दफ्तर दरबारी: अफसरों को शहीद कर शिवराज सिंह से आगे सीएम मोहन यादव

MP NEWS: मुख्‍यमंत्री मोहन यादव इनदिनों अपनी लाइन बड़ी खींचने में लगे हुए हैं। वे मध्‍यप्रदेश में सबसे लंबे समय तक मुख्‍यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान के साथ बेहतर छवि की रेस में हैं। इस रेस में आगे निकलने के लिए क्‍या मोहन यादव ने अफसरों को मोहरा बना लिया है?

Updated: Dec 31, 2023, 08:33 AM IST

गुना में बस दुर्घटना ने परिवहन विभाग में जारी लापरवाही की पोल खोल कर रखी है। आरोन जा रही एक यात्री बस की डंपर से आमने-सामने की टक्कर के बाद बस में आग लगने ये 13 यात्री जिंदा जल गए हैं। इस हादसे में बिना वैध दस्तावेजों के बस संचालन मामले में आरटीओ की लापरवाही सामने आई। जिसके बाद गुना आरटीओ रवि बारेलिया को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। मौके पर फायर ब्रिगेड देरी से पहुंचने को लेकर गुना सीएमओ बीडी कतरोलिया को भी निलंबित किया गया। मुख्‍यमंत्री मोहन यादव ने सख्‍ती दिखाते हुए कलेक्टर, एसपी के साथ ट्रांसपोर्ट कमिश्नर व विभाग के सबसे बड़े अधिकारी परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव को भी बदल डाला। असल में मुख्‍यमंत्री यादव ने पूरे घर का बदल डालूंगा के तर्ज पर ये बदलाव अपनी सख्‍त छवि बनाने के लिए किया। 

गुना जैसे ही दो हादसे वर्ष 2011 में सैंधवा और 2015 में पन्‍ना में भी हुए थे जिनमें आग से 70 से अधिक बस यात्रियों की मौत हुई थी। इन हादसों के बाद तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जांच के आदेश तो दिए मगर परिवहन विभाग में भ्रष्‍टाचार, लापरवाही जैसे कई आरोपों के बाद भी एक साथ ऊपर से नीचे तक सभी अधिकारियों को बदलने का निर्णय नहीं लिया गया। लेकिन हादसे के बाद जब मुख्‍यमंत्री मोहन यादव गुना पहुंचे तब किसी ने यह नहीं सोचा था कि वे एक साथ इतने अधिकारियों को हटा देंगे।

मुख्‍यमंत्री ने दो मैदानी अधिकारियों को निलंबित किया तो सवाल उठे कि ऊपर बैठे जिम्‍मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई कब होगी। कुछ समय में कलेक्‍टर, एसपी से लेकर परिवहन आयुक्‍त और विभाग के प्रमुख सचिव को हटा दिया। इस कदम की सराहना करते हुए कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सीएम ने बताया दिया कि सरकार कैसे चलाई जाती है। मुख्‍यमंत्री मोहन यादव के इस फैसले की तुलना यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के आदेश जैसी करते इसे प्रचारित किया गया। 

असल में, ऐसे प्रचार के जरिए मुख्‍यमंत्री मोहन यादव को शिवराज सिंह चौहान की तुलना में बेहतर निर्णय लेने वाला मुखिया बताया जा रहा है। शिवराज सिंह चौहान ने भी मंच से कर्मचारियों को हटाने और निलंबित करने की घोषणाएं की थीं लेकिन ऐसी कार्रवाई कभी नहीं की जैसी मोहन यादव ने की है। इस तरह, अफसरों की ‘शहादत’ से मुख्‍यमंत्री मोहन यादव अपने पूर्ववर्ती मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से रेस में आगे खड़े नजर आ रहे है। 

फिर वही डर मंत्रियों पर भारी पड़ेंगे अफसर

प्रदेश में बीजेपी की ही सरकार है, बस मुख्‍यमंत्री बदले हैं। मुख्‍यमंत्री मोहन यादव और दो उपमुख्‍यमंत्री की शपथ के बाद मंत्रियों की शपथ में दो सप्‍ताह लग गए। फिर मंत्रियों में विभागों के बंटवारे में समय लगा। शनिवार देर शाम मंत्रियों को विभागों की जिम्‍मेदारी दी गई लेकिन उसके पहले ही मुख्‍यमंत्री मोहन यादव ने सभी बड़े पदों को संभाल रहे आईएएस और आईपीएस को मैदान में उतार दिया है। 

मुख्‍यमंत्री के आदेश के बाद अपर मुख्य सचिव (ACS) और प्रमुख सचिव स्तर के आईएएस अधिकारियों को 10 संभागों की जिम्मेदारी दी गई है। इन 10 संभागों में प्रदेश के 55 जिले आते हैं। ये अधिकारी संभागीय बैठकों तैयारी करेंगे तथा बैठक में सीएम द्वारा दिए गए निर्देशों की निगरानी करेंगे। इसके साथ ही कानून व्‍यवस्‍था की दृष्टि से अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर के आईपीएस अधिकारियों को भी 10 संभागों की जिम्मेदारी दी गई है। 

