दफ्तर दरबारी: पुलिस मुख्यालय को भर्ती के लिए व्यापमं पर भरोसा नहीं
व्यापमं का नाम भले बदल लिया गया है मगर उसकी बदनामी से सरकार का पीछा नहीं छूट रहा है। विपक्ष और कोर्ट ही नहीं अब तो पुलिस मुख्यालय यानी पीएचक्यू को भी कर्मचारी चयन मंडल की प्रक्रिया पर भरोसा नहीं है। यही कारण है कि पुलिस भर्ती 2022 को पूरा करने के लिए निजी एजेंसी को खोजा जा रहा है। उधर, मंंच से अफसरों को सस्पेंड कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अपने मंत्रियों को भी दे रहे हैं एक पॉलिटिकल मैसेज।

शिवराज सरकार व्यापमं घोटाले की बदनामी से पीछा छुडा़ने के लिए भले ही व्यापमं का नाम बदल कर प्रोफेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड और फिर कर्मचारी चयन मंडल कर दे मगर व्यापमं की छवि सुधर नहीं रही है। यह इतना बदनाम है कि पुलिस मुख्यालय को इस पर भरोसा नहीं है। मध्य प्रदेश में 7500 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की भर्ती के लिए पुलिस मुख्यालय निजी एजेंसी की सेवाएं लेगा जबकि पहले यह पूरा काम कर्मचारी चयन मंडल यानी व्यापमं को करना था।
प्रोफेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड जो अब कर्मचारी चयन मंडल बना दिया गया है, सरकारी भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी के कारण विवादों से घिर गया है। पुलिस भर्ती 2020 में नियमों का पालन न होने की शिकायत करते हुए युवाओं ने हाईकोर्ट की शरण ली है। कोर्ट ने मंडल और सरकार से जवाब मांगा है। दूसरी तरफ, 19 दिसंबर से शुरू हो रहे पांच दिनी विधानसभा सत्र में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रही कांग्रेस ने भी कर्मचारी चयन मंडल की शिक्षक और पुलिस भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी को मुद्दा बनाने का फैसला किया है।
अब तक तो विपक्ष और कोर्ट ने प्रक्रिया पर सवाल उठाए है मगर लगता है कि पुलिस मुख्यालय यानी पीएचक्यू को भी कर्मचारी चयन मंडल की प्रक्रिया पर भरोसा नहीं है। यही कारण है कि अब पुलिस मुख्यालय पुलिस भर्ती 2022 को पूरा करने में निजी एजेंसी की मदद लेगा। अब तक पुलिस भर्ती की पूरी प्रक्रिया कर्मचारी चयन मंडल यानी व्यापमं को ही करनी थी। मगर अब पीएचक्यू ने टेंडर जारी कर निजी एजेंसी से कोटेशन मांगे हैं। यह एजेंसी फिजिकल टेस्ट में पीएचक्यू की मदद करेगी।
गौरतलब है कि इस बार आरक्षक भर्ती परीक्षा में फिजिकल टेस्ट को 50 प्रतिशत अंक का कर दिया गया है। मतलब लिखित परीक्षा और शारीरिक टेस्ट के नंबर बराबर होंगे। आमतौर पर फिजिकल टेस्ट में पैमानों को शिथिल कर मनमाने चयन की शिकायतें आती हैं। ऐसे में फिजिकल टेस्ट का जिम्मा कर्मचारी चयन मंडल को या अपने ही स्टॉफ को न दे कर पीएचक्यू किसी प्रतिष्ठित निजी एजेंसी का सहयोग ले रहा है।
सरकार चुनावी साल में बेरोजगारी को लेकर युवाओं की नाराजगी झेल रही है। ऐसे में पीएचक्यू किसी भी विवाद से बचने के लिए व्यापमं पर भरोसा नहीं कर रहा है।
सुशासन दिवस के पहले पूर्व मंत्री ने खोली सुशासन की पोल
