मंदी की चपेट में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, ऊंची ब्याज दर और महंगाई ने जर्मनी को मंदी में धकेला

यूरोप की अर्थव्यवस्था का इंजन कहे जाने वाला जर्मनी वित्तीय वर्ष 2023-24 की शुरुआत में ही आर्थिक मंदी में घिर गया है। यहां पिछली तिमाही की तुलना में सरकारी खर्चे में 4.9 फीसदी की गिरावट आई है।

Updated: May 25, 2023, 06:25 PM IST

बर्लिन। यूरोप के कई देश गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। इसी फेहरिस्त में अब एक नाम जर्मनी का भी जुड़ गया है। यूरोप की सबसे बड़ी और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी की दहलीज पर मंदी ने दस्तक दे दी है। जर्मनी की संघीय सांख्यिकी एजेंसी डेस्टाटिस ने गुरुवार को यह जानकारी दी है।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक ऊंची ब्याज दर और महंगाई के कारण जर्मनी जैसी दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी की चपेट में आ गई है। दिसंबर 2022 तिमाही में 0.50 फीसदी की गिरावट के बाद मार्च 2023 तिमाही में जर्मनी की जीडीपी 0.30 फीसदी सिकुड़ चुकी है। इस तरह आधिकारिक तौर पर आर्थिक मंदी का आगाज आ हो चुका है। जर्मनी में लोग भोजन, कपड़े और फर्नीचर पर खर्च करने को तैयार नहीं हैं। सरकारी खर्च में भी पिछली तिमाही की तुलना में 4.9 फीसदी की गिरावट आई है।

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यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी के मंदी में होने की पुष्टि के कारण यूरो गुरुवार को तेजी से गिर गया, जबकि प्रतिद्वंदी डॉलर दो महीने के शिखर पर पहुंच गया। यूरोपियन देशों में बिगड़ते आर्थिक हालातों के चलते डॉलर की तुलना में यूरो कई महीनों के निचले स्तर पर जा रहा है और डॉलर उतना ही मजबूत हो रहा है।

जर्मनी के बाद अब भारत जैसे विकासशील देशों में भी मंदी की आशंका गहराती जा रही है। दरअसल, भारत में भी रेपो रेट यानी ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी की जा रही है। आरबीआई का कहना है कि महंगाई पर काबू पाने के लिए रेपो रेट में बढ़ोतरी की जा रही है। बावजूद महंगाई में कोई कमी नहीं दर्ज की गई है। यहां तक की खुदरा महंगाई दर भी शीर्ष पर है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक यदि ऐसा ही रहा तो जर्मनी की तरह भारत भी मंदी के चपेट में आ सकता है।

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अगर किसी देश के GDP में लगातार छह महीने यानी 2 तिमाही तक गिरावट आती है, तो इस दौर को अर्थशास्त्र में आर्थिक मंदी कहा जाता है। वहीं अगर जीडीपी की ग्रोथ रेट में लगातार कमी आए तो इसे इकोनॉमिक स्लोडाउन यानी आर्थिक सुस्ती कहा जाता है। वहीं, अगर 2 तिमाही के दौरान किसी देश की जीडीपी में 10 फीसदी से अधिक की गिरावट आती है, तो उसे डिप्रेशन यानी महामंदी कहा जाता है।

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद दुनिया ने अब तक की सबसे भयंकर मंदी का सामना किया था, जिसे महामंदी के नाम से जाना जाता है। भारत ने अभी तक 2 बार मंदी का सामना किया है। पहली बार 1991 में मंदी आई थी, जब विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो गया था। उसके बाद 2008 में अमेरिकी संकट के चलते मंदी के असर से दो-चार होना पड़ा था। हालांकि, तब मनमोहन सिंह जैसे कुशल अर्थशास्त्री के नेतृत्व में देश जल्द ही मंदी से उबर गया था।