यह बड़ा कूटनीतिक झटका है, G7 समिट में भारत को न्यौता नहीं मिलने पर बोले जयराम रमेश

जयराम रमेश ने कहा कि अब विश्वगुरु पहली बार छह साल में G7 सम्मेलन में नहीं जाएंगे, इसके पीछे जो भी कारण बताया जाए लेकिन यह एक और बड़ा कूटनीतिक फेलियर है।

Updated: Jun 03, 2025, 07:29 PM IST

नई दिल्ली। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कनाडा में होने वाले G7 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनुपस्थिति पर केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने इसे एक बड़ा कूटनीतिक झटका बताया और 2014 से पहले के G8 सम्मेलनों में डॉ. मनमोहन सिंह की सक्रिय भागीदारी का जिक्र करते हुए वर्तमान सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाए हैं।

जयराम रमेश ने भारत-पाकिस्तान मुद्दे पर अमेरिकी मध्यस्थता की अनुमति को भी दशकों पुरानी नीति से भटकने वाला बताया है। उन्होंने एक्स पोस्ट के माध्यम से कहा कि 15 जून 2025 को कनाडा में होने जा रहे इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में इस बार भारतीय प्रधानमंत्री की गैरमौजूदगी एक बड़ा कूटनीतिक झटका है। इस बार के समिट में अमेरिका और फ्रांस के राष्ट्रपतियों के साथ-साथ ब्रिटेन, जापान, इटली, कनाडा के प्रधानमंत्रियों और जर्मनी के चांसलर भाग ले रहे हैं। साथ ही ब्राजील, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, यूक्रेन और ऑस्ट्रेलिया के प्रमुखों को भी आमंत्रित किया गया है।

जयराम रमेश ने कहा कि 2014 से पहले G7 वास्तव में G8 हुआ करता था, जिसमें रूस भी शामिल था। उस समय डॉ. मनमोहन सिंह जी को नियमित रूप से आमंत्रित किया जाता था और उनकी बातों को गंभीरता से सुना जाता था। साल 2007 के जर्मनी समिट में ही सिंह-मर्केल फॉर्मूला सामने आया था, जिसने जलवायु परिवर्तन वार्ताओं को दिशा दी थी।

उन्होंने आगे कहा कि मोदी सरकार की विदेश नीति बार-बार असफल हो रही है। हाल ही में भारत-पाकिस्तान मुद्दे पर अमेरिकी मध्यस्थता की अनुमति देना दशकों पुरानी भारतीय नीति को पलट दिया गया और अमेरिकी अधिकारियों को यह छूट दे दी कि वे खुलेआम किसी ‘न्यूट्रल साइट’ पर बातचीत जारी रखने की अपील करें। जयराम रमेश ने तंज कसते हुए कहा कि अब विश्वगुरु पहली बार छह साल में G7 सम्मेलन में नहीं जाएंगे, इसके पीछे जो भी कारण बताया जाए लेकिन यह एक और बड़ा कूटनीतिक फेलियर है।

बता दें कि G7 शिखर सम्मेलन 2025, 15 से 17 जून तक कनाडा के अल्बर्टा प्रांत के कानानास्किस में होगा। इस बार सम्मेलन की अगुवाई कनाडा कर रहा है और वो इस बार का अध्यक्ष है। इस सम्मेलन में दुनिया की सात सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के नेता, साथ ही यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि भी भाग लेंगे।

G7 की अध्यक्षता एक घूमती हुई व्यवस्था है, जिसमें हर साल एक सदस्य देश बारी-बारी से इसका नेतृत्व करता है। जिस देश के पास G7 की अध्यक्षता होती है, उसके पास कुछ खास अधिकार और ज़िम्मेदारियां होती हैं। अध्यक्ष देश यह तय करता है कि किन गैर-G7 देशों या संगठनों को आमंत्रित करना है और किसे नहीं करना है।