Vinod Dua : SC ने सीलबंद लिफाफे में मांगी जांच रिपोर्ट

Supreme Court ने कहा - विनोद दुआ को पुलिस के सवालों का जवाब देने की जरूरत नहीं, कोर्ट संतुष्‍ट नहीं हुई तो खारिज होगी FIR

Publish: Jul 08, 2020, 04:05 AM IST

वरिष्‍ठ पत्रकार विनोद दुआ के यूट्यूब कार्यक्रम को लेकर हिमाचल प्रदेश में दर्ज राजद्रोह के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश पुलिस से सीलबंद लिफाफे में जांच रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 15 जुलाई तय करते हुए कहा है कि यदि वह पत्रकार विनोद दुआ के तर्क से संतुष्‍ट हुई तो जांच को तुरंत खत्‍म कर दिया जाएगा। कोर्ट ने पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण की अवधि 15 जुलाई तक के लिए बढ़ा दी।

न्यायमूर्ति उदय यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने वीडियो कांफ्रेन्सिग के माध्यम से इस मामले की सुनवाई की और मामले में विनोद दुआ को गिरफ्तार करने से हिमाचल प्रदेश की पुलिस को रोक दिया। पीठ इस मामले में 15 जुलाई को अगली सुनवाई करेगी।
सुनवाई के दौरान हिमाचल प्रदेश पुलिस की पैरवी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रिकॉर्ड जमा करने के लिए और समय मांगा। इस पर बेंच ने पुलिस को आदेश दिया कि जांच की सभी जानकारियां बंद लिफाफे में जमा की जाएं और बेंच इस मामले को अगली सुनवाई के बाद आगे नहीं खींचेंगी। बेंच ने कहा कि अगर उसे लगा कि याचिकाकर्ता की तरफ से दिए गए तर्क वाजिब हैं तो जांच को तुरंत खत्म कर दिया जाएगा।

वहीं विनोद दुआ की पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने बेंच से कहा कि पुलिस द्वारा उनके मुवक्किल को भेजी गई प्रश्नावली और कुछ नहीं बल्कि उत्पीड़न है। इसपर बेंच ने कहा कि विनोद दुआ को इन सवालों का जवाब देने की जरूरत नहीं है।

गौरतलब है कि बीजेपी के एक स्थानीय नेता श्याम की शिकायत पर 6 मई को शिमला के कुमारसेन थाने में विनोद दुआ के खिलाफ देशद्रोह, मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित करने और सार्वजनिक शरारत करने जैसे आरोपों में भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। श्याम का आरोप है कि विनोद दुआ ने अपने कार्यक्रम में प्रधानमंत्री पर वोट हासिल करने के लिए मौत और आतंकी हमलों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था।

वहीं अपनी याचिका में विनोद दुआ ने अपने वीडियो को लॉकडाउन को लागू करने में भारत सरकार की विफलता का आलोचनात्मक विश्लेषण बताया है। विनोद दुआ का कहना है कि हाल ही में एक ट्रेंड सा चल पड़ा है जिसमें राज्य सरकारें जब किसी प्रोग्राम को अपनी विचारधारा से मिलता जुलता नहीं पाती हैं तो पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा देती हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा केवल पत्रकारों का डराने और उनका उत्पीड़न करने के लिए किया जाता है ताकि वे सरकारों के मन मुताबिक काम करने लगें।

इस मामले में पुलिस की जांच में दुआ डिजिटल माध्यम से शामिल हुए थे। पुलिस ने उन्हें पूछताछ के लिए हिमाचल प्रदेश बुलाया था लेकिन दुआ ने अपने स्वास्थ्य और कोविड 19 प्रोटोकॉल्स का हवाला देकर यात्रा करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद पुलिस ने उन्हें प्रश्नावली भेजी थी।