World Population Day 2020: कौन करेगा आधी आबादी की चिंता

एक सर्वे के अनुसार लॉकडाउन में मध्यप्रदेश के 50 प्रतिशत बच्चे और 75 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में पोषण की कमी

Publish: Jul 12, 2020, 06:31 AM IST

courtesy :care india
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जनसंख्या दिवस इंसान को मिली एक नायाब जिन्दगी की खुशियां मनाने का दिन है और साथ ही इस जिन्दगी की चुनौतियों को समझने का दिन भी है। इस साल जनसंख्या दिवस पर दो तरह के तथ्य सामने आए है। एक तो यह कि दुनिया 2030 तक 850 करोड़ की आबादी को छू लेगी। लेकिन दूसरा तथ्य तकलीफदेह है, जिसमें बताया गया है कि महिलाएं और बच्चियां आज भी उपेक्षाओं और चुनौतियों में जीने को मजबूर हैं। साल 2020 में जनसंख्या दिवस पर यूनाइटेड नेशन ने भी महिलाओं के जीवन सुरक्षा को ही इस साल का सबसे बड़ा मुद्दा माना है।

कोरोनाकाल में महिलाओं का जीवन सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ मध्य प्रदेश में महिलाओं के संस्थागत प्रसव में पचास फीसदी की कमी आयी है। भोपाल में एक गैर सरकारी संस्था विकास संवाद ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 50 फीसदी बच्चे और 75 फीसदी तक गर्भवती महिलाएं जरूरी पोषण से दूर हो गई हैं। कोविड-19 त्रासदी की वजह से स्वास्थ्यकर्मी दूसरे कामों में व्यस्त हैं जिसकी वजह से टीकाकरण संबंधी काम भी प्रभावित हुआ है। जबकि मध्यप्रदेश सरकार का दावा है कि प्रदेश में 6 वर्ष तक के 32 लाख बच्चों, 3 से 6 वर्ष के साढ़े 35 लाख बच्चों और 14,01,990 गर्भवती महिलाओं को रेडी टू ईट और पूरक आहार 15-15 दिन  के अंतराल में उपलब्ध कराया जा रहा है।

 ये भी देखने को मिला है कि माताएं कोरोना वायरस के संक्रमण के डर से बच्चों को टीके लगाने अस्पताल ही नहीं पहुंच पा रही हैं। जिसकी वजह से बच्चों में बीमारी का खतरा बढ़ गया है। चेचक, कोलरा, डिप्थीरिया जैसी बीमारियां, जिन पर लगभग काबू पा लिया जा चुका था, उनके फैलने की आशंका बढ़ गई है। एक अनुमान के मुताबिक लॉकडाउन की वजह से दक्षिण एशिया के साढ़े तीन करोड़ बच्चे टीकाकरण से वंचित हुए हैं। माना जा रहा है कि टीकाकरण न होने से आने वाले दिनों में रोजाना छह हजार बच्चे दम तोड़ सकते हैं।

मध्य प्रदेश में लॉकडाउन के दौरान बच्चों को जरूरत से आधा पोषण ही मिल पाया। जबकि गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को आधे से भी कम पोषण मिला। जमीन पर काम करनेवाली एक सामाजिक संस्था ‘विकास संवाद’ ने प्रदेश के छह जिलों में 45 दिनों तक पोषण आहार का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट तैयार की है। जिसमें कहा गया है कि बच्चों में जरूरत के हिसाब से 693 कैलोरी यानी 51 फीसद पोषण की कमी दर्ज की गई। वहीं गर्भवती महिलाओं में रोजाना 67 फीसदी और स्तनपान कराने वाली माताओं में 2334 कैलोरी यानी 68 फीसद पोषण की कमी आई है। आंगनवाड़ी केन्द्रों के जरिए 3 से 6 वर्ष की उम्र के बच्चों को बंटनेवाला ‘रेडी टू ईट फूड’ भी लॉकडाउन के दौरान कम हो गया है। 

विकास संवाद की रिपोर्ट के मुताबिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली का फायदा 52 प्रतिशत परिवारों को नहीं मिला है। 18 फीसदी परिवार इस योजना से आंशिक तौर पर लाभान्वित हुए हैं। और 30 फीसदी परिवार सस्ते राशन की योजना से पूरी तरह वंचित रह गए हैं। करीब 9 फीसदी परिवार बीपीएल कार्ड होने के बाद भी राशन से वंचित रहे। यही नहीं, ५ सदस्यों वाले परिवार को भी सिर्फ २५ किलोग्राम राशन ही मिला है।

एक अहम बात और, पांच मेम्बर वाले परिवार को हर महीने औसत 65 किलोग्राम राशन की जरूरत होती है, लेकिन उन्हें इस दरमियान सिर्फ 25 किलोग्राम राशन ही मिला है। भोजन का अधिकार कानून में आठवीं कक्षा तक के बच्चों को स्कूल में मुफ्त भोजन मिलने का प्रावधान है। लेकिन विकास संवाद का सर्वे कहता है कि प्राथमिक स्कूल के 58 फीसदी बच्चों को ना तो ‘मिड डे मील’ और ना ही इसकी जगह भोजन भत्ता मिला है। कुलमिलाकर 60 फीसद बच्चों को जरूरी आहार नहीं मिल पा रहा है।

11 जुलाई 1989 को मना पहला विश्व जनसंख्या दिवस

सन 1989 में, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की संचालक परिषद ने 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाने की शुरुआत की थी। तब तक विश्व जनसंख्या 5 अरब से ज्यादा हो चुकी थी। बढ़ती जनसंख्या के कारण वैश्व‍िक हितों को ध्यान में रखते हुए यह दिन मनाने का फैसला लिया गया। विश्व जनसंख्या दिवस पर जागरुकता फैलाने के लिए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किए जाते हैं। विश्व जनसंख्या दिवस का मुख्य उद्देश्य बढ़ती जनसंख्या के प्रति दुनिया को सचेत करना है।