दफ्तर दरबारी: आईएएस के खिलाफ पहली बार निंदा प्रस्ताव और लूप लाइन कनेक्शन
MP Politics: आईएएस निधि सिंह एक बार फिर खबरों में हैं। पहले नगर निगम भोपाल में बीजेपी और कांग्रेस दोनों की दलों के पार्षदों ने मिल कर उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास किया और अब सरकार ने उन्हें लूप लाइन में भेज दिया। निंदा और सजा की यह कड़ी ‘बस’ से जा कर जुड़ती है।
                                    अपनी पहली पोस्टिंग में नए नवेले आईएएस सख्त छवि बनाने की कोशिश करते हैं। यही काम एसडीएम रहते हुए 2019 बैच की आईएएस निधि सिंह ने भी किया था। वे बड़नगर में एसडीएम थीं और पानी भराव को हटवाने पहुंची थी तब बीजेपी के पूर्व विधायक शांतिलाल धबाई से उनका विवाद हो गया था। उस विवाद का वीडियो वायरल हुआ था। निधि सिंह अब फिर चर्चा में हैं क्योंकि वह पहली आईएएस हैं जिनके खिलाफ भोपाल नगर निगम के सभी पार्षदों ने निंदा प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव के पारित होने के कुछ दिनों बाद उन्हें हटा कर लूप लाइन माने जाने वाले भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त कार्यालय में ग्वालियर भेज दिया गया है।
तेज तर्रार छवि की अफसर निधि सिंह को एक साल पहले ही भोपाल निगम निगम में अपर आयुक्त बनाया गया था। उनकी कार्यप्रणाली ऐसी थी कि धुर विरोधी बीजेपी और कांग्रेस के पार्षदों ने भी हाथ मिला और मिल कर उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास कर दिया। इस प्रस्ताव के बाद सरकार ने निधि का तबादला कर दिया। आईएएस निधि सिंह पर आरोप थे कि वे जन प्रतिनिधियों की सुनती नहीं हैं और उनके फोन भी नहीं उठाती हैं।
नगर निगम में कई अधिकार-कर्मचारी हैं जो फोन नहीं उठाते हैं। इन अफसरों और कर्मचारियों से जनता ही नहीं पार्षछ भी परेशान हैं। जनप्रतिनिधियों ने गाहे-बगाहे अपनी नाराजगी व्यक्त भी की है लेकिन इन सबके पहले ऐसा क्या हुआ कि आईएएस निधि सिंह के खिलाफ सारे पार्षद एकजुट हो गए और निंदा प्रस्ताव ही पारित हो गया। पहले निंदा प्रस्ताव और अब तबादला। इस शृंखला की पड़ताल करते हैं तो दिलचस्प कथा मालूम होती है। चर्चाएं हैं कि एक सार्वजनिक बयान निधि सिंह पर भारी पड़ा।
असल में अपर आयुक्त निधि सिंह के पास भोपाल में लोक परिवहन के संचालन का काम करने वाली नगर निगम की होल्डिंग कंपनी बीसीएलएल की सीईओ की जिम्मेदारी भी थी। इस कंपनी के डायरेक्टर बीजेपी पार्षद और एमआईसी सदस्य मनोज राठौर हैं। शहर में बसों की दुदर्शा पर निधि सिंह ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि कुछ जनप्रतिनिधियों के कारण वो खुलकर काम नहीं कर पा रही हैं। माना गया कि उनका इशारा एमआईसी सदस्य मनोज राठौर की ओर हैं। इस बयान से खफा पार्षद मनोज राठौर ने निधि सिंह के खिलाफ निंदा प्रस्ताव की कथा बुनी और पिछले माह हुई परिषद बैठक में पार्षदों ने हंगामा कर दिया। पार्षदों को तवज्जों नहीं देने और जनहित के कार्यों के लिए फोन नहीं उठाने के आरोप में निंदा प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। इस प्रस्ताव को उनके सर्विस रिकार्ड में दर्ज करने के लिए सरकार को भेज दिया गया था।
