Supreme Court: तबलीगी जमात मामले में मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, अदालत ने कहा सरकार का रवैया मामले को टालने वाला
याचिका में तबलीगी जमात मामले की रिपोर्टिंग को लेकर कुछ मीडिया संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है, इस सिलसिले में केंद्र सरकार का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट को रास नहीं आया

नई दिल्ली। तबलीगी जमात मामले में पेश याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आज यह भी कहा कि हाल के दिनों में अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का सबसे अधिक दुरुपयोग हुआ है। कोर्ट ने यह टिप्पणी तबलीगी जमात को लेकर कोर्ट में दायर उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें कहा गया है कि मीडिया ने इस मामले में आपत्तिजनक रिपोर्टिंग करते हुए कोविड 19 का सांप्रदायीकरण किया और महामारी को फैलाने के लिए मुस्लिम समुदाय को जिम्मेदार ठहराया, जिससे मुस्लिम समुदाय के लोगों को जान का खतरा भी पैदा हो गया। इस आधार पर मीडिया के एक सेक्शन के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से हलफनामा दाखिल करने को कहा था। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे से सुप्रीम कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ और उसने इस हलफनामे को अपूर्ण और खराब बताते हुए कड़ी फटकार लगाई।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने जब यह कहा कि ऊपरी तौर पर केंद्र द्वारा डाले गए हलफनामे से यह प्रतीत होता है कि वह याचिकाकर्ताओं पर मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी दबाने का आरोप लगा रहा है, तब सीजेआई ने कहा कि केंद्र सरकार आप की तरह ही कोई भी दलील दे सकता है। हालांकि, अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार हाल फिलहाल में सबसे अधिक दुरपयोग किया जाने वाला अधिकार हो सकता है।
दूसरी तरफ केंद्र सरकार की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह विचार विभाग के हैं। इसपर सीजेआई ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आपकी तरफ से जो हलफनामा दाखिल किया गया है वो एक तरह से टालने वाला और चलताऊ है। आपने जूनियर सेक्रेटरी के माध्यम से यह हलफनाम दाखिल किया है। इसमें मीडिया की आपत्तिजनक रिपोर्टिंग के आरोपों का कोई जवाब नहीं है। कोर्ट ने कहा कि आप याचिकार्ताओं से असहमत हो सकते हैं, लेकिन यह कैसे कह सकते हैं कि याचिका में मीडिया की आपत्तिजनक रिपोर्टिंग का कोई भी जिक्र नहीं किया गया है।
सीजेआई की इस टिप्पणी के जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने स्वीकार किया कि हलफनामा सबसे वरिष्ठ अधिकारी द्वारा दाखिल किया जाना चाहिए था और अगली तारीख पर वे खुद इसका ध्यान रखेंगे। इस मामले में अब दो सप्ताह बाद सुनवाई होगी। हालांकि, 13 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह कोरोना वायरस का सांप्रदायिककरण करने के आरोप को लेकर मीडिया पर कड़े प्रतिबंध लगाने का अंतरिम आदेश पारित नहीं करेगा।