दफ्तर दरबारी: 74 सजाओं के वाले एसआई को गोली मारने तक मिलती रही छूट 

MP News: एमपी पुलिस में कुछ भी संभव है। रसूख का इस्‍तेमाल ऐसा कि टीआई एसपी की भी नहीं सुनते और मौका पड़े तो मनचाही पोस्टिंग के लिए सिपाही अपने अफसरों पर मंत्रियों से दबाव डलवा दें। ऐसा ही मामला रीवा का हुआ। पूरा पुलिस महकमा एक एसआई के आगे इतना असहाय हो गया कि 74 अपराधों के बाद भी उसके खिलाफ स्‍थाई एक्‍शन नहीं लिया गया।

Updated: Jul 29, 2023, 03:37 PM IST

घायल टीआई और आरोपी एसआई बीआर सिंह
घायल टीआई और आरोपी एसआई बीआर सिंह

सरकार का ये कैसा कानून, कैसी यह मजबूरी?

साल 1956 में एक फिल्‍म आई थी, सीआईडी। इसके लिए मजरूह सुल्‍तानपुरी ने एक गाना लिखा था, ‘ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां, जरा हट के, जरा बच के ये है बॉम्बे मेरी जान।’  इस गाने को एमपी पुलिस के लिए कहना हो तो इसमें कुछ यूं बदलाव करने होंगे, ‘जरा हटके, जरा बचके, यहां कुछ संभव, ये एमपी पुलिस है मेरी जान।’ 

यह गाना इसलिए कि एमपी पुलिस में कुछ भी संभव है। कुशल सिपाहियों से अफसर अपने घरों में काम करवाते हैं तो किसी टीआई का तबादला करने के लिए मुख्‍यमंत्री के आदेश को भी तवज्‍जो नहीं दी जाती। रसूख का इस्‍तेमाल ऐसा कि टीआई एसपी की भी नहीं सुनते और मौका पड़े तो मनचाही पोस्टिंग के लिए सिपाही मंत्रियों से सिफारिश करवा दें। ऐसा ही मामला रीवा का हुआ। रीवा में एक एसआई का ऐसा जलवा कि 24 साल की नौकरी में 69 छोटी और 5 बड़ी सजाएं दी गई लेकिन एसआई की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उसका रूतबा वैसा ही बना रहा। एसआई बीआर सिंह को नशे की ऐसी आदतें की शिकायकों पर विभागीय जांच जारी है। अपनी आदतों से बाज नहीं आए तो तरक्‍की रूक गई। सीनियर होते हुए भी एसआई ही बने हुए रहे।

सात दिन पहले ऐसी एक शिकायत पर लाइन अटैच किया तो गुस्‍से में टीआई हितेंद्रनाथ शर्मा के चेंबर में पहुंच गए। जब टीआई ने कहा कि लाइन अटैच करना एसपी की व्‍यवस्‍था है तो तमतमाए एसआई बीआर सिंह ने टीआई को गोली मार दी। अब टीआई सुरक्षित है और एसआई पद गंवा चुका है। एसआई बीआर सिंह करीब दस साल पहले नईगढ़ी थाना प्रभारी था जब जांच के लिए आए एसडीओपी पर सर्विस पिस्टल तान दी थी। एसडीओपी ने दौड़ कर जान बचाई थी।

सवाल यह है कि 74 सजा पाए एसआई को महत्‍वपूर्ण मामलों की जांच जैसे कार्य क्‍यों सौंपे गए? पुलिस महकमे की ऐसी क्‍या मजबूरी थी कि आदतन अपराधी की तरह व्‍यवहार करने वाले एसआई को मुख्‍य धारा में रखा गया जबकि अपने सीनियर अफसरों से कई बार दुर्व्‍यवहार कर चुका था? यह सबकुछ राजनीतिक प्रश्रय के बिना संभव नहीं है। यह अपने आप में अनूठा मामला नहीं है। ऐसे कई मामले प्रदेश में हैं जहां रसूख के दम पर ऐसे कई पुलिस कर्मचारी  महत्‍वपूर्ण पदों पर बने हुए हैं और विभाग उन्‍हें 74 सजाओं के बाद भी माफ कर रहा है।  

