African Cheetah: भारत लाया गया अफ्रीकी चीता

Mysuru Zoo: 28 साल पुराने इस चिड़ियाघर में घूमने आए पर्यटक अफ्रीकी चीता देख पाएंगे, हमारे देश में 1947 से गायब है एशियाई चीता

Updated: Aug 20, 2020, 09:11 PM IST

photo courtesy: ANI
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नई दिल्ली। वन्य प्रेमियों के लिए यह बेहद अच्छी खबर है कि भारत के जंगलों से लगभग सत्तर सालों से गायब चीता भारत लौट आया है। इस बार कर्नाटक में मैसुरु शहर में श्री चमाराजेंद्र जूलॉजिकल पार्क में अफ्रीकी चीता लौटा है। 

मैसुरु चिड़ियाघर के निदेशक अजय कुलकर्णी के समाचार एजेंसी आईएएनएस को बताया 14-16 महीने की उम्र के एक नर और दो मादा अफ्रीकी चीता दक्षिण अफ्रीका के एन वान डाइक चीता केंद्र से लाए गए हैं। इन तीन चीतों को अंतर्राष्ट्रीय पशु विनिमय कार्यक्रम के तहत बेंगलुरु लाया गया है। इन चीता को जल्द ही चिड़ियाघर के 7,000 वर्ग मीटर के घने जंगल में छोड़ दिया जाएगा। 

मैसुरु चिड़ियाघर के निदेशक अजय कुलकर्णी के अनुसार 2011 से हमारे पास जर्मनी के चार चीता थे। इनकी मौत हो गई है। अब मैसूर 128 साल पुराने इस चिड़ियाघर में घूमने आए पर्यटक लुप्तप्राय अफ्रीकी चीता को देख पाएंगे। इस चिड़ियाघर को 1892 में मैसूर के महाराजा चमाराजेंद्र वोडेयार ने बनवाया था, यह शहर के बाहरी इलाके में 175 एकड़ में फैला हुआ है, जहां दुनियाभर के 25 देशों में से 168 प्रजातियों सहित लगभग 1,450 प्रजातियां पाई जाती हैं। मैसुरु के अलावा हैदराबाद में नेहरू जूलॉजिकल पार्क में चीता है।

ग़ौरतलब है कि सूखी जमीन पर चीता सबसे तेज दौड़ने वाला प्राणी है। भारत के बड़े हिस्से पर कभी चीते उन्मुक्त होकर फर्राटा भरा करते थे। शिकार किए जाने और पर्यावास के नष्ट होने के चलते वे भारत से विलुप्त हो गए। माना जाता है कि 1947 में ही अंतिम तीन चीते छत्तीसगढ़ की कोरिया स्टेस में मार गिराए गए थे। जबकि, 1952 में उन्हें भारत से विलुप्त घोषित कर दिया गया। बॉंबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के दस्तावेज़ों की मानें तो भारत में तीन अंतिम चीतों को 1947 में कोरिया के रामगढ़ गांव के जंगल से लगे इलाके में महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने मार गिराया था। रामानुज प्रताप सिंहदेव के निजी सचिव ने ही महाराज की तस्वीर के साथ पूरी जानकारी बॉंबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी को भेजी थी। हालाँकि महाराज के परिजन का कहना है कि वे देश के आखिरी चीता नहीं थे। 

अक्सर ही लोग तेंदुआ को भी चीता समझ लेते हैं मगर दोनों में काफ़ी अंतर है। माना जाता है कि शरीर पर पड़ी काली चित्तियों के कारण इसका नाम चीता पड़ा है। चीते के शरीर पर काले रंग की चित्तियां होती हैं जबकि तेंदुआ के शरीर पर पंखुड़ियों जैसे निशान होते हैं।नाक के पास पड़ी काली धारियों जिसे अश्रु रेखा या टियर लाइन कहा जाता है, के जरिए चीतों को तेंदुए से अलग करके पहचाना जा सकता है।

दुनिया में चीतों की दो प्रजातियां है। एशियाई चीते भारत और ईरान जैसे कई एशियाई देशों में पाए जाते थे। जबकि, अफ्रीकी चीते अफ्रीका कई देशों में पाए जाते हैं। माना जाता है कि पचास से भी कम एशियाई चीते अब सिर्फ ईरान में बचे हैं। जबकि, अन्य देशों से यह कब के समाप्त हो चुके हैं। भारत में एशियाई चीतों को बसाना ज्यादा बेहतर रहता, लेकिन ईरान में इनकी बेहद कम संख्या और कमजोर जेनेटिक पूल के चलते इनकी बजाय अफ्रीकी चीतों को बसाने का प्रयोग किया जा रहा है।