स्कूलों की कैंटीन से बीमारी का खतरा बच्चों की सेहत को लेकर चिंता

अपने बच्चों की सेहत को लेकर चिंता करने वाले माता पिता यह जानकर हैरान हो सकते है कि स्कूलों की कैंटीन बच्चों को बीमार कर सकती है। इसका कारण कैंटीन में साफ सफाई का पर्याप्त प्रबंध नहीं होना और उसमें बिकने हानिकारक खाघ पदार्थ है।

Publish: May 27, 2019, 10:11 AM IST

पने बच्चों की सेहत को लेकर चिंता करने वाले माता पिता यह जानकर हैरान हो सकते है कि स्कूलों की कैंटीन बच्चों को बीमार कर सकती है। इसका कारण कैंटीन में साफ सफाई का पर्याप्त प्रबंध नहीं होना और उसमें बिकने हानिकारक खाघ पदार्थ है। स्कूलों की कैंटीन में बच्चों को खाने पीने के लिए जो खाघ पेय पदार्थ उपलब्ध कराये जाते हैं उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने की कोई नियमित व्यवस्था नहीं है। जो कर्मचारी खाघ पेय पदार्थो को बनाते हैं वे स्वच्छता, शुधदता सम्बन्धी कितने नियमों का पालन करते हैं इसकी भी कोई गारंटी देने वाला नहीं हैं । स्कूलों की कैंटीन का वातावरण कितना साफ सुथरा है इसकी चिंता स्कूल प्रबंधन से जुडे लोग कम ही करते हैं। स्कूल प्रंबधन से जुडे अधिकांश शीर्ष अधिकारियों ने कितनी बार कैंटीन का नीरीक्षण किया इसका सीधा और स्पष्ट जवाब बहुत कम स्कूलों से ही मिल सकेगा । स्कूल प्रबंधन कैंटीन की साफ सफाई और वहॉ बिकने वाले खाघ पेय पदार्थो की गुणवत्ता को लेकर गंभीर नहीं है। सरकार के जिन विभागो के पास खाघ पेय पदार्थो की गुणवत्ता की जॉच का जिम्मा है वे भी स्कूलों के कैंटीन की आकस्मिक जॉच नहीं करते है। निजी स्कूलों से लेकर सरकारी स्कूलों तक में कैंटीन का हाल खराब है। शायद यही कारण है कि मधयान्ह भोजन को खाकर बच्चों के बीमार हो जाने की शिकायतें अकसर मिलती रहती है। बार बार कैंटीन के खाघ पेय पदार्थो का सेवन कर बच्चों के बीमार हो जाने के मामले सामने आने के बाद भी कैंटीन की साफ सफाई और वहॉ बनने बिकने वाले खाघ पदार्थो की गुणवत्ता का लेकर सरकार स्तर पर नियमित प्रभावी कार्यवाही अब तक शुरू नहीं हो सकी है। यदि इस सम्बन्ध में कोई नियम कानून बनाये भी गये हैं तो उनका क्रियान्वयन देखने को नहीं मिल रहा है। इसका स्कूलों में पढने वाले बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड रहा है।

हाल ही में दिल्ली के लगभग 250 सरकारी एंव निजी स्कूलों की कैंटीन और वहॉ मिलने बिकने वाले खाघ पेय पदार्थो को लेकर एक अधययन किया गया। दिल्ली विश्वविघालय के खाघ तकनीक विभाग द्वारा भास्कराचार्य महाविघालय के सहयोग से कराये गये इस अध्ययन के बाद जो रिपोर्ट तैयार हुई वह कैंटीनों की अव्यवस्था,गंदगी का खुलासा करती है।

इस रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर हुआ कि कैंटीन में तैयार होने वाले खाने की गुणवत्ता ठीक नहीं है। वहॉ का पानी भी अशुधद है। पीने योग्य नहीं है। अशुध्द पानी के सेवन से बच्चों के पेट तक पहॅुचने वाले हानिकारक वैक्टिरिया बच्चों को डायरिया सहित अन्य बीमारियों का शिकार बना रहे हैं। कैंटीन में तैयार होने वाला खाना जो लोग बनाते हैं उन्हें इस बात कि जानकारी नहीं है कि खाने की चीजों को स्वच्छ और गुणवत्ता के साथ कैसे तैयार किया जायें। सब्जियों को सही तरीके से धोना,जिस बर्तन में खाना तैयार किया जाना है उसकों गंदगी मुक्त रखने का काम भी प्रतिदिन जल्दबाजी में ही किया जाता है।

