त्रिपुरा हिंसा पर सोशल मीडिया पोस्ट लिखना पड़ा भारी, वकीलों पत्रकारों समेत 101 लोगों पर मुकदमा दर्ज
बीजेपी शासित त्रिपुरा में भड़की हिंसा के खिलाफ पुलिस ने 68 ट्विटर यूजर्स, 31 फेसबुक यूजर्स और 2 यूट्यूब अकाउंट्स के खिलाफ यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज किया है। इसके अलावा आइपीसी की धारा 153A, 153B, 469, 471, 503, 504, 120B जैसी गैरजमानती धाराएं भी लगाई गई हैं।

नई दिल्ली। बीजेपी शासित त्रिपुरा में फैली सांप्रदायिक हिंसा को लेकर बोलना लोगों को भारी पड़ रहा है। त्रिपुरा पुलिस ने पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों पर गैरकानूनी गतिविधियों (UAPA) के तहत मुकदमा दर्ज किया है। इसके साथ ही कई अन्य गंभीर धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। त्रिपुरा पुलिस ने ट्वीट, फेसबुक पोस्ट और यूट्यूब वीडियो को आधार बनाकर गंभीर धाराओं में मुकदमा किया है।
एफआईआर रिपोर्ट के मुताबिक अगरतला वेस्ट पुलिस स्टेशन के सब इंस्पेक्टर तपन चंद्र दास ने इन मामलों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज की है। इसमें उल्लेखित है कि साइबर क्राइम यूनिट से जानकारी मिली है की कुछ लोग और संस्थान त्रिपुरा हिंसा से जुड़े झूठे तथ्य साझा कर रहे हैं। पुलिस का आरोप है कि ये समाज में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए किया जा रहा है। इस संबंध में 68 ट्विटर यूजर्स, 31 फेसबुक यूजर्स और 2 यूट्यूब अकाउंट्स के खिलाफ यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। UAPA के अलावा आइपीसी की धारा 153A, 153B, 469, 471, 503, 504, 120B जैसी गैर जमानती धाराएं भी लगाई गई हैं।
दरअसल, बीते दिनों बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हुई हिंसा के विरोध में 26 अक्टूबर को विश्व हिंदू परिषद ने एक रैली का आयोजन किया था। विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने इस दौरान कथित रूप से जमकर उपद्रव मचाया गया। उन्होंने मस्जिद में तोड़फोड़ की और कई मुसलमानों की दुकानें जला दी गई। इसके बाद कई जगहों से दिल दहलाने वाली तस्वीरें सामने आई।
त्रिपुरा हिंसा के बाद सोशल मीडिया यूजर्स सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार की आलोचना करने लगे। पत्रकार श्याम मीरा सिंह ने लिखा, 'Tripura is Burning' यानी त्रिपुरा जल रहा है। इस तरह अन्य लोगों ने भी इस घटना की निंदा की। सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकीलों की टीम इस घटना की तह तक पहुंचने के लिए त्रिपुरा पहुंची। फैक्ट फाइंडिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 26 अक्टूबर की रैली के तीन दिन पहले से लोगों को उकसाना शुरू कर दिया गया था।
फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के मुताबिक हिंदू धर्म के लोगों को लगातार भड़काया गया नतीजतन 26 अक्टूबर को 50 से अधिक जगहों पर तकरीबन 10 हजार लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई। अनियंत्रित भीड़ ने दर्जनों मस्जिदों और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के घरों को निशाना बनाया। रिपोर्ट सामने आने के बाद त्रिपुरा पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के खिलाफ भी गंभीर धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया। पुलिस ने टीम मेंबर पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के मुकेश और नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स के अंसार इंदौरी को नोटिस भी भेजा है।
मामले पर सुप्रीम कोर्ट के वकील व फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य रहे एहतेशाम हाशमी ने हम समवेत से बातचीत के दौरान कहा, 'त्रिपुरा सरकार शर्मनाक तरीके से लोकतांत्रिक आवाज़ों का दमन करने पर उतारू हो गई है। आज सुप्रीम कोर्ट के वकीलों तक को नहीं छोड़ा जा रहा है। हम न्याय के पुजारी हैं। यदि हमें इस तरह से निशाना बनाया जाएगा तो भविष्य में लोगों के हक और न्याय की लड़ाई कौन लड़ेगा।' हाशमी ने कहा कि एफआईआर के खिलाफ वे और उनके साथी न्यायालय में अपनी बात रखेंगे। उन्होंने भारतीय न्यायप्रणाली पर भरोसा जताते हुए कहा है कि न्यायालय में सत्य की जीत होगी।
मामले पर पत्रकार श्याम मीरा सिंह ने कहा कि त्रिपुरा की BJP सरकार ने मेरे तीन शब्दों को ही आधार बनाकर UAPA लगा दिया है। पहली बार में इस पर हंसी आती है, दूसरी बार में इस बात पर लज्जा आती है, तीसरी बार सोचने पर ग़ुस्सा आता है। ग़ुस्सा इसलिए क्योंकि ये मुल्क अगर उनका है तो मेरा भी. मेरे जैसे तमाम पढ़ने-लिखने, सोचने और बोलने वालों का भी। जो इस मुल्क से मोहब्बत करते हैं, जो इसकी तहज़ीब, इसकी इंसानियत को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।'
My statement on the charges of UAPA by BJP government of Tripura. pic.twitter.com/oEiHMQ61Nh
— Shyam Meera Singh (@ShyamMeeraSingh) November 6, 2021
उन्होंने बयान जारी कर कहा है कि यह किसी ख़ास समाज को बचाने की लड़ाई नहीं है बल्कि अपने खुद के अधिकार, घर, परिवार, खेत खलिहानों, पेड़ों, बगीचों, चौराहों को बचाने की लड़ाई लड़ रहे है। अगर इंसानियत, संविधान, लोकतंत्र और मोहब्बत की बात करना जुर्म है तो ये जुर्म बार बार करने को दिल करता है। इंसानियत की बात रखना जुर्म है तो ये जुर्म मैं बार बार करूँगा। मुझ पर लगाए निहायत झूठे आरोपों को मैं सहर्ष स्वीकारूँगा। अपने बचाव में न कोई वकील रखूँगा, न कोई अपील करूँगा और माफ़ी तो कभी नहीं मांगूंगा।'