झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन, दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में ली आखिरी सांस
झारखंड सीएम हेमंत सोरेन ने पिता के निधन की जानकारी देते हुए एक्स पर लिखा कि आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं।

नई दिल्ली। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के दिग्गज नेता शिबू सोरेन का निधन हो गया है। शिबू सोरेन के निधन की जानकारी उनके बेटे और झारखंड सीएम हेमंत सोरेन ने खुद सोशल मीडिया पर साझा की। सीएम हेमंत सोरेन ने पिता के निधन की जानकारी देते हुए एक्स पर लिखा कि आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं।
बताया जा रहा है कि शिबू सोरेन की काफी दिनों से तबियत खराब थी, जिसकी वजह से उनका दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में इलाज चल रहा था। शिबू सोरेन पिछले एक महीने से ज़्यादा समय से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती थे। शिबू सोरेन (81) को जून के आखिरी हफ़्ते में किडनी संबंधी समस्या के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
बीते कुछ दिनों से वहां भर्ती थे। न्यूरोलॉजी, कार्डियोलॉजी और नेफ्रोलॉजी के विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम उनका इलाज कर रही थी। उनकी स्थिति चिंताजनक बनी हुई थी। उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ था। इससे उनके शरीर के बाईं ओर पैरालिसिस हो गया था। सोरेन लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। एक साल से डायलिसिस पर थे। वे डायबिटीज से पीड़ित थे और हार्ट की बायपास सर्जरी भी हो चुकी थी।
उनका राजनीतिक जीवन कई उतार-चढ़ावों से भरा रहा। देश की राजनीति में उन्होंने जो पहचान बनाई, उसकी कोई दूसरी मिसाल शायद ही मिले। साधारण परिवार से निकलकर सीएम पद का पहुंचने का उनका सफर कई संघर्षों से भरा हुआ है। शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक संरक्षक थे। वह यूपीए के पहले कार्यकाल के दौरान कोयला मंत्री रह चुके थे। हालांकि चिरूडीह हत्याकांड में नाम आने के बाद उन्होंने केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
81 साल के दिशोम गुरु शिबू सोरेन का जन्म वर्तमान रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के नेमरा में 11 जनवरी 1944 को हुआ। गांव के ही स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा लिए दिशोम गुरु का जीवन संघर्षों भरा रहा है। महज 13 साल की उम्र के थे, जब उनके पिता की हत्या महाजनों ने कर दी। इसके बाद शिबू सोरेन ने पढ़ाई छोड़ दी और महाजनों के खिलाफ संघर्ष का फैसला किया।
1970 में वे महाजनों के खिलाफ खुल कर सामने आए और धान कटनी आंदोलन की शुरुआत की। सूदखोरों के खिलाफ आंदोलन चलाकर शिबू सोरेन चर्चा में आए, लेकिन महाजनों को अपना दुश्मन बना लिया। शिबू को रास्ते से हटाने के लिए महाजनों ने भाड़े के लोग जुटाए। उन दिनों आदिवासियों को जागरूक करने के लिए शिबू सोरेन बाइक से गांव-गांव जाते थे। इसी दौरान एक बार उन्हें महाजनों के गुंडों ने घेर लिया। बारिश का मौसम था। बराकर नदी उफान पर थी। शिबू सोरेन समझ गए कि अब बचना मुश्किल है।
उन्होंने आव देखा न ताव, अपनी रफ्तार बढ़ाई और बाइक समेत नदी में छलांग लगा दी। सभी को लगा उनका मरना तय है, लेकिन थोड़ी देर बाद शिबू तैरते हुए नदी के दूसरे छोर पहुंच गए। लोगों ने इसे दैवीय चमत्कार माना। आदिवासियों ने शिबू को ‘दिशोम गुरु’ कहना शुरू कर दिया। संथाली में दिशोम गुरु का अर्थ होता है देश का गुरु।
शिबू सोरेन 2 मार्च 2005 को पहली बार झारखंड के CM बने, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण दस दिन में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 27 अगस्त 2008 को शिबू सोरेन दूसरी बार झारखंड के CM बने। इस बार वे विधायक नहीं थे। इस कारण छह महीने में उन्हें चुनाव जीतकर विधानसभा का सदस्य बनना था। CM शिबू सोरेन करीब 9 हजार वोट से उपचुनाव हार गए थे। आखिर में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।