कोरोना से ठीक होने के बाद डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं मरीज, आ रहे हैं आत्महत्या के ख्याल

कोरोना से ठीक होने के बाद लोग न्यूरोलॉजिकल समस्या का शिकार हो रहे हैं, लोगों को एंजायटी, डिप्रेशन, नकारत्मक विचार जैसी शिकायत है

Publish: Aug 02, 2021, 04:40 AM IST

नई दिल्ली। कोरोना महामारी से बुरी तरह से लोगों की आम जिंदगियों पर प्रभाव पड़ा है। कोरोना संकट के इस दौर में महामारी पर विजय पाने के बावजूद लोगों की समस्या समाप्त नहीं हो रही है। कोरोना से ठीक होने वाले मरीज अब पोस्ट कोविड समस्या से जूझ रहे हैं। संक्रमण से मुक्ति मिलने के बाद लोग अब डिप्रेशन, एंजाइटी, नकारात्मक विचार के शिकार हो रहे हैं। लोगों के मन में आत्महत्या का ख्याल भी घर कर रहा है।

कोरोना से ठीक होने के हफ्तों बाद मरीजों में न्यूरोलॉजिकल समस्या देखी गई है। कोरोना से पार पाने के बाद ज्यादातर मरीज मानसिक विकृति, ब्रेन स्ट्रोक और यहां तक कि कोमा से भी पीड़ित हुए हैं। पूरी दुनिया में इस तरह के मामले सामने आए हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। 

दिल्ली का मूलचंद अस्पताल इस समस्या की गवाही दे रहा है। मूलचंद अस्पताल में इस समय 50 फीसदी मरीज ऐसे हैं जो कि ब्रेन हेमरेज का शिकार हुए हैं। वहीं ओपीडी में कम से कम 60 फीसदी मरीज ऐसे हैं जो कि सिरदर्द, डिप्रेशन, अकेलापन महसूस होने जैसी समस्या से पीड़ित हैं। 

न्यूरोलॉजिकल समस्या का सबसे ज्यादा शिकार वैसे लोग हैं जो कि दो से तीन महीने के अंतराल के बीच कोरोना के संक्रमण का शिकार हुए हैं। कम अंतराल में कोरोना से संक्रमित होने के कारण इन लोगों की निजी और पेशेवर दोनों ही जिंदगियों पर बुरा प्रभाव पड़ा। वे निजी जिंदगी और पेशेवर जिंदगी में संतुलन बैठा पाने में नाकामयाब हुए। यही वजह रही कि ऐसे मरीज अब तरह तरह की समस्याओं से पीड़ित हैं।

मूलचंद अस्पताल की ही सीनियर न्यूरोसर्जन आशा बख्शी ने अंग्रेजी के एक अखबार को बताया कि कोरोना ने सिर्फ लोगों के लंग्स पर ही प्रभाव नहीं डाला है। बल्कि इस महामारी ने लोगों को लंबे अरसे तक शिकार रखने वाली न्यूरोलॉजिकल समस्याएं दी हैं। न्यूरोसर्जन ने एक विदेशी रिपोर्ट के हवाले से बताया कि उसमें इस बात का ज़िक्र था कि कोरोना से ठीक होने वाले 3700 मरीजों में से 80 फीसदी मरीजों को न्यूरोलॉजिकल समस्या से पीड़ित पाया गया। 26 प्रतिशत मरीजों की सूंघने की शक्ति समाप्त हो चुकी थी। जबकि 49 फीसदी मरीज मानसिक विकृति और 6 फीसदी मरीज स्ट्रोक की समस्या से पीड़ित थे।

इतना ही नहीं भारत में खुद असम के हजारिका एंड क्लिंग्स ने यह पाया है कि कोरोना से ठीक होने वाले 46 फीसदी लोगों को एंजायटी और 22 प्रतिशत लोगों को डिप्रेशन है। जबकि 5 फीसदी लोगों को आत्महत्या के ख्याल आते हैं। स्पष्ट है कि चुनौती सिर्फ अब कोरोना संक्रमण की नहीं है बल्कि इससे ठीक होने के बाद होने वाली न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से पार पाना भी एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।