जी भाईसाहब जी: क्यों पैदल निकल पड़े शिवराज, क्यों कहना पड़ा, टाइगर जिंदा है

MP Politics: मुख्‍यमंत्री रहते हुए रथ यात्रा करने वाले शिवराज सिंह चौहान करीब 25 वर्षों बाद फिर से पैदल यात्रा कर रहे हैं। कहने को यह विकसित भारत संकल्‍प यात्रा है मगर इसके उद्देश्‍यों की राजनीतिक पड़ताल जारी है। इसका उद्देश्‍य अपना कद बनाए रखना और जमीन मजबूत करने जितना ही नहीं है।

Updated: May 27, 2025, 03:03 PM IST

पग-पग वाले भैया नाम से मशहूर और अब देश के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान फिर से मैदान में निकल पड़े हैं। मुख्‍यमंत्री रहते हुए रथ यात्रा करने वाले शिवराज सिंह चौहान करीब 25 वर्षों बाद फिर से पैदल यात्रा कर रहे हैं। उनकी घोषणा है कि वे पहले अपने क्षेत्र में फिर अन्‍य क्षेत्रों में पदयात्रा करेंगे और जनता से संवाद करेंगे। उन्‍होंने अपनी यात्रा का नाम ‘विकसित भारत संकल्‍प यात्रा’ रखा है। 

अपनी पद यात्रा का उद्देश्य पूछे जाने पर उन्होंने मीडिया से कहा है कि पीएम मोदी का संकल्प विकसित भारत है और वह संकल्प हमारे लिए मंत्र है। विकसित भारत के लिए जनता को जगाना और गांव को विकसित करना हमारी पहली प्राथमिकता है। अकेले सरकार नहीं, समाज भी इसमें शामिल होगी, तभी इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। ऐसे में जनता को जगाने के लिए जनता को संबोधित करते हुए विकसित भारत के अभियान के लिए खुद को समर्पित कर रहा हूं।

पदयात्रा में उनका परिवार यानी पत्‍नी साधना सिंह, बेटा कार्तिकेय सिंह और बहू अमानत भी शामिल हैं। इस पर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि यहां कोई परिवार नहीं है। सभी एक परिवार है। सबका लक्ष्य है विकसित भारत। ऐसे में सिर्फ बहू बेटे नहीं जो इस अभियान में शामिल हो रहे हैं और इस पद यात्रा में मेरे साथ चल रहे हैं, वह सब मेरे परिवार हैं।

यह तो आदर्श बात हुई लेकिन इस यात्रा के नैपथ्‍य में छिपे राजनीति अर्थ भी  तलाशे जा रहे हैं। खासकर तब जब विधानसभा उपचुनाव में शिवराज सिंह चौहान द्वारा की खाली की गई सीट पर कार्तिकेय सिंह को पिता का उत्‍तराधिकारी मान कर टिकट का दावेदार माना जा रहा था। जिला भाजपा ने तो पैनल में पहला नाम कार्तिकेय सिंह का ही भेजा था। लेकिन शीर्ष नेतृत्‍व में शिवराज सिंह चौहान के बेटे नहीं समर्थक को टिकट दिया। बुधनी क्षेत्र में शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक विरासत को बेटा कार्तिकेय ही संभाल रहा है। शादी के बाद उनकी बहू अमानत ने भी जनता के बीच पहुंच कर जनसेवा की अपनी इच्‍छा को व्‍यक्‍त किया था।  

दूसरा पक्ष यह है कि शिवराज सिंह चौहान बतौर कृषि मंत्री देश में सक्रिय जरूर हैं लेकिन वे मध्‍य प्रदेश में अपने दखल को कम नहीं होने देना चाहेंगे। दखल की इस ताकत के बनाए रखने के लिए ऐसी यात्राएं बेहतर साधन साबित होती हैं। इन यात्राओं के सहारे जनता से संबंध पुनर्जीवित हो जाते हैं और यह एक दबाव समूह के रूप में ही कार्य करता है। 

यही कारण है कि विकसित भारत संकल्प पदयात्रा शुरू करते समय शिवराज पने मंच से कहा कि 'टाइगर अभी जिंदा है' तो खूब तालियां बजी। जाहिर है, यह एक फिल्‍मी डायलॉग भर नहीं है। बल्कि यह एक राजनीतिक उद्घोष की तरह है कि प्रतिस्‍पर्धी जान लें, मध्‍य प्रदेश में शिवराज का दखल कुछ कम हो सकता है लेकिन उनकी धमक कायम है। 

