महज 15 साल की उम्र में ग्रेजुएशन पूरा करेंगी इंदौर की तनिष्का सुजीत, पीएम मोदी को बताया अपना लक्ष्य

तनिष्का महज 11 साल की उम्र में 10वीं और 13 साल की उम्र में 12वीं की परीक्षा पास कर ली थी। वह 10 साल में ही 10वीं कर लेती परमिशन मिलने में एक साल लग गए। इसकी वजह से देर हुई है।

Updated: Apr 11, 2023, 08:22 PM IST

इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर की 15 वर्षीय छात्रा तनिष्का सुजीत इन दिनों सुर्खियों में है। महज 12 साल की उम्र में 12वीं पास कर कीर्तिमान रचने वाली इंदौर की तनिष्का सुजीत 15 साल की उम्र में ग्रेजुएशन कंप्लीट कर इतिहास रचने जा रही हैं। हाल ही में उन्होंने पीएम मोदी से मुलाकात की थी और उन्हें भविष्य का अपना लक्ष्य बताया था।

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तनिष्का की मुलाकात भोपाल में हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब एक अप्रैल को भोपाल में कमांडर्स कॉन्फ्रेंस के लिए आए हुए थे। यहां इंदौर सांसद शंकर लालवानी तनिष्का को पीएम मोदी के पास लेकर गए थे। तनिष्का के मुताबिक इस दौरान पीएम मोदी ने उससे पूछा कि वह भविष्य में क्या बनना चाहती हैं। इस पर तनिष्का ने जवाब दिया कि वह मुख्य न्यायाधीश बनना चाहती हैं।

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प्रधानमंत्री मोदी ने तनिष्का का हौसला बढ़ाते हुए उन्हें सुप्रीम कोर्ट विजिट करने का भी सुझाव दिया। बकौल तनिष्का पीएन ने उससे यह भी पूछा कि वह उच्च शिक्षा के लिए विदेश क्यों जाना चाहती हैं? इस पर तनिष्का ने जवाब दिया की वह अंतरराष्ट्रीय कानूनों के बारे में पढ़ाई करना चाहती हैं ताकि वह एक बेहतर जज साबित हो सकें और अपने शहर सहित देश का नाम रोशन कर सकें।

बता दें कि तनिष्का ने महज 11 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास कर ली थी। तनिष्का ने बताया कि मैं 10 साल में ही 10वीं कर लेती परमिशन मिलने में एक साल लग गए। इसकी वजह से देर हुई है। तनिष्का ने 13 साल की उम्र में 12वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास कर ली थी। अब वह महज 15 वर्ष में ग्रेजुएशन कंप्लीट करने जा रही हैं।

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कोरोना के दौरान तनिष्का ने अपने पिता को खो दिया था लेकिन इसके बाद भी तनिष्का ने हौसला नहीं हारा। अभी वह इंदौर स्थित देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से बीए एलएलबी की पढ़ाई कर रही हैं। बीए-एलएलबी करने पर वह मात्र 15 वर्ष की उम्र में यानी सबसे कम उम्र की ग्रेजुएट बन जाएंगी।

तनिष्का की माता अनुभा कहती हैं कि कोरोना काल में ससुर और पति की मौत के बाद मुझ पर दुःख का पहाड़ टूट गया था। मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था। दो-तीन महीने ऐसे ही रोते हुए बीत गए। फिर मुझे लगा कि मेरी बेटी के भविष्य की खातिर, उसकी पढ़ाई के लिए मुझे हालात से संघर्ष करना ही होगा।