लोकायुक्‍त की सक्रियता ने बढ़ाई ब्‍यूरोक्रेट्स की टेंशन 

पिछले दिनों आईएएस के भ्रष्‍टाचार के मामलों पर सख्‍त रूख अपनाने वाले एमपी लोकायुक्‍त ने कुछ महत्‍वपूर्ण फाइलों पर काम शुरू कर दिया है। मतलब  मुख्‍य सचिव सहित कई वरिष्‍ठ आईएएस के मामलों की फाइलें ठंडे बस्‍ते से बाहर आ गई हैं औेर इन पर कभी भी कार्रवाई शुरू हो सकती है। जब से मुख्‍य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने खुद लोकायुक्‍त कार्यालय जा कर लोकायुक्‍त से मुलाकात की है, प्रदेश प्रशासनिक गलियारों में यह चर्चा आम हो गई है। केवल मुख्‍यसचिव नहीं बल्कि कई वरिष्‍ठ आईएएस भी लोकायुक्‍त के मूड की टोह लेने में लगे हैं। प्रदेश के इन ब्‍यूरोक्रेट्स की नजर सरकार के कदम पर भी है। 

अफसरों में फैले इस भय का कारण भी है। पिछले दिनों चार आईएएस के खिलाफ लोकायुक्‍त ने न केवल जांच शुरू की बल्कि महाकाल लोक मामले में भी अफसरों को पेशी पर बुला लिया था। पूर्व मुख्‍यसचिव एम. गोपाल रेड्डी, एसआर मोहंती, एसीएस राधेश्‍याम जुलानिया जैसे अपने समय के कद्दावर अफसर भी जांच एजेंसियों की कार्रवाई झेल रहे हैं। नवंबर 2018 के आंकड़े बताते हैं कि तब तक लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार के 321 मामलों में सरकार से अनुशासनात्मक कार्रवाई या विभागीय जांच की अनुशंसा की थी लेकिन इसमें से 170 मामलों में संबंधित सरकारी विभाग चुप्पी साधकर बैठ गए। 38 अनुशंसाएं तो 10 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं। 

दूसरा कारण है कि लोकायुक्‍त जस्टिस नरेश गुप्‍ता का छह वर्ष का कार्यकाल अक्‍टूबर 2023 में समाप्‍त हो रहा है। सीएस इकबाल सिंह को भी दो बार एक्‍सटेंशन मिल चुका है। वे भी नवंबर में रिटायर्ड हो जाएंगे। सीएस और अन्‍य अफसरों को यह भय है कि जाते-जाते लोकायुक्‍त यदि उनके खिलाफ चल रहे मामलों को आगे बढ़ा गए तो दिक्‍कतें खड़ी हो सकती हैं। अभी तो कुछ मामलों में सरकार ने अभियोजन की अनुमति नहीं दी है लेकिन यदि सरकार ने भी भ्रष्‍टाचार के चुनावी मुद्दा बनने पर सख्‍त रूख दिखाया तो अफसरों पर कार्रवाई होना तय है। इसलिए सभी की निगाहें लोकायुक्‍त के कदम और सरकार के व्‍यवहार पर टिकी हैं। 

शिवराज सिंह चौहान की रेवडि़यों से घबराए आईएएस 

मिशन 2023 के लिए बीजेपी कोई कसर शेष नहीं रख रही है। गृहमंत्री अमित शाह खुद कमान संभाल चुके हैं तो मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान डबल इंजन की सरकार के नारे के साथ विकास पर्व मनाने निकाल चुके हैं। मतदाताओं को लुभाने के लिए रोज हर किसी नई योजना और राहत का ऐलान कर रहे हसरकार लाड़ली बहना योजना को गेमचेंजर मान रही है। यह कारण है कि वित्‍त विभाग की नकारात्‍मक टिप्‍पणी के बाद भी मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस योजना को प्रस्‍तुत किया।