ऐसे प्रयोग शिवराज सिंह चौहान अपने कार्यकाल में कई बार कर चुके हैं। इधर, कार्यकर्ताओं में यह आशंका जन्‍म ले रही है कि मंत्रियों के पहले अफसरों का मैदान में जाना कहीं फिर से अफसरशाही के हावी होने का कारण न बन जाए। मैदान में यह भय गहरा रहा है कि अफसरों का शासन होगा तो जनप्रतिनिधियों की बातें अनसुनी रह जाएगी। 

बीआरटीएस: बंदूक अफसरों की ओर, निशाने पर अपने ही नेता 

मुख्‍यमंत्री मोहन यादव की अध्‍यक्षता में भोपाल के बीआरटीएस को हटाने का फैसला क्‍या हुआ, इंदौर और भोपाल में मोर्चे खुल गए। इंदौर में बीजेपी नेता सहित जन प्रतिनिधि बीआरटीएस को बचाने के लिए सक्रिय हो गए तो भोपाल में बीआरटीएस का दोषी साबित करने की मुहिम शुरू हो गई। इंदौर में बीआरटीएस की पैरवी करते हुए इसे लोक परिवहन का सबसे महत्‍वपूर्ण आयाम बताया जा रहा है। जबकि भोपाल में बीआरटीएस का दोषी ढ़ूंढने की कोशिशें हो रही हैं। 

बीआरटीएस यानी बस रेपिड ट्रांसपोर्ट सिस्‍टम की पैरवी यह कह कर की गई थी कि इससे सार्वजनिक परिवहन आसान और तेज हो जाएगा। सन 2013 में इसे बनाया गया था और सन 2023 में हटाया जा रहा है। इसके निर्माण में 360 करोड रुपए खर्च हुए जबकि हटाने में डेढ़ सौ करोड रुपए खर्च होने का आकलन है। आरोप है कि यह कॉरिडोर अपनी गलत डिजाइन और योजना के कारण विफल हुआ। बीआरटीएस के कारण कई जगह जाम की स्थिति बनने लगी। इन तर्कों के आधार पर मुख्‍यमंत्री मोहन यादव की अध्‍यक्षता में हुई बैठक में बीआरटीएस को हटाने का निर्णय हुआ। इस फैसले का स्‍वागत करते हुए बीजेपी नेताओं ने ही सवाल उठा दिए।

तत्‍कालीन विधायक व पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्‍ता तथा विधायक ध्रुवनारायण सिंह ने बयान में कहा कि उन्‍होंने इस प्रस्‍ताव का विरोध किया था। तत्‍कालीन महापौर कांग्रेस नेता सुनील सूद ने कहा कि एमआईसी को बिना बताए बीआरटीएस का प्रस्‍ताव बहुमत के आधार पर बीजेपी ने पास करवाया। सवाल उठ रहे हैं कि जब तत्‍कालीन बीजेपी विधायक और कांग्रेस महापौर ही विरोध कर रहे थे तो बीआरटीएस की योजना किसने बनाई और यह विफल क्‍यों हुई? बीआरटीएस की गलत योजना के लिए तत्‍कालीन निगम आयुक्‍त मनीष सिंह, आईएएस विवेक अग्रवाल सहित अन्‍य अफसरों को दोषी बताया जा रहा है। आरोपों की बंदूक इन अफसरों की ओर जरूर है लेकिन लेकिन निशाने पर तत्कालीन नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही हैं क्‍योंकि जिन अफसरों पर आरोप हैं वे इन नेताओं के पसंदीदा अफसर हैं। जाहिर है, जब अफसरों की मनमर्जी की सवाल उठेंगे तो निशाना तो नेताओं की ओर ही होगा। 

नए साल में खुल जाएगी अफसरों की लॉटरी

मंत्रियों को विभागों का बंटवारा हो चुका है। अब प्रदेश में बड़ी प्रशासनिक सर्जरी होने जा रही है। आकलन है कि लोकसभा चुनाव की दृष्टि से दर्जनों आईएएस और आईपीएस अफसरों के तबादले किए जाएंगे। मंत्रियों की मंशा के अनुसार प्रमुख सचिव और विभागाध्‍यक्षों की पदस्‍थापना होगी। 

इस आकलन के बाद अब तक मैदानी पदस्‍थापना से वंचित और सीएस इकबाल सिंह बैंस के कोपभाजक रहे आईएएस अफसरों की उम्‍मीद नए साल से जुड़ गई है। असल में 6 जनवरी से लोकसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची का प्रारूप प्रकाशन होना है। इस दिन बाद से राज्य सरकार कलेक्टर सहित मतदाता सूची के कार्य में संलग्न अधिकारियों-कर्मचारियों के तबादले नहीं कर पाएगी। अगर यदि किसी अफसर का तबादला करना होगा तो पहले आयोग की अनुमति लेनी होगी।

इसके चलते संभावना जताई जा रही है कि पांच जनवरी तक सरकार अपने हिसाब से कई अफसरों और जिलों के कलेक्टर-एसपी, जिला पंचायत सीईओ की जमावट कर को बदल सकती है। प्रदेश में कई आईएएस अफसर हैं जो बीते कई सालों से कलेक्‍टर सहित कोई मैदानी पोस्टिंग नहीं पा सके हैं। ऐसे अधिकारी मैदानी पोस्टिंग पाने के लिए सभी संपर्कों को आजमा रहे हैं ताकि उदासी भरे दिन बीते और उन्‍हें आंगन में भी पद की रोशनी पहुंचे।