Assam: असम में सरकारी खर्च पर नहीं चलेंगे मदरसे और संस्कृत स्कूल

Himanta Biswa Sarma: राज्य के शिक्षा मंत्री ने की आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने की बात, हिंदू-मुस्लिम संगठनों ने किया विरोध

Updated: Oct 12, 2020, 02:08 PM IST

Photo Courtesy: Google
Photo Courtesy: Google

दिसपुर। असम के शिक्षा मंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने सरकारी खर्च से चलने वाले मदरसों और संस्कृत स्कूलों को जल्द ही बंद करने का एलान किया है।न्यूज एजेंसी आईएनएस के अनुसार राज्य सरकार नवंबर में इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी करेगी। सरमा ने बताया कि इस संबंध में विधानसभा में घोषणा की जा चुकी है। उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति या संस्था अपने खर्च पर धार्मिक शिक्षा के संस्थान चलाना चाहती है, तो इसकी मंजूरी है। उन्होंने कहा कि सरकार अब अपने संसाधन आधुनिक शिक्षा पर खर्च करेगी। 

असम में इस वक्त 614 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। इसी तरह करीब एक हजार संस्कृत स्कूल हैं। असम सरकार के इस फैसले की राजनीतिक दलों एवं समूहों ने आलोचना की है। ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल ने कहा है कि अगर बीजेपी सरकार मदरसों को बंद करेगी तो उनकी पार्टी अगले साल होने वाले चुनाव के बाद इन्हें फिर से शुरू करेगी। 

द हिंदू के अनुसार असम सरकार ने इस साल फरवरी में ही सरकारी खर्च पर चलने वाले इन धार्मिक शिक्षण संस्थानों को बंद करने और उन्हें हाईस्कूल और हायर सेंकेंड्री स्कूलों में बदलने का फैसला लिया था। सरकार ने इसके लिए पांच महीनों की समय सीमा तय की थी। धार्मिक संगठनों ने तब भी सरकार के इस फैसले की आलोचना की थी। 

ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के महासचिव अमीनुल इस्लाम ने कहा, "बीजेपी की सरकार मदरसों के साथ संस्कृत स्कूलों को बंद कर खुद को धर्मनिरपेक्ष दिखाना चाहती है। मदरसों को अगर नजरंदाज भी कर दें तो भी हम संस्कृत के प्रति ऐसे व्यवहार का समर्थन नहीं करते। संस्कृत इस दुनिया की ज्यादातर भाषाओं की जननी है।"

ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन ने कहा कि सरकार का यह कदम उसके एजेंडे से मेल खाता है। यह सरकार संविधान में मिले मूल अधिकारों को छीनना चाहती है। संगठन ने कहा कि मदरसों में केवल इस्लामिक धर्मग्रंथों और अरबी ही नहीं पढ़ाई जाती बल्कि बाकी स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले विषयों की भी शिक्षा दी जाती है। 

कुछ हिंदू संगठनों ने भी असम सरकार के इस कदम की आलोचना की है। उनका कहना है कि संस्कृत उनकी संस्कृति का अटूट हिस्सा है और सरकार का यह कदम स्वीकर नहीं किया जा सकता। डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार असम सरकार मदरसा एजुकेशन और असम संस्कृत बोर्ड को पहले ही खत्म कर चुकी है।