Rajasthan: कांग्रेस विधायकों का धरना खत्म राज्यपाल ने पत्र लिखा

Rajasthan Political Crisis: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि राज्यपाल दबाव में काम नहीं करें, विधानसभा सत्र बुलाएँ

Updated: Jul 25, 2020, 11:59 PM IST

Photo Courtesy : bhaskar
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जयपुर।राजस्थान में जारी राजनीतिक संकट के बीच विधानसभा सत्र बुलाने की माँग को लेकर कांग्रेस विधायकों का राजभवन में चल रहा धरना ख़त्म हो गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कैबिनेट बैठक बुलाई। राजभवन में विधायकों के धरने पर राज्यपाल कलराज मिश्र ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखा है। राज्यपाल ने कहा है कि क्या विधायकों को लेकर राजभवन का घेराव करना गलत ट्रेंड की शुरुआत नहीं है? इस बीच CBI ने हॉर्स ट्रेडिंग मामले में कांग्रेस के दो विधायकों वीरेंद्र सिंह और भंवर लाल शर्मा को नोटिस जारी किया है। 

 राज्यपाल कलराज मिश्र ने पत्र में कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने संवैधानिक अनुरोध और उस पर होने वाले निर्णय को राजनीतिक रंग देने का प्रयास किया। इससे पहले कि मैं विधानसभा सत्र के संबंध में विशेषज्ञों से चर्चा करूं आपने बयान दे दिया कि राजभवन का घेराव होता है तो यह आपकी जिम्मेदारी नहीं है। यदि आप और आपका गृह मंत्रालय राज्यपाल की रक्षा नहीं कर सकते हैं तो राज्य में कानून और व्यवस्था को लेकर क्या होगा? राज्यपाल की सुरक्षा के लिए किस एजेंसी से संपर्क किया जाना चाहिए? मैंने कभी किसी मुख्यमंत्री का ऐसा कहते नहीं सुना है। राजभवन में घेराव क्या गलत परम्परा की शुरुआत नहीं है, जहां विधायक राजभवन में आकर विरोध करते हैं।

इससे पहले शुक्रवार सुबह बर्खास्त उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट सहित कांग्रेस के 19 बागी विधायकों की याचिका पर राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पीकर के अयोग्यता नोटिस पर स्टे बरकरार रखा। इसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्यपाल कलराज मिश्र से मिलने का समय माँगा। CM गहलोत के साथ  साथी कांग्रेस विधायकों ने राजभवन जा कर शक्ति प्रदर्शन किया और राज्यपाल से विधानसभा सत्र बुलाने की माँग की है। मीडिया से चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि राज्यपाल दबाव के चलते सत्र बुलाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं। यह पूरा भाजपा का षड्यंत्र है, जिस तरह से पहले कर्नाटक और मध्य प्रदेश में किया गया, उसी तरह का षड्यंत्र राजस्थान में रचा जा रहा है। लोकतंत्र खतरे में है। ऐसा मंजर आज से पहले कभी नहीं देखा गया। हम राज्यपाल से आग्रह करेंगे कि वे दबाव में नहीं आएँ। आपका पद संवैधानिक है। अपनी शपथ के आधार पर बिना पक्षपात का निर्णय लें। अन्यथा जनता ने राजभवन का घेराव कर दिया तो हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी।

राज्यपाल से सत्र बुलाने की मांग

राज्यपाल ने कोरोना का हवाला देकर कहा कि अभी सत्र बुलाना ठीक नहीं होगा। इसके बाद CM अशोक गहलोत कांग्रेस विधायकों को ले कर गवर्नर से मुलाकात करने राजभवन पहुंचे। गहलोत सारे विधायकों की परेड करवा कर बहुमत की संख्या साबित करना चाहते हैं। सभी विधायक सामूहिक रूप से राज्यपाल से मांग कर रहे हैं कि वे विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की अनुमति दें। मुख्यमंत्री ने कहा कि स्पष्ट बहुमत उनके पास है। ऐसे में सत्र बुलाए जाने पर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

होटल फेयरमोंट में कांग्रेस विधायक दल की बैठक 

राजभवन जाने के पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके समर्थक विधायकों की होटल फेयरमोंट में बैठक हुई। बैठक में दिल्ली से पहुंचे वरिष्ठ नेता अजय माकन भी उपस्थित थे। यहाँ CM गहलोत ने सम्बोधित किया और विधायकों ने एकजुटता प्रदर्शित की।