पहले आकलन किया गया था कि एक करोड़ महिलाओं को एक हजार रुपए प्रतिमाह दिया जाएगा। अब यह संख्‍या बढ़ कर सवा करोड़ पहुंच गई। इस बीच कांग्रेस की नारी सम्‍मान योजना का मुकाबला करने के लिए मुख्‍यमंत्री चौहान ने घोषणा कर दी है कि लाड़ली बहना योजना में राशि बढ़ा कर तीन हजार की जाएगी। सरकार की कोशिश है कि चुनाव के पहले ही इस राशि को बढ़ा कर 1500 रुपए कर दिया जाए। तैयारी है कि रक्षाबंधन तथा भाईदुज पर 250-250 रुपए बढ़ा कर खाते में जमा करवा दिए जाएं। 

योजनाओं की राजनीति और जनता का खुश होना अपनी जगह लेकिन मुख्‍य  बात यह है कि इन योजनाओं के फेर में सरकार पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। राज्य पर करीब 3.5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज पहले से चढ़ा हुआ है। अगले कुछ माह में सरकार दस हजार करोड़ का कर्ज लेकर वादों को पूरा करेगी। वित्‍त विभाग के अफसर पहले ही हाथ खड़े कर चुके हैं अब कमाई करने वाले विभागों आबकारी, परिवहन, राजस्‍व, ऊर्जा, वाणिज्‍य कर टैक्‍स आदि विभागों की कमाई का टारगेट बढ़ा दिया गया है।

सरकार मुतमईन है क्‍योंकि पिछली बार इन विभागों ने लक्ष्‍य से अधिक कमाई की थी। यह कमाई ही विभाग प्रमुखों तथा प्रमुख सचिव अफसरों के लिए टेंशन का कारण बना हुआ है। जो अफसर कमाई के तनाव से मुक्‍त हैं वे विभाग के बजट में कटौती तथा वित्‍त विभाग की सख्‍ती से परेशान हैं। 
 
मुराद पूरी होना मुश्किल, नहीं बन पाएंगे एसपी 

चुनाव के पहले अफसरों की जमावट कर रही बीजेपी सरकार से आईपीएस निराश हैं। राज्य सरकार ने 31 जुलाई के पहले सभी अधिकारियों कर्मचारियों के तबादले करने का लक्ष्‍य रखा है। मैदानी कर्मचारियों के साथ बड़ी संख्‍या में आईएएस के तबादले कर दिए गए हैं। मगर लंबे समय से पुलिस मुख्यालय में पदस्‍थ और लूप लाइन में बैठे एसपी रैंक के आईपीएस अफसरों को अपनी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं। उन्‍हें उम्‍मीद है कि चुनाव के पहले उन्‍हें मौका मिलेगा और मैदान में पहुंच जाएंगे मगर सरकार के इरादे नेक नहीं लग रह हैं।

अंदरखाने की खबर है कि सरकार मैदानी आईपीएस को बदलने के मूड में नहीं है। यहां तक कि बीजेपी नेताओं की शिकायत के बाद भी मैदानी आईपीएस नहीं बदले जाएंगे। सरकार केवल उन्‍हीं आईपीएस अधिकारियों को बदलेगी जिन्‍हें अपने पद पर तीन वर्ष हो रहे हैं और चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुसार जिन्‍हें हटाना जरूरी है। इस दायरे में बुरहानपुर और पन्ना जिलों के पुलिस अधीक्षक तथा इंदौर व भोपाल के पुलिस अधिकारी बदले जाएंगे। बाकि को फिलहाल इंतजार करना होगा। इस संकेत के बाद भी कुछ आईपीएस जोड़तोड़ में लगे हैं कि किसी तरह मनचाही पोस्टिंग मिल जाए।