सुशासन के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भरी सभाओं में अधिकारियों को सस्पेंड कर रहे हैं। वे कहते भी हैं कि इनके वीडियो वायरल हो रहे हैं मैं इस अधिकारी को हटा रहा हूं। इस एक्शन के बाद भी हकीकत यह है कि युवाओं से संवाद के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कहना पड़ रहा है कि मंत्रालय में अफसर अच्छी छवि दिखाते हैं, जबकि हकीकत बहुत अलग होती है।
मुख्यमंत्री चौहान की इसी बात पर पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने मोहर लगा दी है। पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के स्तंभ करे कैलाश जोशी के गृहक्षेत्र बागली में भ्रष्टाचार की स्थिति उजागर करते हुए दीपक जोशी ने वीडियो जारी किया है।
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इस वीडियो में दीपक जोशी कहते सुनाई दे रहे हैं कि बागली विधानसभा पूरे भारत में इसलिए पहचानी जाती है क्योंकि मेरे पिता राजनीति के संत पूर्व मुख्यमंत्री स्व। कैलाश जोशी जी लगातार 8 बार विपक्ष में रहते हुए चुनाव जीते,क्योंकि वह ईमानदार थे। बागली की जनता हमेशा ईमानदारी के साथ रही है, लेकिन विगत कुछ सालों से बागली भ्रष्टाचार का पर्याय बनता जा रहा है। कहीं न कहीं गलती और बेईमानी हो रही है।दीपक जोशी ने देवास के पूर्व कलेक्टर चन्द्रमौली शुक्ला पर आरोप लगाते हुए कहा कि मैंने तत्कालीन कलेक्टर चन्द्रमौली शुक्ला को लगातार अवगत कराया, लेकिन शायद वह शासन के या भ्रष्टाचारियों के पिठ्ठू बनकर देवास जिले में काम करते रहे हैं। नए कलेक्टर आए हैं ऐसे में वे कुछ कार्रवाई करेंगे और कार्रवाई नहीं हुई तो मैं मैदान में आऊंगा। नए साल 2023 में जनता की लड़ाई सड़क और कानून के माध्यम से कोर्ट में भी लड़ूंगा।
अपने पिता की ईमानदारी को याद कर बीजेपी सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार कर शिकायतें करते पूर्व मंत्री का यह वीडियो तब आया है जब बीजेपी और सरकार अटल जी के जन्मदिन पर सुशासन दिवस मनाने की तैयारी कर रही है। पार्टी 25 दिसंबर को सुशासन दिवस बनाएगी जबकि अवकाश को देखते हुए सरकारी दफ्तरों में 23 दिसंबर को सुशासन दिवस मनाया जाएगा। सुशासन के हाल क्या है यह खुद बीजेपी नेता बता रहे हैं।
अफसर को सस्पेंड करने के लिए राजनीतिक मैसेज
जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भरी सभाओं में काम पूरा न होने पर मंच से अधिकारियों को बर्खास्त करते हैं तो जनता तालियां बजाती हैं। लोगों को लगता है कि प्रशासनिक अफसरों की लालफीताशाही पर लगाम लगेगी। मगर मुख्यमंत्री अफसरों को सस्पेंड कर प्रशासनिक अमले को सख्त संदेश ही नहीं दे रहे हैं बल्कि उनके राजनीतिक आकाओं को भी पॉलीटिकल मैसेज दिया जा रहा है।
बीते दिनों जब मुख्यमंत्री चौहान छिंदवाड़ा गए थे तो लापरवाही की शिकायत मिलने के बाद छिंदवाड़ा सीएमएचओ डॉ. डीसी चौरसिया को मंच से ही निलंबित करने के आदेश जारी कर दिए। शिवराज सिंह चौहान ने जनता को संबोधित करते हुए कहा कि पिछली बार जब मैं आया था तो आयुष्मान कार्ड को लेकर सीएमएचओ को हटाने के आदेश जारी किए थे, लेकिन उन्होंने फिर से छिंदवाड़ा में पोस्टिंग करा ली है जो एक लापरवाही है। इन्हें मैं तत्काल सस्पेंड करने के आदेश कलेक्टर को देता हूं।