विधानसभा अध्यक्ष द्वारा 4 माह बाद भी सुनवाई नहीं करने को चुनौती

CM अशोक गहलोत ने पिछले साल 19 सितम्बर को बीएसपी के सभी छह विधायकों का कांग्रेस में विलय किया था। इस पर BJP विधायक मदन दिलावर ने इस विलय के ख़िलाफ स्पीकर डॉ सीपी जोशी को शिकायत की थी। अब दिलावर ने इस मामले में करीब चार महीने बाद तक सुनवाई नहीं करने की शिकायत के साथ हाई कोर्ट में अपील की है। यह मामला 27 जुलाई को राजस्थान हाई कोर्ट में जज महेंद्र कुमार गोयल की बैंच में सूचीबद्ध हुआ है।

केंद्र को भी पक्ष बनाने को लेकर याचिका स्वीकार 

आज हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि वह सुनवाई जारी रखेगा। पायलट खेमे की ओर से कोर्ट में मामले केंद्र को भी पक्ष बनाने को लेकर याचिका दाखिल की गई थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। कोर्ट ने कहा है कि वो इस मामले केंद्र का पक्ष भी सुनेगा। इससे पहले अयोग्यता नोटिस पर 21 जुलाई को हाईकोर्ट ने अपना फैसला 24 जुलाई तक सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने स्पीकर सीपी जोशी को कहा था कि वे तब तक इन विधायकों के खिलाफ कोई कार्यवाही न करें। स्पीकर जोशी ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इस पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान स्पीकर की याचिका पर सुनवाई की थी। कोर्ट ने हाईकोर्ट के बागी विधायकों पर कार्रवाई न करने के आदेश देने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।सुप्रीम कोर्ट अब राजस्थान विधानसभा स्पीकर की याचिका पर 27 जुलाई को सुनवाई करेगा।  

क्या है पूरा विवाद 

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच बहुत पहले से ही खींचतान चली आ रही थी। बताया जा रहा है कि 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही पायलट के मन में मुख्यमंत्री बनने की चाहत थी लेकिन उनके अरमान पूरे नहीं हुए। पायलट ने खुद कई बार इस बात के संकेत दिए। हाल ही में उन्होंने कहा था कि 2018 में पार्टी को चुनाव जिताने में उनकी मुख्य भूमिका रही थी और वे मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। पायलट ने अपनी इसी मांग को लेकर कुछ दिन पहले गहलोत के खिलाफ बागी तेवर अपना लिए और दिल्ली पहुंच गए। 

पायलट ने दावा किया कि उनके साथ तीस विधायक हैं। कांग्रेस ने इस अनुशासनहीनता की सजा देते हुए पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया। साथ में पार्टी ने मामले को सुलझाने के लिए पायलट और बागी विधायकों को दो बार विधायक दल की मीटिंग में बुलाया। पार्टी ने बार-बार कहा कि पायलट के लिए दरवाजे खुले हैं। लेकिन पायलट और बागी विधायक नहीं आए तो पार्टी ने व्हिप उल्लंघन का दोषी मानते हुए उन्हें अयोग्यता का नोटिस दे दिया। पायलट गुट ने इसी नोटिस के खिलाफ राजस्थान हाई कोर्ट में अपील की। 

राजस्थान हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि स्पीकर बागी विधायकों पर 24 जुलाई तक कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। इसके खिलाफ स्पीकर ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका डालते हुए कहा कि कोर्ट स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि स्पीकर को विधायकों को अयोग्य ठहराने का अधिकार है और कोर्ट तब ही कोई फैसला ले सकता है जब स्पीकर ने कारण बताओ नोटिस पर कोई निर्णय ले लिया हो। 

इस बीच ईडी ने अशोक गहलोत के भाई के यहां छापे मारे। यह छापे 2007 के एक फर्टिलाइजर घोटाले के संबंध में मारे गए, जिसमें अशोक गहलोत के भाई अग्रसेन गहलोत पहले ही 11 लाख रुपये पेनल्टी जमा कर चुके हैं और कोर्ट भी इस मामले में स्टे लगा चुका है। कांग्रेस ने इसके जवाब में कहा कि केंद्र सरकार निरंकुश हो गई है और पार्टी इस रेडराज से डरने वाली नहीं है। 

बहरहाल, पायलट कैंप का कहना है कि व्हिप विधानसभा के बाहर लागू नहीं होती इसलिए विधायकों को दिए गए नोटिस असंवैधानिक हैं। वहीं स्पीकर की दलील है कि विधायकों को अनुशासनहीनता के लिए कारण बताओ नोटिस भेजने का पूरा अधिकार स्पीकर के पास है।