भोपाल गैस त्रासदी: मुआवजे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फिर लगाई केंद्र सरकार को फटकार

सर्वोच्च अदालत ने पूछा कि पुनर्विचार याचिका दाखिल किए बिना क्यूरेटिव को कैसे सुना जा सकता है। इसमें कैसे नए दस्तावेजों को दाखिल करने की अनुमति दी जा सकती है।

Updated: Jan 11, 2023, 10:54 AM IST

नई दिल्ली। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़‍ितों को मुआवजे में देरी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को लगातार दूसरे दिन फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि किसी को भी त्रासदी की भयावहता पर संदेह नहीं है। फिर भी जहां मुआवजे का भुगतान किया गया है, वहां कुछ सवालिया निशान हैं। जब इस बात का आंकलन किया गया कि आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार था। बेशक, लोगों ने कष्ट झेला है, भावुक होना आसान है लेकिन हमें इससे बचना है।

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि कल भी हमने पूछा था कि जब केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की है, तो क्यूरेटिव याचिका कैसे दाखिल कर सकते हैं। शायद इसे तकनीकी रूप से न देखें, लेकिन हर विवाद का किसी न किसी बिंदु पर समापन होना चाहिए। 19 साल पहले समझौता हुआ था, फिर पुनर्विचार का फैसला आया। सरकार द्वारा कोई  पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं हुई, 19 साल बाद क्यूरेटिव दाखिल की गई। 34 साल बाद हम क्यूरेटिव क्षेत्राधिकार का प्रयोग करें?

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि हमें लगता है कि सरकार जो डेटा हमारे सामने रखती है, उसके तहत भुगतान अधिक होना चाहिए था। दरअसल अटार्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा कि मैं इस त्रासदी की भयावहता के बारे में सोच रहा था, जो अभूतपूर्व थी। मानवीय त्रासदी के मामलों में कुछ पारंपरिक सिद्धांतों से परे जाना बहुत महत्वपूर्ण है।

इससे पहले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि मुआवजे के लिए 50 करोड़ का फंड जस का तस पड़ा है। इसका यह मतलब है कि पीड़ितों को मुआवजा नहीं दिया जा रहा है। क्या इसके लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है? 

केंद्र सरकार की ओर से AG ने कहा था कि वेलफेयर कमिश्नर सुप्रीम कोर्ट की योजना के अनुसार काम कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने जवाब पर असंतुष्टि जाहिर करते हुए कहा था कि फिर पैसा क्यों नहीं बांटा गया? SC ने केंद्र से पूछा था कि वह अतिरिक्त मुआवजा (8 हजार करोड़ रुपये) कैसे मांग सकता है, जब यूनियन कार्बाइड पहले ही 470 मिलियन डॉलर का भुगतान कर चुका है। SC ने 50 करोड़ रुपये की बकाया मुआवजा राशि पर भी चिंता जताई।