इस अध्ययन के अनुसार 250 स्कूलों में से 40 प्रतिशत स्कूलों में खाना बनाने के बर्तन साफ नहीं मिले । 17प्रतिशत स्कूलों में कैंटीन के कर्मचारी अशिक्षित मिले । 29प्रतिशत स्कूलों में खाना बनाने में उपयोग किये जाने वाले चाकू सहित अन्य बर्तन पूरी तरह साफ नहीं मिले। 80प्रतिशत स्कूलों की कैंटीन के कर्मचारी बिना एप्रेन और ग्लब्ज पहने हुए काम करते मिले। 45प्रतिशत स्कूलों की कैंटीन में तो वहॉ काम करने वाले कर्मचारी खुद ही खॉसी, सर्दी,जुकाम सहित अन्य संक्रामक बीमारियों के शिकार पाये गये। 10 प्रतिशत से अधिक स्कूलों की कैंटीन में पेयजल स्त्रोत गंदगीयुक्त वातावरण में पाये गये जहॉ का पानी शुध्द नहीं था।

इधर मध्यप्रदेश के स्कूलों की कैंटीन का हाल भी ज्यादा अच्छा नहीं है। यदि यहॉ भी इसी प्रकार कोई अध्ययन किया जाये तो यह तथ्य सामने आयेगा कि कैंटीन की व्यस्था ठीक नहीं है । इस मामले में निजी स्कूलों का हाल भी सरकारी स्कूलों जैसा ही है। स्कूलों की कैंटीन की चिंता स्कूल प्रबंधन की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं रहती है इसी कारण बच्चे बीमार होते रहते हैं।

स्कूलों में बनने बिकने वाली खाघ सामग्री पेय पदार्थ गुणवत्ता युक्त हों,कैंटीन साफ सुथरी ,वहॉ काम करने वाले कर्मचारी प्रशिक्षित हों इसकी जिम्मेदारी सरकार के स्तर पर तय की जाना चाहिये। स्कूलों की कैंटीन का आकस्मिक निरीक्षण हो इसके लिए लगातार अभियान चलाया जाना चाहिये।

स्कूलों में बच्चों को पोष्टिक और गुणवत्ता युक्त खाघ पेय पदार्थ उपलब्ध हों इसके लिए सख्त नियम कानून बनाये जायें। स्कूलों की कैंटीन में बिकने वाले हानिकारक खाघ पदार्थों की बिकी प्रतिबंधित की जाना चाहिये। इस संबंध में जंक फूड का जिक्र करना भी जरूरी होगा। जंक फूड की स्कूलों में भी खूब बिक्री हो रही है। जंक फूड से आशय बर्गर, पिज्जा,पेस्ट्री, केक,सोडा, कैंडी, जेम्स और हाई शुगर लेवल वाले खाघ पदार्थो से है जो बच्चों को स्वादिष्ट लगते हैं। स्वाद के चक्कर में बच्चे अपने स्वास्थय का कितना नुकसान करते है इसका उन्हें पता नहीं है। जंक फूड को चिकित्सकों ने भी नुकसान दायक बताया है इसके बाद भी स्कूलों में भी इसकी बिक्री खूब हो रही ंहै। यह बच्चों को बीमार बना रहा है। अब समय आ गया है कि बच्चों को जंक फूड से होने वाले नुकसान के बारे में स्कूलों में बताया जाये और इसे कैंटीन में मिलने बिकने पर रोक लगाई जायें।

यहॉ यह बताना भी जरूरी होगा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जंक फूड को बच्चों के लिए नुकसानदेह बताया है। संगठन ने वर्ष 2011 में एक अध्ययन रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए स्कूलों में जंक फूड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया। इस निर्देश पर भारत में अब तक अमल नहीं हो सका है जबकि दुनिया अनेक देश के स्कूल जंक फूड को कैंटीन से बाहर कर चुके हैं। ब्रिटेन में तो वर्ष 2005 से ही स्कूलों में जंक फूड की बिक्री पर प्रतिबंध लगा हुआ है। वर्ष 2010में संयुक्त अरब अमीरात ने जंक फूड की बिक्री पर रोक लगा दी। इसके साथ ही कनाडा,डेनमार्क,फ्रांस, मेक्सिकों,स्काटलेंड सहित अनेक देशों ने जंक फूड को स्कूलों में बेचने पर प्रतिबंध लगा रखा है। अमेरिका में भी जंक फूड को स्कूलों में नहीं बेचा जा सकता है। भारत के स्कूलों में जंक फूड की बिक्री बंद किये जाने पर अभी विचार हो रहा है। इसकी बिक्री तत्काल बंद किये जाने के आदेश क्यों नहीं किये जा रहे है ? क्या हमारे देश को ,हमारी सरकार को बच्चों के स्वास्थ्य की ज्यादा चिंता नहीं है? देश को बीमार नहीं स्वस्थ बच्चों की जरूरत है क्योंकि स्वस्थ और शिक्षित बच्चे ही देश का भविष्य हैं। बच्चों की सेहत के लिए जंक फूड की बिक्री को हमारे देश के स्कूलों में भी बंद किया जाना चाहिये। इससे होने वाले नुकसान से बच्चों को बचाने की जिम्मेदारी केवल सरकार ही नहीं समाज की भी है। हम अपने बच्चों को जंक फूड से होने वाले नुकसान बतायें तो उसका असर भी अवश्य ही देखने को मिलेगा। सरकार और समाज की ओर से इसके लिए नियमित जागरूकता अभियान चलाये जाने की भी जरूरत है।