माओवादियों लिंक केस में DU के पूर्व प्रोफेसर GN साईबाबा बरी, बॉम्बे HC ने रद्द की हाईकोर्ट की सजा

माओवादी लिंक केस में दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बड़ी राहत मिली है। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बरी कर दिया है और उनकी उम्रकैद की सजा रद्द की है।

Updated: Mar 05, 2024, 06:42 PM IST

नागपुर। बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने माओवादी लिंक केस में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा को बरी कर दिया गया है। 54 वर्षीय जीएन साईबाबा को सेशन कोर्ट द्वारा उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट में उम्रकैद की सजा भी रद्द कर दिया है। जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस एसए मेनेज़ेस की बेंच ने यह फैसला सुनाया।

सेशन कोर्ट ने साल 2017 में साईबाबा और अन्य को दोषी ठहराया था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट राज्य की अपील पर फैसला नहीं कर लेता, तब तक प्रत्येक आरोपी को जमानत बॉन्ड के रूप में 50,000 रुपये जमा करने पर जेल से रिहा किया जा सकता है। वहीं, राज्य ने फैसले पर रोक लगाने की मांग नहीं की।

हाईकोर्ट की पिछली पीठ ने भी 14 अक्टूबर, 2022 को पूर्व प्रोफेसर को बरी कर दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा अक्टूबर 2022 के बरी करने के आदेश को रद्द करने और मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए हाईकोर्ट में वापस भेज दिया था। जिसके बाद दोबारा इस मामले की सुनवाई हुई। अब दोबारा सुनवाई के बाद हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने फिर से जीएन साईबाबा को बरी करने का फ़ैसला सुनाया है।

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54 साल के साईबाबा व्हीलचेयर से चलते हैं और 99 फ़ीसदी विकलांग हैं। वह पिछले 11 साल से नागपुर की सेंट्रल जेल में थे। मशहूर अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह ने साईबाबा को रिहा किया जाने के फ़ैसले पर ख़ुशी ज़ाहिर की है साथ ही न्यायप्रणाली पर सवाल भी खड़े किए हैं 

उन्होंने एक्स पर लिखा, 'साईबाबा बरी कर दिए गए हैं, लेकिन कितने समय बाद? उसके स्वास्थ्य को जो नुकसान हुआ उसे कौन लौटाएगा? कोर्ट? शर्म करिए। कितने और लोगों को ज़मानत के लिए इंतज़ार करना होगा? लोगों की आज़ादी को जिस तरह ख़त्म किया गया, उस नुकसान की क़ीमत कौन चुकाएगा?'

बता दें कि ये मामला मई 2014 का है। माओवादियों से संंबंध मामले में पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को दिल्ली में उनके घर से महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार किया था। पुलिस ने आरोप लगाया था कि साईबाबा और दो अन्य आरोपियों के पास गढ़चिरौली में भूमिगत नक्सलियों और जिले के निवासियों के बीच लोगों को हिंसा के लिए उकसाने के इरादे और उद्देश्य से नक्सली साहित्य था।