आर्कटिक में बर्फ पिघलने से भारत में हो सकती है भारी बारिश- स्टडी रिपोर्ट 

रिसर्चर्स ने पाया है कि मॉनसून में अत्यधिक बारिश की घटनाएं समुद्री बर्फ की गिरावट के कारण होती हैं, उधर आर्कटिक सागर की बर्फ क्षेत्र में सालाना 4.4 की कमी आ रही है

Updated: Jul 07, 2021, 05:29 AM IST

Photo Courtesy: Scroll.in
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नई दिल्ली। आर्कटिक में बर्फ पिघलने से भारत में भारी बारिश की संभावना है। एक नई शोध में इस बात का दावा किया गया है। यह शोध विज्ञान मंत्रालय के तहत आने वाले नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च के नेतृत्व में किया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि आर्कटिक सागर के कारा क्षेत्र में गर्मियों के दौरान बर्फ पिघलने के कारण सितंबर में मध्‍य भारत में मानसून की भारी बारिश हो सकती है।

शोधकर्ताओं ने 22 जून को नेचर जॉर्नल में इस स्टडी को प्रकाशित किया। इसमें बताया गया है की साल 1979 में सैटेलाइट रिकॉर्ड की जब शुरुआत हुई तब से अब तक आर्कटिक सागर की बर्फ के क्षेत्र में हर दशक में सालाना 4.4 फीसदी की कमी हो रही है। हालांकि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि यह तेजी से समुद्री बर्फ की गिरावट भारत में मॉनसून के दौरान अत्यधिक बारिश होगी। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह उत्तर पश्चिमी यूरोप पर एक उच्च दबाव क्षेत्र का कारण बन सकता है। वैज्ञानिकों ने बताया कि देर से मानसून में अत्यधिक बारिश की घटनाएं समुद्री बर्फ की गिरावट के कारण होती हैं। स्टडी में यह भी कहा गया है कि आर्कटिक की समुद्री बर्फ के नुकसान के कारण ऊपरी स्तर के वायुमंडलीय सर्कुलेशन में परिवर्तन होता है। इसके कारण अरब सागर के ऊपर समुद्र की सतह का बहुत गर्म तापमान मध्य भारत में विशेष रूप से सितंबर के महीने में अत्यधिक मानसून की बारिश में वृद्धि होती है।'

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नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च के वैज्ञानिक और शोध का नेतृत्व करने वाले सौरव चटर्जी ने कहा कि आर्कटिक महासागर के बैरेंट्स-कारा सागर क्षेत्र में समुद्री बर्फ कम हो जाती है। यह गर्मियों के दौरान खुले महासागर के ऊपर अधिक गर्मी के संचार और ऊपर की ओर हवा की गति को बढ़ाता है। इसके बाद यह हवा उत्तर पश्चिमी यूरोप में एक गहरे एंटीसाइक्लोनिक वायुमंडलीय सर्कुलेशन को तेज करती है। 

सौरव चटर्जी के मुताबिक, 'जेट स्ट्रीम भी इसमें योगदान करती है। यह असामान्य ऊपरी वायुमंडलीय प्रेशर फिर भारतीय भूभाग क्षेत्र की ओर फैलती है। इसमें ऊपरी स्तर के वायुमंडलीय सर्कुलेशन में परिवर्तन के साथ-साथ अरब सागर की सतह के तापमान में वृद्धि संवहन और नमी की आपूर्ति होती है। परिणामस्वरूप अगस्त-सितंबर के दौरान भारत में अत्यधिक वर्षा की घटनाएं हो रही है।