पता चला है कि मुख्यमंत्री ने छिंदवाड़ा में जिन सीएमएचओ को सस्पेंड किया है वे स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी के बैचमेट रहे हैं। मंत्री के साथ दोस्ती का इतना फायदा उठाया कि मुख्यमंत्री ने हटाने के आदेश दिए तब भी पद पर बने रहे। मंत्री के विरोधियों ने यह बात सीएम हाउस तक पहुंचा दी। फिर क्या था, भरी सभा ने एक अफसर को सजा दे कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्री को भी संकेत दे दिया है। ये अकेले अफस और मंत्री नहीं है। और अधिकारी हैं जिन्हें मुख्यमंत्री ने हटाया है और उनके राजनीतिक आका उन्हें दोबारा पोस्टिंग नहीं दिलवा पा रहे हैं। यह बात अलग है कि जिन नेताओं को राजनीतिक संदेश दिया जा रहा है वे सिंधिया खेमे के अधिक हैं।
ये कैसी ब्यूरोक्रेसी, एसडीएम के पैर पड़ने को मजबूर विधायक
वे जनप्रतिनिधि हैं। उनका अपना प्रोटोकॉल है। अफसरों को बार-बार हिदायत दी जाती है कि न केवल उनकी बात सुनें बल्कि उन्हें बराबर सम्मान भी दें। मगर बीते हफ्ते उज्जैन से लापरवाह ब्यूरोक्रेसी की एक ऐसी तस्वीर आई है जो लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती है। यह तस्वीर एक विधायक की है जो जनता की पीड़ा को समझते हुए मजबूर हो कर एसडीएम के पैरों में झुक गया।
प्रशासन ने उज्जैन के 5 अलग अलग क्षेत्रों के रहवासी नोटिस दे कर कहा है कि उनके मकान अवैध है और उन्हें गिराया जाएगा। लोग हैरान रह गए क्योंकि जिन मकानों को प्रशासन सिंहस्थ की जमीन पर बता रहा है, जनता के पास उन मकानों की रजिस्ट्री है। भरी ठंड में आसरा छिन जाने से परेशान लोगों की समस्या को लेकर विधायक महेश परमार कलेक्टर कार्यालय पहुंचे थे। रहवासियों की बात सुनने के लिए जब एसडीएम कल्याणी पांडे पहुंची तो विधायक महेश परमार ने गरीबों के घर नहीं उजाड़ने की बात करते हुए एसडीएम के सामने हाथ जोड़ते हुए उनक पैरों में झुक गए।
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विधायक महेश परमार और रहवासियों का यह तर्क गौर करने लायक है कि रहवासियों के पास अपने मकान की रजिस्ट्री हैं। यदि गरीबों के मकान तोड़े गए तो उन अफसरों पर भी कार्रवाई की जानी चाहिए जिन अफसरों की देख रेख में मकानों की रजिस्ट्री कर दी गई है। उन्होंने प्रशासन से यह भी जानना चाहा है कि सिंहस्थ की जमीन के नाम पर जिस जमीन से बेदखल किया जा रहा है, वहां किस संत का डेरा लगा था, क्या वहां पर सैटेलाइट टाउन बना था या फिर पार्किंग बनाई गई थी?
मुद्दा कलेक्टर के पास पहुंचा है लेकिन मामला तो लापरवाही का है। राजस्व विभाग जिन मकानों को अवैध बता रहा है, पंजीयन विभाग ने उनकी रजिस्ट्री कर कैसे दी? कायदे से तो जब ये मकान बन रहे थे तब ही इनका निर्माण रूकवा दिया जाना था। मगर विभागों में तालमेल के अभाव से ज्यादा यह लापरवाही और भ्रष्ट आचरण का मामला है। अधिकारी-कर्मचारी अवैध कामों को होता देखते रहते हैं, उन्हें रूकवाते नहीं है ताकि किसी दिन जुर्माना वसूला जा सके या कार्रवाई कर वाहवाही लूटी जा सके।
उज्जैन के मामले में तो जनता दोहरी ठगी गई है। एकतरफ मकान की रजिस्ट्री के लिए सरकार को पंजीयन शुल्क दिया और सड़क पर रहने की नौबत आ गई है। ब्यूरोक्रेसी ऐसे ही निरंकुश होगी तो जनप्रतिनिधियों को उनके आगे झुकने को मजबूर होना ही पड़ेगा।