पिछला महीना पृथ्वी पर अब तक का सबसे गर्म जून दर्ज किया गया: NASA, NOAA

एनओएए के राष्ट्रीय पर्यावरण सूचना केंद्र (एनसीईआई) के वैज्ञानिकों ने बताया है कि वैश्विक स्तर पर, जून 2023 ने 174 साल के एनओएए रिकॉर्ड में सबसे गर्म जून का रिकॉर्ड बनाया। जून में वैश्विक सतह का तापमान 20वीं सदी के औसत 15.5 डिग्री सेल्सियस से 1.05 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है।

Publish: Jul 15, 2023, 01:36 PM IST

हीट स्ट्रोक- हम समवेत
हीट स्ट्रोक- हम समवेत

नई दिल्ली/ भोपाल। भले ही भारत में इन दिनों बारिश ने कहर मचा रखा हो, लेकिन पिछले महीने ने गर्म होने के मामले में नया रिकॉर्ड बनाया है। नासा और एनओएए के वैज्ञानिकों सहित कई अन्य वैज्ञानिकों के स्वतंत्र विश्लेषणों के बाद ये सामने आया है। यूरोपीय संघ की कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने इन वैज्ञानिकों के विश्लेषण के आधार पर दावा किया है कि बीता जून पृथ्वी पर अब तक का सबसे गर्म जून दर्ज किया गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के 174 साल के रिकॉर्ड में यह महीना सबसे गर्म था। 

10 सबसे गर्म सालों में दर्ज किया गया साल 2023


इतना ही नहीं, नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) का यह भी कहना है कि विश्लेषण में यह भी पाया गया है कि रिकॉर्ड में 2023 को 10 सबसे गर्म सालों में दर्ज किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसकी प्रतिशतता 99 प्रतिशत से अधिक है। साथ ही साथ 97 प्रतिशत संभावना इस बात की भी है इस साल को पांच सबसे गर्म वर्षों में भी दर्ज किया जाए।


इस साल का जून वैश्विक स्तर पर सबसे गर्म महीना


यूरोपीय संघ की कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने बताया है कि इस साल का जून वैश्विक स्तर पर सबसे गर्म रहा। जून का  तापमान 1991-2020 के औसत से 0.5 डिग्री सेल्सियस अधिक थ। ये जून 2019 के पिछले रिकॉर्ड से काफी अधिक है।

20वीं सदी से बढ़ा वैश्विक सतह का तापमान 


एनओएए के राष्ट्रीय पर्यावरण सूचना केंद्र (एनसीईआई) के वैज्ञानिकों ने बताया है कि वैश्विक स्तर पर, जून 2023 ने 174 साल के एनओएए रिकॉर्ड में सबसे गर्म जून का रिकॉर्ड बनाया। जून में वैश्विक सतह का तापमान 20वीं सदी के औसत 15.5 डिग्री सेल्सियस से 1.05 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा पहली बार है जब जून का तापमान दीर्घकालिक औसत से 1 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया हो। 

अल नीनो है इसका कारण


नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने इसका जिम्मेदार अल नीनो को ठहराया है। उनका कहना है कि अल नीनो जलवायु पैटर्न इस समय तापमान के इतना गर्म होने का भी एक कारण है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अल नीनो के चक्रीय पैटर्न के कारण प्रशांत महासागर में पानी सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है, और अतिरिक्त गर्मी दुनिया भर में मौसम को बदल देती है और वैश्विक तापमान बढ़ा देती है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण मजबूत हो रहे अल-नीनो


अधिकांश जलवायु मॉडल का अनुमान है कि अल-नीनो से संबंधित वर्षा में उतार-चढ़ाव अगले कुछ दशकों में काफी बढ़ जाएगा। जलवायु मॉडल के अनुसार, अल-नीनो और भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून के बीच संबंध भविष्य में और गहरा होगा, खासकर अगर हम उच्च कार्बन उत्सर्जन जारी रखते हैं।