इस निंदा प्रस्ताव के बाद सरकार ने आईएएस निधि सिंह को हटा दिया। यह भी सही है कि कई अफसर-कर्मचारी फोन नहीं उठाते मगर वे बचे हुए हैं क्योंकि सार्वजनिक रूप से सिस्टम की पोल भी नहीं खोलते हैं।
अपेक्स बैंक में नौकरी की सहकारिता
राजनीतिक मामलों के कारण सहकारिता समितियों पर वर्चस्व का संघर्ष चलता है। इस संघर्ष के कारण सहकारिता आंदोलन के कमजोर होने के आरोप भी लगते रहे हैं। सहकारिता को मैदान में उतारने के लक्ष्य के साथ गठित अपेक्स बैंक इस बार नौकरियों में अपने लोगों के साथ सहकार के लिए विवादों से घिर गई है।
विपक्ष ने अपेक्स बैंक भर्ती में गड़बड़ी को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने खेल मंत्री विश्वास सारंग ओएसडी के रिश्तेदार तथा बैंक के अन्य अफसरों के करीबियों को नौकरी देने के लिए नियमों की अनदेखी के आरोप लगाए हैं। उमंग सिंघार ने कहा है कि बिना अंकों के सीधे इंटरव्यू से मेरिट लिस्ट जारी करना बीजेपी के भ्रष्टाचार की नई मिसाल है। रिश्तेदारों का चयन कर बाकी योग्य युवाओँ के सपनों का गला घोंटा गया है। ये कैसा ‘युवा कल्याण’ है? मौन यादव जी, क्या यही ‘बीजेपी का पारदर्शी मॉडल’ है?
इसके उत्तर में मंत्री विश्वास सारंग सामने आए और इस आरोप का खंडन किया कि विपक्ष जिस अफसर के रिश्तेदार को नौकरी का लाभ देने की बात कर रहा है, वह अफसर उनका ओएसडी है ही नहीं। उधर बैंक के आला अधिकारियों ने भी नियम प्रक्रिया के पूरी तरह पालन होने की बात कही है। जबकि विपक्ष का कहना है किइंटरव्यू में एक पद के लिए तीन गुना अभ्यर्थी बुलाने का प्रावधान है। इंटरव्यू में उतने ही अभ्यर्थी बुलवाए गए जितने पद थे। यानी नाम पहले से तय कर लिए गए थे। लिखित परीक्षा का पूरा रिजल्ट कर मेरिट तय की जानी चाहिए लेकिन इंटरव्यू के बरना ही मेरिट लिस्ट बनाई गई। विपक्ष हमलावर है और मंत्री ने शिकायत के दायरे में आए अफसर से पल्ला झाड़ लिया है। अपेक्स बैंक के कर्ताधर्ता भर्ती में अपनों को नौकरी देने के आरोपों के सामने कितना टिक पाएंगे, यह राजनीतिक इच्छाशक्ति पर ही निर्भर है।
मंत्री का बयान, महिला का अपमान, छुट्टी तक विरोध
राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा अपने बयान के कारण फिर चर्चा में रहे। सीहोर के महोडिया गांव में सरकारी कामों के लोकार्पण समारोह में पहुंचे राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा ने कहा कि किसानों का काम समय पर होना चाहिए जब सरकार तुम्हें पैसा देती है तो किसानों से पैसा मांगने का कोई अधिकार नहीं। आष्टा तहसील की तहसीलदार रिश्वत मांग रही थी। अभी हटाया है अब उसे जिले से भगा देंगे।
इस बयान से तहसीलदार और नायब तहसीलदार संघ नाराज हो गया। संघ ने कहा कि राजस्व मंत्री ने सार्वजनिक मंच से एक महिला तहसीलदार का अपमान किया है। राजस्व अधिकारी जनता के काम पूरी निष्ठा से करते हैं। उनके लिए इस तरह की अपमानजनक टिप्पणियां स्वीकार्य नहीं हैं। मंत्री को अपनी टिप्पणी वापस लेनी चाहिए औश्र माफी मांगनी चाहिए। इस मांग के साथ तहसीलदार और नायब तहसीलदार तीन दिन के विरोध अवकाश पर चले गए। संगठन ने प्रदेश में अलग-अलग जगह कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपे। उनकी मांग का समर्थन पटवारियों ने समर्थन किया।
