भोपाल के सरकारी अस्पताल हमीदिया में दो हफ़्ते में 9 हजार मरीजों को नहीं मिलीं दवाएं

डॉक्टरों द्वारा मरीजों के लिए जो दवाएं लिखी जाती हैं, वह अस्पताल में मौजूद नहीं, मरीज बाहर पैसे देकर दवा खरीदने पर मजबूर, कांग्रेस बोली क्या गरीबों को जीने का हक़ नहीं

Updated: Feb 26, 2021, 04:29 AM IST

Photo Courtesy: Bhaskar
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भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित हमीदिया अस्पताल में हर दूसरे मरीज को बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ रही है। मीडिया में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते दो हफ्ते में हमीदिया अस्पताल करीब नौ हजार मरीजों को पूरी दवाएं लिए बिना लौटना पड़ा है। भोपाल के इस नामी अस्पताल में दवाओं की किल्लत के कारण हजारों मरीज न चाहते हुए भी बाहर से दवाएं लेने को मजबूर हैं।

हमीदिया में दवाओं की किल्लत को लेकर विपक्ष ने सरकार को निशाने पर लिया है। कांग्रेस ने सीएम से पूछा है कि क्या गरीबों को जीने का हक नहीं है। मध्यप्रदेश कांग्रेस ने ट्वीट किया, 'अस्पताल में नहीं मिल रही दवाइयाँ, गरीब बाहर से दवाइयाँ ख़रीदने को मजबूर। विधायक ख़रीदकर मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान के जंगलराज में राजधानी भोपाल के सरकारी अस्पतालों में भी दवाइयाँ तक नहीं मिल रही है। शिवराज जी, क्या आपके राज में ग़रीबों को जीने का हक़ नहीं..?' 

हमीदिया में यह हालात तब हैं जब 15 दिन पहले ही जूनियर डॉक्टर्स (JUDA) ने बदहाल स्थिति को देखते हुए विरोध प्रदर्शन किया था। उस दौरान अस्पताल प्रशासन ने वादा किया था कि 14 दिनों के भीतर दवाओं की किल्लत समेत अन्य परेशानियों का हल निकाल लिया जाएगा, जिसके बाद JUDA ने अपनी हड़ताल खत्म कर ली थी। लेकिन, आज भी हमीदिया की हालात जस की तस है।

हमीदिया की ओपीडी से दवाएं लेने वाले मरीजों की पर्चियों को देखा जाए तो उसमें आधे से ज्यादा पर्चियों में लाल कलम से गोले बनाए हुए होते हैं। गोले का मतलब यह है कि ये दवा बाहर से खरीदनी होगी। मामले पर अस्पताल प्रबंधन का अजीबोगरीब तर्क है। प्रबंधन का कहना है कि शासन की ओर से रेट कॉन्ट्रैक्ट की सभी 360 तरह की दवाइयां मौजूद हैं। मरीजों को बाहर से इसलिए दवाएं लेनी पड़ रही हैं, क्योंकि डॉक्टरों द्वारा ऐसी दवाएं लिखी जाती हैं, जो ओपीडी में मौजूद नहीं होती। डॉक्टर्स ब्रांड नेम लिख कर देते हैं यही मुख्य कारण है। यदि डॉक्टरों द्वारा जेनेरिक दवाएं लिखी जाएंगी तो यह स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। सवाल यह है कि डॉक्टरों को ब्रांडेड दवाओं की जगह जेनेरिक दवाएं लिखने की हिदायत कौन देगा? क्या यह जिम्मेदारी अस्पताल के सीनियर मैनेजमेंट की नहीं है?