बीजेपी का दर्शन, पद छोड़ी, करो काम का प्रदर्शन

मध्‍य प्रदेश सरकार और बीजेपी संगठन में यूं तो सारे काम हो रहे हैं लेकिन नेताओं के मन के काम ही नहीं हो रहे हैं। सत्‍ता और संगठन में कई निर्णय अटके हुए हैं। कैबिनेट विस्‍तार, निगम-मंडलों में नियुक्तियों कर इंतजार करते करते नेताओं की आंखें थकने लगी हैं। पद, रूतबा, अधिकार नहीं मिलने से बड़े बड़े नेता भी मायूस हैं। प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा भी लंबित है। ऐसे में नेताओं को छोड़ पार्टी ने कार्यकर्ताओं पर फोकस कर दिया है।

बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल और प्रदेश भाजपा प्रभारी डॉ. महेंद्र सिंह सहित प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा विभिन्‍न जिलों के पहुंच रहे हैं। सभी जिलों में देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300 वीं जयंती के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है। संगठन के अन्य कार्यक्रम भी चल रहे हैं। इन बैठकों में बेहतर प्रदर्शन के लिए कार्यकर्ताओं को टिप्स दिए जा रहे हैं। इन बैठकों में कोर कमेटी के साथ संगठन के कामकाज पर विचार-विमर्श भी हो रहा है ताकि संगठन को मैदानी स्थिति पता चल सके। संगठन इस तरह कार्यकर्ताओं को सक्रिय रख कर बड़े नेताओं की बेचैनी, नाराजगी का असर न्‍यूनतम कर रहा है।

सिंदूर की गंगा में अपना भी किनारा... 

राजनीति में बहती गंगा में स्‍नान कर लेना पुराना ढंग है। ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भी हो रहा है। आंतक और पाकिस्तान के खिलाफ हुए ऑपरेशन सिंदूर की गूंज पूरे देश में है। सेना के इस ऑपरेशन की हर तरफ तारीफ हो रही है। इस सफलता के मद्देनजर जहां बीजेपी 31 मई को प्रधानमंत्री की यात्रा को विशिष्ट बनाने की तैयारी कर रही है तो नेता भी अपनी तरह से सुझाव दे कर अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत कर रहे है। 

इसी क्रम में पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर को पाठ्यक्रम में शामिल करने की जरूरत बताई है। पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव एवं प्रदेश के शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह को पत्र लिख कर कहा है कि भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाकर दुश्मन देश के आतंकी ठिकानों को नष्ट किया है। इस शौर्यगाथा को मध्य प्रदेश के शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। 

दिल्‍ली सरकार में भी ऑपरेशन सिंदूर को पाठ्यक्रम में शामिल करने की कवायद शुरू हो चुकी है जबकि केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी ऐसी मांगों के संदर्भ में सकारात्‍मक संकेत दिए हैं। कुलमिलाकर कर देश में जारी इस मुहिम में लीड लेते हुए पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने मौके पर चौका मार दिया है। 

31 मई को ऊंचा होगा मध्‍यप्रदेश का राजनीतिक पारा 

रविवार 31 मई को मध्‍यप्रदेश का राजनीतिक पारा बहुत ऊंचाई पर जाने वाना है। इस दिन भोपाल में आयोजित महिला सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आ रहे हैं तो जबलपुर में कांग्रेस की जय हिंद सभा हो रही है। इस रैली में लोकसभा नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के आने की संभावना थी लेकिन अब प्रियंका गांधी के आना लगभग तय हो गया है। यह सभा कांग्रेस के लिए महाकौशल में सक्रियता बढ़ाने का बूस्‍टर साबित हो सकती है।

इन दोनों कार्यक्रमों का अपना महत्‍व है। बीजेपी ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद देश में तिरंगा यात्राओं का आयोजन किया है। अब पूरे देश में जय हिंद सभा का आयोजन करने जा रही है। इस आयोजन की शुरूआत 31 मई को जबलपुर से होने वाली है। 

भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां महिला सम्‍मेलन को संबोधित करेंगे तो कांग्रेस ने ऐतिहासिक संदर्भों को ध्‍यान में जय हिंद सभा की शुरुआत जबलपुर से करने का निर्णय लिया है। आजादी के पहले 1939 में जबलपुर के त्रिपुरी में कांग्रेस का महाधिवेशन आयोजित हुआ था। इस त्रिपुरी महाधिवेशन ने सुभाष चंद्र बोस अध्‍यक्ष चुने गए थे। बाद में यह अधिवेशन कांग्रेस में वैचारिक भेद के कारण जाना गया। 

मध्‍य प्रदेश की राजनीति में जबलपुर क्षेत्र वाले महाकौशल का अपना महत्‍व है। ऐसे में जय हिंद सभा पहलगाम आतंकी हमले और अप्रत्याशित सीजफायर के मुद्दे पर कांग्रेस के लिए अपने तर्क रखने का मौका होगी तो क्षेत्र की राजनीति में अपने पैर जमाने की कवायद भी। भोपाल और जबलपुर से मिले संदेश प्रदेश ही नहीं पूरे देश में राजनीतिक चेतना का संचार करेंगे।