है कि सांसद प्रज्ञा ठाकुर मुंबई की एनआईए अदालत में स्वास्थ्य कारणों से पेश नहीं हो रही है। कोर्ट ने अब उन्हें छूट देने से इंकार करते हुए 25 अप्रैल को पेश होने के आदेश दिए हैं। भोपाल में आश्रम बनवा रही प्रज्ञा ठाकुर यदि 25 अप्रैल को पेश नहीं होगी तो कोर्ट सख्त निर्णय ले लेगी।
घर लौट जाने की चिंता
लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में छिंदवाड़ा सर्वाधिक चर्चित सीट रही है। कांग्रेस के कब्जे वाली इस सीट पर कमलनाथ के सांसद पुत्र नकुल नाथ मैदान में हैं जबकि बीजेपी इस सीट को जीतने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस का मनोबल तोड़ने के लिए बड़ी संख्या में कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का दलबदल करवाया गया है। छिंदवाड़ा में भी पूर्व विधायक दीपक सक्सेना सहित कांग्रेस के कई नेता बीजेपी में गए हैं लेकिन मतदान के ठीक पहले महापौर ने राजनीतिक बाजी पलट दी।
कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में गए छिंदवाड़ा महापौर विक्रम अहाके 20 दिन बाद ही वापस कांग्रेस में लौट आए। उन्होंने वीडियो जारी कर नकुलनाथ के पक्ष में वोट करने की अपील की है। विक्रम अहाके के इस कदम से बीजेपी सतर्क हो गई है। अब तक हर तरह के कांग्रेस नेता और कार्यकर्ताओं को पार्टी में शामिल करवाया जाता रहा है। हालांकि, कई बीजेपी नेताओं ने इस पर सवाल उठाए हैं लेकिन संख्या दिखाने के लिए सारे विरोध को अनसुना कर दिया गया।
महापौर विक्रम अहाके के कांग्रेस में लौट जाने के बाद अब आशंका है कि इस तरह कई नेताओं का मन पलट सकता है। यानी उनकी वापसी की राह खुली है। इस संभावना को देखते हुए बीजेपी में भी नई आमद पर पर्याप्त विचार और छानबीन करने की मांग उठ रही है।