29 जनवरी से होगा संसद का बजट सत्र, आम बजट 1 फरवरी को

सूत्रों के हवाले से आई ख़बरों के मुताबिक़ बजट सत्र का पहला भाग 29 जनवरी से 15 फरवरी तक और दूसरा भाग 8 मार्च से 8 अप्रैल तक चलेगा, दोनों सदनों में 4-4 घंटे ही काम होगा

Updated: Jan 06, 2021, 01:39 AM IST

Photo Courtesy: RSTV
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नई दिल्ली। संसद का शीतकालीन सत्र भले ही कोरोना महामारी को वजह बताकर रद्द कर दिया गया हो, लेकिन ख़बर है कि सरकार ने संसद का बजट सत्र बुलाने का फ़ैसला कर लिया है। मीडिया में सूत्रों के हवाले से आ रही ख़बरों के मुताबिक़ बजट सत्र दो हिस्सों में होगा। पहला भाग 29 जनवरी से 15 फरवरी तक होगा, जबकि दूसरा 8 मार्च से 8 अप्रैल तक चलेगा। आम बजट 1 फरवरी को पेश किया जाएगा। 

संसद का बजट सत्र 29 जनवरी से शुरू होगा। सूत्रों के हवाले से ख़बर यह भी आ रही है कि सत्र के दौरान संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही हर दिन 4-4 घंटे ही चलेगी। ऐसा कोरोना महामारी से बचाव के लिए एहतियात के तौर पर किया जाएगा। 29 जनवरी को राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को संबोधित करेंगे। खबर है कि संसदीय मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCPA) ने 29 जनवरी से बजट सत्र बुलाने की सिफारिश कर दी है। सत्र के दौरान कोरोना महामारी से बचाव के लिए ज़रूरी सभी प्रोटोकॉल का पालन किया जाएगा।

कोरोना महामारी के चलते इस बार संसद का शीतकालीन सत्र नहीं बुलाया गया। सरकार ने कहा कि कोरोना इंफेक्शन के बढ़ते मामलों के कारण संसद के शीतकालीन सत्र बुलाना ठीक नहीं होगा। सरकार के इस फ़ैसले की विपक्ष ने तीखी आलोचना करता रहा है। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने माँग की थी कि किसानों के मुद्दों पर चर्चा के लिए संसद का सत्र बुलाया जाना बेहद ज़रूरी है। लेकिन मोदी सरकार के संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने दावा किया कि कोरोना के चलते सत्र नहीं बुलाने का फ़ैसला सभी दलों की सहमति से किया गया है। 

हालाँकि सरकार के इस दावे के विपरीत विपक्ष के तमाम प्रमुख नेता संसद का शीतकालीन सत्र नहीं बुलाने की खुलकर आलोचना करते रहे हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चव्हाण तो संसद का शीतकालीन सत्र न बुलाने को तानाशाही तक बता चुके हैं। कांग्रेस के तमाम प्रमुख नेता लगातार यह सवाल उठाते रहे है कि अगर कोरोना महामारी के बावजूद देश में विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव हो सकते हैं, सत्ताधारी दल की बड़ी-बड़ी सियासी रैलियां हो सकती हैं, तो संसद का सत्र क्यों नहीं हो सकता?