अपने साथी के अपमान पर प्रदेश के तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों ने तीन दिन काम बंद कर दिया। मगर उनके विरोध का सरकार पर तो कोई असर नहीं हुआ। मंत्रीजी ने न तो माफी मांगी, न ही खेद जताया। तीन दिन की छुट्टियां मना कर तहसीलदार और नायब तहसीलदार काम पर लौट आए। बयान और उससे उपजी राजस्व अधिकारियों की नाराजगी के इस प्रकरण में किसी को कुछ हासिल हुआ या नहीं, जनता जरूर परेशान हुई।
जांच करने पहुंचे थे एसडीएम, मुसीबत गले पड़ गई
कभी कभी अपना दायरा भूल कर अफसर अपने काम से खुद के लिए संकट पैदा कर लेते हैं। सागर जिले के एसडीएम देवेंद्र प्रताप सिंह के साथ यही हुआ।
प्रदेश के सागर जिले में एक सरकारी कॉलेज के प्रिंसिपल ने राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं SDM देवेंद्र प्रताप सिंह के नोटिस का ऐसा जवाब दिया कि, श्री देवेंद्र प्रताप सिंह की कुर्सी हिल गई। कुछ दिनों पहले उन्होंने कॉलेज के 35 कर्मचारियों से जवाब मांगा था। आज उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि उन्होंने नोटिस जारी क्यों किए।
बीना के अनुविभागीय अधिकारी व जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष देवेंद्र प्रताप सिंह शासकीय पीजी कॉलेज का निरीक्षण करने पहुंच गए थे। इस दौरान प्रोफेसर्स सहित अन्य कर्मचारी अनुपस्थित था। निरीक्षण के दौरान एसडीएम ने अनुपस्थित 35 लोगों की एबसेंट लगा कर उन्हें नोटिस जारी कर जवाब तलब कर लिया था। उन्होंने एक अलमारी का ताला भी तुड़वा दिया था। इस जांच के दौरान उनकी प्राचार्य से नोंकझोंक भी हो गई थी।
इस निरीक्षण के बाद नोटिस के बाद व्यक्तिगत जवाब देने की जगह सभी कर्मचारियों ने कॉलेज प्रिंसिपल के माध्यम से सामूहिक जवाब भेज दिया। इसमें कहा गया कि हम सभी उच्च शिक्षा की शैक्षणिक संस्था में राजपत्रित प्रथम और द्वितीय श्रेणी पद पर हैं। आपको कॉलेज में निरीक्षण का अधिकार नहीं है। सनातन धर्म में गुरु और मातृशक्ति का उल्लेख करते हुए लिखा गया है कि हम सभी को प्राचीन वेद ग्रंथों, सहित्य, भारतीय सनातन परंपरा एवं संस्कृति में गुरु पद से प्रतिष्ठित किया गया है। गुरु सम्मान में सनातनी विचारधारा और भारतीय ज्ञान परंपरा को ध्यान में रखते हुए गुरु पूर्णिमा और शिक्षक दिवस को सम्मानपूर्वक मनाते हैं। आपने गुरु तथा मातृशक्ति का अपमान किया है। हम सभी अपके व्यवहार से बहुत आहत हैं और हम सभी का आग्रह है कि हमें न्यायालय जाने के लिए बाध्य न किया जाए।
इस उत्तर को देख एसडीएम साहब संकट में पड़ गए। उन्हें बताया गया कि अधिकार के बिना ही जांच कर आए हैं। इस पर न्यायालय में जाने का संकट भी था। मध्यस्थ सक्रिए हुए और मामले को रफादफा करवाने में साहब की मदद की।




                            
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
                                    
                                
                                    
                                    
                                    
								
								
								
								
								
								
								
								
								