क्या हमारे ऊपर अत्याचार ही अमृत काल है, आदिवासियों ने शिवराज सरकार को भेजा कारण बताओ नोटिस

माधुरी बेन के विरुद्ध जिला बदर की कार्रवाई का जागृत आदिवासी दलित संगठन ने किया विरोध, कहा- वन कटाई में शासकीय मिलीभगत उजागर करने वाले आदिवासियों पर हमले से नहीं दबेगा आंदोलन

Updated: Jul 18, 2023, 07:38 PM IST

नेपानगर। विधानसभा चुनाव से पूर्व मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार चौतरफा विरोध झेल रही है। प्रदेशभर के आदिवासियों ने विभिन्न मुद्दों को लेकर शिवराज सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल रखा है। इसी बीच मंगलवार को नेपानगर के आदिवासियों ने शिवराज सरकार को कारण बताओ नोटिस भेजकर 
आदिवासियों के ऊपर हो रहे हिंसा, अत्याचार, और आदिवासी हितों के क़ानूनों के उल्लंघन का विरोध करते हुए पूछा, क्या यही आदिवासियों के लिए अमृत काल है?

मंगलवार दोपहर जागृत आदिवासी दलित संगठन के नेतृत्व में सैंकड़ों की संख्या में आदिवासी महिला-पुरुष नेपानगर एसडीएम कार्यालय पहुंचे। इस दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जागरूक और संगठित आदिवासियों पर लगातार हो रहे हमले के खिलाफ प्रदर्शन किया साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता माधुरी बेन को जिला बदर किए जाने का भी तीखा विरोध किया।  "हम सब माधुरी बाई हैं" का नारा लगाते हुए एकत्रित आदिवासियों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम ज्ञापन सौंप कर आदिवासियों के ऊपर हो रहे हिंसा, अत्याचार, और आदिवासी हितों के क़ानूनों के उल्लंघन का विरोध करते हुए पूछा, क्या यही आदिवासियों के लिए अमृत काल है? 

नेपानगर एसडीएम को मुख्यमंत्री के नाम पत्र सौंपते हुए आदिवासियों द्वारा घोषणा की गई कि शिवराज सरकार कितना भी दमन करे आदिवासी अपने संवैधानिक अधिकार लेकर रहेंगे। साथ ही कहा कि आदिवासियों को कानून और संवैधानिक अधिकारों को लेकर जागरूक करने वाली माधुरी बहन को जिला बदर करने से आदिवासी आंदोलन दबने वाले नहीं है, बल्कि और भी तेज़ी से बढ़ेगा, और हम आदिवासी ग्राम सभा के नेतृत्व में विकास, सभी के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य का पूरा अधिकार हासिल करेंगे।

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि आज निजी शिक्षा और स्वास्थ्य के बढ़ते खर्च के कारण आदिवासी एक कर्ज चुकाने दूसरा कर्ज लेकर, कर्ज में डूबते जा रहे हैं। कर्ज चुकाने के लिए आदिवासी परिवारों को उजड़ कर गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे दूर-दराज इलाकों में बंधुआ मजदूरी करने मजबूर होना पड रहा है, क्या 75 साल बाद भी गरीबी, शोषण और विस्थापन झेलना ही आदिवासियों के लिए विकास है?

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सीधी पेशाबकांड, सिवनी, नीमच, नेमावर, गुना में आदिवासियों की हत्या, पुलिस हिरासत में खरगोन और खंडवा में आदिवासियों की मौत होने और बुरहानपुर में ही वन विभाग द्वारा जंगल बचा रहे आदिवासियों के घरों को अवैध रूप से बेदखल करने की कोशिश, अवैध हिरासत में मारपीट की घटनाओं, आदिवासियों पर बढ़ रहे अत्याचार का उल्लेख करते हुए प्रदर्शनकारियों ने पूछा कि क्या आए दिन अत्याचार होना ही आदिवासियों के लिए अमृत काल है?
 
प्रदर्शनकारी आदिवासियों का कहना है, बुरहानपुर में 6 महीनों तक जंगल को सरकार ने कटने दिया, जब इसपर उन्होंने सरकार से सवाल उठाए, जंगल के विनाश, करोड़ों की लकड़ी तस्करी और उसमें सरकार की मिलीभगत को उजागर किया तब वे अचानक से मुजरिम बन गए। सरकार अपनी चोरी ढकने के लिए उल्टा चोरी उजागर करने वाले जागरूक आदिवासियों पर ही दमन कर रही है। उन्होंने पूछा कि अवैध वन कटाई के लिए दोषी वन कर्मियों पर आज तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? पेसा कानून और वन अधिकार की बात करने वाले मुख्यमंत्री द्वारा कानून चलाने वाले आदिवासियों पर हमले क्यों किए जा रहे हैं?