BLO नागर‍िकता तय नहीं कर सकता, सुप्रीम कोर्ट में SIR पर बहस के दौरान कपिल सिब्बल ने उठाए गंभीर सवाल

कपिल सिब्बल ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 16 का हवाला दिया, जो वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करने से अयोग्यता के नियम बताती है। यह धारा कहती है क‍ि किसी की नागरिकता का फैसला गृह मंत्रालय करता है।

Updated: Nov 28, 2025, 05:45 PM IST

नई दिल्ली। देश के 12 राज्यों और UTs में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन यानी SIR का काम जारी है। उधर सुप्रीम कोर्ट में इस प्रक्रिया को लेकर सुनवाई भी जारी है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी ने SIR को लेकर अपनी दलील में कई सवाल खड़े किए हैं। कपिल सिब्बल ने पूछा कि क्या एक BLO तय करेगा कि कौन भारत का नागरिक है और कौन नहीं?

सीजेआई जस्‍ट‍िस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ के सामने कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया कि BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) की शक्ति की सीमा क्या है? क्या BLO यह तय कर सकता है कि कोई व्यक्ति मानस‍िक रूप से बीमार है? उन्होंने कहा कि यह अत्यंत खतरनाक है, आपने एक स्‍कूल टीचर को बीएलओ बनाकर इतनी ताकत दे दी है क‍ि वह नागर‍िकता तय करेगा।

सिब्बल ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 16 का हवाला दिया, जो वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करने से अयोग्यता के नियम बताती है। यह धारा कहती है क‍ि किसी की नागरिकता का फैसला गृह मंत्रालय करता है। अगर कोई मानस‍िक रूप से बीमार है, तो उसका फैसला अदालत करती है। उन्होंने कहा कि आप BLO को यह सब तय करने के लिए कैसे कह सकते हैं? उन्होंने कहा कि SIR में लगाए गए नियम विदेशी अधिनियम जैसे हैं, जहां व्यक्ति पर ही यह प्रेशर होता है कि वह साबित करे कि वह विदेशी नहीं है।

इस दौरान अभिषेक सिंघवी ने अपनी दलील में कहा कि चुनाव आयोग, चुनावों के संचालन को नियंत्रित करने के नाम पर ऐसे आदेश नहीं दे सकता जो पूरी तरह विधायी प्रकृति के हों, क्योंकि संविधान की व्यवस्था में यह अधिकार सिर्फ संसद और राज्य विधानसभाओं को दिया गया है। किसी भी तरह से यह नहीं कहा जा सकता कि चुनाव आयोग संव‍िधान की विधायी प्रक्रिया का तीसरा सदन है। सिर्फ इसलिए कि चुनाव आयोग को संविधान के तहत बनाया गया है, उसे पूरी तरह कानून बनाने की शक्‍त‍ि नहीं मिल जाती। लेकिन चुनाव आयोग इसी बहाने से वास्तविक और ठोस बदलाव कर रहा है।

सिंघवी ने आगे कहा, 'SIR कोई आम प्रक्रिया नहीं है, यह massification en masse exercise यानी बड़े पैमाने पर चलाया जा रहा सामूहिक अभियान है. यह सिर्फ फोटो वेर‍िफ‍िकेशन नहीं, बल्कि नागरिकता की जांच जैसा बन चुका है। चुनाव आयोग के पास ऐसा करने का कोई कानूनी अध‍िकार नहीं है।' उनके इस दलील से सुप्रीम कोर्ट के अंदर और बाहर दोनों जगह SIR को लेकर नई बहस छिड़ गई। सवाल उठ रहे हैं क‍ि क्‍या सच में एसआईआर के बहाने नागर‍िकता जांच हो रही है?

आधार को लेकर बहस​​​​​

सिब्बल: आधार मेरे निवास का प्रमाण है। अगर आपको इसे नकारना है, तो वैधानिक प्रक्रिया अपनाइए। बिना उचित कारण नागरिक को संदिग्ध मानना ठीक नहीं।

न्यायमूर्ति बागची: लेकिन आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। इसलिए इसे हम केवल दस्तावेज़ों की सूची में एक विकल्प के रूप में देखते हैं, निर्णायक प्रमाण के रूप में नहीं।

सिब्बल: लेकिन चुनाव आयोग फॉर्म-6 को ऐसे क्यों नहीं स्वीकारता जैसा दिया गया है? आयोग किसी पोस्ट ऑफिस की तरह इसे स्वीकार करे, जब तक कोई ठोस विरोध सामग्री न हो।

न्यायमूर्ति बागची: आयोग केवल पोस्ट ऑफिस नहीं है। उसे संवैधानिक अधिकार है कि वह दस्तावेज़ों की शुद्धता की जांच करे। अगर फॉर्म-6 में कुछ गलत है, तो उसे परखने की शक्ति आयोग के पास है।

बता दें कि देश के 12 राज्यों और UTs में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन यानी SIR का काम जारी है। बूथ लेवल अफसरों पर SIR का काम तय समय पर पूरा करने का भारी दवाब है। इस कारण BLO बीमारी और अवसाद का शिकार बन रहे हैं। बीते तीन हफ्तों में करीब 25 BLOs की मौत हो चुकी है। अधिकांश मौतों की वजह काम के प्रेशर में आत्महत्या, हार्ट अटैक बताया गया है।